मॉनसून सत्र के साथ-साथ गुरुवार से किसानों का 'किसान संसद' जंतर-मंतर पर शुरू हो गया. अब आज से 9 अगस्त तक यानी जब तक संसद में सत्र चलेगा तब तक अगले 18 दिन रोज 200 की संख्या में अलग-अलग किसान अपनी संसद चलाने यहां पहुंचेंगे? देश के अन्नदाता कहे जाने किसानों की स्थिति अभी भी बेहद अच्छी नहीं है. जबकि बड़ी संख्या में सांसद खुद को किसान या खेती-बाड़ी से जुड़ा होने का दावा करते हैं.
एक बात तय है कि कृषि कानूनों को लेकर ना किसान संगठन कदम पीछे खींचने वाले हैं, ना ही सरकार, तो आज एक तुलना होगी देश के किसानों और किसानों के लिए कानून बनाने वाली संसद में बैठने वाले उन सांसदों की जो खुद को पेशे से किसान बताते हैं. संसद में खुद को किसान बताने वाले 92 फीसदी सांसद करोड़पति हैं. जबकि देश के किसान की औसत आय नाबार्ड के सर्वे के मुताबिक महीने के 9 हजार रुपये से कम है.
ये तुलना इसलिए ताकि जो संसद से बैठकर कहते हैं कि अरे हम भी किसान का दर्द जानते हैं तो देखते हैं कि संसद के किसानों और देश के किसानों के बीच का फर्क कितना बड़ा है?
किसानों के बीच फर्क कितना बड़ा
क्या वाकई देश की संसद में बैठे सांसद किसानों के दर्द को समझते हैं. अगर हां तो सवाल ये है कि जिस लोकसभा में चुनकर आने वाले 39 सांसद अपना पेशा खेती-बाड़ी बताते हैं. जिस लोकसभा में 206 सांसद अपना पेशा कृषि बताते हैं, यानी लोकसभा में कुल 245 सांसदों का प्रोफेशन खेती-किसानी है.
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वहां फिर भी नौबत अभी यही है कि पुलिस के भारी बंदोबस्त वाले बैरीकेड, सीसीटीवी कैमरा, दिल्ली पुलिस, अर्धसैनिक बल की छावनी में घिरे जंतर-मंतर पर पानी की बौछार करने वाले सुरक्षा वाहनों के साए में किसान संसद के पास आकर अपनी किसान संसद चलाने को मजबूर हैं, ताकि कृषि कानूनों को लेकर चलते आंदोलन में संसद तक आवाज पहुंचे.
लोकसभा सांसदों की औसत संपत्ति 18 करोड़
किसानों का फायदा और किसानी पेशा बताकर संसद में पहुंचने वाले सांसदों के फायदे की तुलना की जाए तो बड़ा अचरज होगा. क्योंकि खुद को किसान बताने वाले लोकसभा सांसदों की औसत संपत्ति जहां 18 करोड़ रुपये है तो वहीं देश में किसानों की महीने की आय शहरों के कई परिवारों के महीने के मोबाइल, लैंडलाइन, इंटरनेट बिल के बराबर है यानी 30 दिन की कमाई औसत 8931 रुपये.
सरकारों के भरोसे पर चलें तो अब पांच महीने बाद किसानों की आय दोगुनी हो जानी चाहिए क्योंकि 6 साल पहले 2022 तक किसानों के हाथ में दोगुनी कमाई होने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन हकीकत तो ये है कि किसान कृषि कानूनों से कमाई में सेंध के डर से जंतर-मंतर पर अपनी संसद चला रहा है.
तय हुआ है कि मॉनसून सत्र में 9 अगस्त तक रोज संसद के पास 200 किसान आएंगे. किसान संगठन से ही तीन स्पीकर और तीन डिप्टी स्पीकर बनेंगे. फिर किसानों के मुद्दे पर जंतर-मंतर पर किसान संसद में चर्चा होगी.
देश में चर्चा ही ज्यादा चली है किसानों पर, लेकिन नतीजा बहुत अच्छा नहीं निकला क्योंकि निकला होता तो फिर संसद में खुद को किसान बताने वाले किसी भी दल के सांसद किसानों को भी करोड़पति बनने का तरीका बता देते.
TDP के सांसद जयदेव गल्ला अपना प्रोफेशन किसानी बताते हैं और संपत्ति है 305 करोड़ रुपये. YSR कांग्रेस के अदल प्रभाकर भी खुद को किसान लिखते हैं और उनकी संपत्ति 221 करोड़ रुपये है.
इसी तरह केंद्र सरकार के 5 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति वाले 41 मंत्री हैं. उन 41 मंत्रियों में से 11 मंत्री खुद को किसान बताते हैं. लेकिन संसद में बैठने वाले किसान सांसद-मंत्रियों के पास क्या कोई रास्ता ऐसा नहीं जो किसानों को भी करोड़पति ना सही, लखपति बनने का ही सुगम रास्ता बता दे. सरकार कहती है कि नए वाले कृषि कानून अच्छे दिन लाएंगे.
