भारत ने नेपाल की आपत्ति को किया खारिज, कहा- दशकों से चल रहा है लिपुलेख दर्रा से व्यापार

लिपुलेख दर्रा के माध्यम से भारत और चीन के बीच सीमा व्यापार की बहाली पर नेपाल की आपत्तियों भारत ने खारिज कर दिया है. विदेश मंत्रालय ने कहा, 'लिपुलेख दर्रा के संबंध में हमारा रुख सुसंगत और स्पष्ट रहा है. भारत और चीन के बीच लिपुलेख दर्रा के माध्यम से सीमा व्यापार 1954 में शुरू हुआ था और दशकों से चल रहा है.'

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aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 21 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 5:19 AM IST

भारत ने बुधवार को नेपाल की उस आपत्ति को खारिज कर दिया, जिसमें उसने लिपुलेख दर्रा के माध्यम से भारत और चीन के बीच सीमा व्यापार की बहाली पर सवाल उठाया था. विदेश मंत्रालय ने काठमांडू के इस व्यापार मार्ग पर क्षेत्रीय दावे को असंगत और ऐतिहासिक तथ्यों व साक्ष्यों पर आधारित नहीं करार दिया.

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने स्पष्ट किया कि भारत 1954 से लिपुलेख दर्रा के माध्यम से चीन के साथ व्यापार करता आ रहा है. उन्होंने कहा कि भारत नेपाल के साथ संवाद और कूटनीति के जरिए सीमा संबंधी मुद्दों को सुलझाने के लिए रचनात्मक बातचीत के लिए हमेशा तैयार है.

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'1954 में शुरू हुआ था व्यापार'

जायसवाल ने कहा, 'लिपुलेख दर्रा के संबंध में हमारा रुख सुसंगत और स्पष्ट रहा है. भारत और चीन के बीच लिपुलेख दर्रा के माध्यम से सीमा व्यापार 1954 में शुरू हुआ था और दशकों से चल रहा है. हाल के वर्षों में कोविड और अन्य घटनाओं के कारण इस व्यापार में व्यवधान आया था और अब दोनों पक्षों ने इसे फिर से शुरू करने पर सहमति जताई है.'

'बातचीत को तैयार है भारत'

उन्होंने आगे कहा, 'क्षेत्रीय दावों के संबंध में हमारा रुख है कि ऐसे दावे न तो उचित हैं और न ही ऐतिहासिक तथ्यों और साक्ष्यों पर आधारित हैं. क्षेत्रीय दावों का कोई भी एकतरफा कृत्रिम विस्तार असंगत है. भारत-नेपाल के साथ सहमति से बकाया सीमा मुद्दों को संवाद और कूटनीति के माध्यम से हल करने के लिए रचनात्मक बातचीत को तैयार है.'

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ये बयान नेपाल द्वारा भारत और चीन के बीच लिपुलेख के रास्ते व्यापार मार्ग खोलने के समझौते पर आपत्ति जताने और इस क्षेत्र पर अपने दावे को दोहराने के बाद आया है. बता दें कि भारत-नेपाल संबंधों में लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा जैसे क्षेत्रों को लेकर लंबे वक्त से असहमति दिखने को मिल रहे है.

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