केरल उच्च न्यायालय ने फैसला दिया है कि महिलाओं को नाइट शिफ्ट के आधार पर रोजगार से वंचित नहीं किया जाना चाहिए. उच्च न्यायालय ने कहा है कि सरकार और अधिकारियों की जिम्मेदारी है कि वे महिलाओं के लिए हर समय काम का माहौल बनाएं. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि किसी योग्य उम्मीदवार को सिर्फ इस आधार पर नियुक्त करने से इनकार नहीं किया जा सकता कि वह एक महिला है और रोजगार की प्रकृति के अनुसार उसे रात में काम करना होगा. जबकि महिला का योग्य होना ही उसकी नौकरी के लिए सुरक्षात्मक प्रावधान है.
कोर्ट ने एक प्रावधान को असंवैधानिक और भेदभावपूर्ण बताते हुए रद्द कर दिया जिसमें केरल के कोल्लम जिले में स्थित फैक्ट्री, केरल मिनिरल्स एंड मेटल्स लिमिटेड में सुरक्षा अधिकारी के पद पर महिलाएं आवेदन नहीं कर सकती हैं. कंपनी के इस प्रावधान को याचिकाकर्ता ट्रेजा जोसफीन ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी.
25 वर्षीय ट्रेजा का कहना है कि उसके पास फायर एंड सेफ्टी इंजीनियरिंग में डिग्री है, लेकिन उसे सेफ्टी ऑफिसर के पद से एक महिला होने के चलते वंचित किया जा रहा है. जब कंपनी ने इस पद के लिए आवेदन प्रक्रिया शुरू की थी, साफ कहा गया था कि इस पद पर महिलाओं को आवेदन करने की आवश्यकता नहीं है.
ट्रेजा का कहना था कि समान योग्यता होने के बावजूद उन्हें एक महिला होने के कारण अवसर से वंचित किया गया. मामले में न्यायमूर्ति अनु शिवरामन ने कहा कि योग्य होने के बावजूद महिला होने के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए. केरल मिनरल्स एंड मेटल्स लिमिटेड द्वारा जारी रोजगार अधिसूचना में केवल पुरुष ही आवेदन कर सकते हैं, यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14,15 और 16 के प्रावधानों का उल्लंघन है.
वहीं केएमएमएल के अधिकारियों का इस मामले में कहना है कि सुरक्षा अधिकारी की नौकरी 24 घंटे की होती है. इसको लेकर फैक्ट्री अधिनियम में एक प्रावधान है. महिलाओं को नाइट शिफ्ट में काम करने की अनुमति देने वाले संशोधन अध्यादेश को 5 अगस्त, 2020 को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी और केंद्र को भेज दिया गया, लेकिन संशोधन लागू नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि प्रावधान के मुताबिक शाम 7 बजे के बाद कारखानों में महिलाओं की नियुक्ति पर प्रतिबंध है.
aajtak.in