क्या है नाबार्ड के पिछले सर्वे में
नाबार्ड के पिछले सर्वे के मुताबिक किसानों की सालाना कमाई हमारे देश में एक लाख सात हजार रुपये हैं, जबकि देश के सांसदों का वेतन हर महीने का भत्ते समेत दो लाख तीस हजार रुपये है. यानी किसान जितना साल में नहीं कमाते, किसानों के नाम पर चुने जाने वाले सांसद उससे ज्यादा का वेतन हर महीने पाते हैं.
अब एक और उदाहरण देखिए. यूपी में किसानों की प्रति महीने कमाई औसत 6,668 रुपये है जबकि यूपी के 80 में 41 सांसद जो खुद को किसान बताते हैं, उनकी औसत संपत्ति 9 करोड़ रुपये के पार है.
खुद को किसान कहते बीजेपी के 139 सांसद
बीजेपी के 139 सांसद खुद को किसान बताते हैं तो कांग्रेस के 13 सांसद खुद को खेती किसानी वाले प्रोफेशन का बताते हैं. जबकि शिवसेना के 11 सांसद अपना पेशा किसानी लिखते हैं.
किसानों पर सियासत ज्यादा
ऐसी हालत इसलिए है क्योंकि हमारे देश के किसानों की समस्या कम सुनी गई है. सियासत ज्यादा हुई है. दिल्ली में किसान अगर कांग्रेस के लिए मुद्दा है तो राजस्थान में क्यों नहीं ? जहां कांग्रेस की ही सरकार है लेकिन बीमा और बीमे का क्लेम तक पाने के लिए किसान भटकते हैं.
गांवों के रास्ते भारत के विकास का सपना देखने वाले महात्मा गांधी की प्रतिमा के सामने कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और दूसरे सांसद कृषि कानूनों के खिलाफ और किसानों के समर्थन में कुछ मिनटों का प्रदर्शन करते हैं. जब तस्वीरें खिंच जाती हैं, वीडियो बन जाता है तो बिना कुछ कहे राहुल गांधी चले जाते हैं.
किसानों के हक में कांग्रेस के समर्थन पर शंका तब होने लगती है जब दिल्ली में किसानों के लिए दिल चीर के देख तेरा ही नाम होगा टाइप नारा लगाते हैं. लेकिन दिल्ली से 280 किमी दूर राजस्थान जहां कांग्रेस की ही सरकार है, वहां किसानों के हक पर ही सरकारी चूक डाका डाल रही है.
राजस्थान में किसानों को नहीं मिला बीमा क्लेम
ढाई साल से राजस्थान में फसल बीमा के साथ मिलने वाले जीवन बीमा का क्लेम किसी किसान को दिया ही नहीं है. जबकि दिल्ली में कांग्रेस किसानों के लिए प्रदर्शन करती है.
राजस्थान की राजधानी जयपुर के लसाड़िया गांव में जहां संवाददाता शरत कुमार पहुंचे तो वहां फसल बीमा के साथ जीवन सुरक्षा और दुर्घटना बीमा का पैसा इस किसान परिवार से लिया गया. लेकिन परिवार से तीन किसानों की मौत के बाद भी कभी क्लेम का पैसा नहीं मिला.
राजस्थान में 26 लाख किसानों का बीमा सहकारी बैंकों से होता है. दावा है कि 8 लाख किसानों का प्रीमियम कटने के बाद भी सरकारी लापरवाही से बीमा कंपनियों तक नहीं पहुंचता है. लाखों किसानों को फसल बर्बाद होने पर भी एक कौड़ी फिर बीमा कंपनी नहीं देती. इसलिए फसल बीमा शुरू हुआ ताकि फसल खराब हो तो बीमा मिल जाए लेकिन आजतक पैसा नहीं मिला है.
तो फिर संसद में प्रदर्शन करना क्यों ना सिर्फ किसानों के नाम पर एक राजनीति माने क्योंकि अपने शासन वाले राज्य में हालत ये है कि गहलोत सरकार बीमा कंपनी चुनने में 18 महीने लगाती है, फिर चुन लेती है तो किसानों का प्रीमियम जमा करना ही भूल जाती है. इस मसले पर राजस्थान के सहकारिता मंत्री उदयलाल आंजना तुरंत अपनी गलती मान बैठे.
2019 के लोकसभा चुनाव में दोबारा मैदान में उतरने वाले 335 सांसद ऐसे थे, जिनकी संपत्ति पांच साल के भीतर औसत 6 करोड़ 90 लाख रुपये बढ़ गई. जबकि एनएसएसओ (National Sample Survey Office) के मौजूद आखिरी आंकड़े कहते हैं कि किसान की आय 2012 से 2016 के बीच सिर्फ 2,505 रुपये ही बढ़ पाई.
(आजतक ब्यूरो)
हिमांशु मिश्रा / कुमार कुणाल / आशुतोष मिश्रा / शरत कुमार