ओडिशा के कंधमाल जिले में सुरक्षा बलों ने हाल ही में एक बड़ी कार्रवाई में चार माओवादियों को मार गिराया, जिनमें शीर्ष नक्सली नेता गणेश उइके भी शामिल था. यह घटना ऐसे समय पर हुई है, जब देश में नक्सलवाद की चुनौती पहले के मुकाबले काफी कमजोर होती दिख रही है.
आंकड़े बताते हैं कि नक्सली हिंसा में लगातार गिरावट आई है. साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल (SATP) के आंकड़ों के मुताबिक, माओवादी हिंसा से जुड़ी हत्याओं की घटनाएं पिछले कई वर्षों में तेज़ी से घटी हैं. वर्ष 2016 में नक्सली हिंसा से जुड़ी 263 घटनाएं दर्ज की गई थीं. इनमें 122 आम नागरिक, 62 सुरक्षाकर्मी और 250 नक्सली मारे गए थे.
2025 तक आते-आते तस्वीर काफी बदल चुकी है. इस साल ऐसी घटनाओं की संख्या घटकर 137 रह गई. इन घटनाओं में 52 नागरिक और 33 सुरक्षाकर्मी मारे गए, जबकि मारे गए नक्सलियों की संख्या बढ़कर 383 हो गई. यानी घटनाएं कम हुई हैं, लेकिन सुरक्षा बलों की कार्रवाई ज्यादा प्रभावी और निर्णायक हुई है.
क्या है रेड कॉरिडोर?
नक्सली संगठन मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल के दूरदराज़ और जंगलों वाले इलाकों में सक्रिय रहे हैं. इन क्षेत्रों को मिलाकर ‘रेड कॉरिडोर’ कहा जाता है. लंबे समय तक इन इलाकों में पुलिस थानों, सुरक्षा बलों और सरकार समर्थक माने जाने वाले नागरिकों पर हमले होते रहे.
लेकिन अब हालात बदलते दिख रहे हैं. 2016 में जहां कुल 263 हत्याएं दर्ज हुई थीं, वहीं 2025 में यह संख्या लगभग आधी होकर 137 रह गई. उसी तरह 2016 में 250 नक्सली मारे गए थे, जबकि 2025 में यह आंकड़ा बढ़कर 383 पहुंच गया. साफ है कि हमले कम हुए हैं, लेकिन नक्सलियों को होने वाला नुकसान कहीं ज्यादा बढ़ा है.
2017 से 2025 तक आया चेंज
2017 से 2021 के बीच हिंसा में लगातार गिरावट देखी गई. 2017 में जहां 200 घटनाएं दर्ज हुई थीं, वहीं 2021 तक यह घटकर 124 रह गईं. इस दौरान नक्सलियों की मौत का आंकड़ा लगभग 130 से 150 के बीच बना रहा.
2022 और 2023 में घटनाएं और घटीं, जब हत्याओं की संख्या करीब 110 रह गई. हालांकि इन वर्षों में मारे गए नक्सलियों की संख्या भी कुछ कम हुई. बड़ा बदलाव 2024 और 2025 में देखने को मिला. इन दो वर्षों में घटनाएं तो 2016 के मुकाबले काफी कम रहीं, लेकिन नक्सलियों की मौत का आंकड़ा तेजी से बढ़कर पहले 296 और फिर 383 तक पहुंच गया.
कुल मिलाकर आंकड़े साफ संकेत देते हैं. 2025 भारत में नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई का एक निर्णायक साल साबित होता दिख रहा है. भले ही नक्सली समस्या पूरी तरह खत्म न हुई हो, लेकिन आम नागरिकों और सुरक्षाकर्मियों की मौतों में आई बड़ी कमी और नक्सली कैडरों को हुए भारी नुकसान से यह साफ है कि नक्सली आंदोलन अब पहले के मुकाबले काफी कमजोर पड़ चुका है.
पल्लवी पाठक