अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के डॉक्टरों ने सात वर्षीय बच्चे के बाएं फेफड़े में धंसी सुई को चुंबक की मदद से सफलतापूर्वक निकाला है. अस्पताल द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक, बाल चिकित्सा सर्जरी विभाग की टीम ने जटिल एंडोस्कोपिक प्रक्रिया के जरिये फेफड़े के भीतर धंसी चार सेंटीमीटर की सुई को निकाला. बच्चे को हेमोप्टाइसिस (खांसी के साथ रक्तस्राव) की शिकायत के बाद गंभीर स्थिति में बुधवार को एम्स में भर्ती कराया गया था.
चुंबक के जरिए हुआ ऑपरेशन!
हेमोप्टाइसिस - खांसी के साथ रक्तस्राव की शिकायत के बाद लड़के की हालत बहुत नाजुक हो गई थी जिसके बाद उसे एम्स में भर्ती कराया गया था. बाल चिकित्सा सर्जरी विभाग के अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ. विशेष जैन ने पीटीआई को बताया कि रेडियोलॉजिकल जांच से पता चला कि उनके बाएं फेफड़े में सिलाई मशीन की एक लंबी सुई धंसी हुई है. डॉ. जैन ने एक परिचित के जरिये उसी शाम चांदनी चौक बाजार से चुंबक खरीदने की व्यवस्था की. उन्होंने बताया ‘चार मिलीमीटर चौड़ाई और 1.5 मिलीमीटर मोटाई वाला चुंबक इस काम के लिए एकदम सही उपकरण था.'
प्रक्रिया की जटिलताओं के बारे में बताते हुए, बाल चिकित्सा सर्जरी विभाग के अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ. देवेन्द्र कुमार यादव ने बताया कि सुई फेफड़े के भीतर इतनी गहराई तक मौजूद थी कि पारंपरिक तरीके लगभग अप्रभावी साबित होते. उन्होंने कहा, 'इसके बाद सर्जिकल टीम के बीच गहन चर्चाएं हुई जिसका उद्देश्य सुई को सुरक्षित और प्रभावी ढंग से निकालने के लिए अलग समाधान तलाशना था.' अगले चरण में सर्जिकल टीम और उनके तकनीकी अधिकारी, सत्य प्रकाश के साथ सावधानीपूर्वक योजना को लेकर काफी गहन चर्चा हुई.
फेफड़ों में धंसी थी सुई
डॉ. जैन ने बताया, 'प्राथमिक उद्देश्य श्वासनली को किसी भी तरह के जोखिम से बचाकर चुंबक को सुई के स्थान तक ले जाना था. टीम ने सरलतापूर्वक एक विशेष उपकरण तैयार किया, जिसमें चुंबक को एक रबर बैंड और धागे का उपयोग करके सुरक्षित रूप से जोड़ दिया गया था.'डॉ. यादव के अनुसार, टीम ने बाएं फेफड़े के भीतर सुई के स्थान का आकलन करने के लिए श्वास नली की एंडोस्कोपी शुरू की. उन्हें जो मिला वह केवल सुई की नोक थी, जो फेफड़ों के भीतर गहराई तक धंसी हुई थी.
डॉ. जैन ने कहा कि इस चुंबक उपकरण की मदद से सुई को सफलतापूर्वक निकाला गया. एम्स के मुताबिक, बच्चे के फेफड़े में सुई कैसे पहुंची, इस बारे में परिवार कोई जानकारी नहीं दे सका.डॉ. जैन ने कहा, 'चुंबक-टिप वाले उपकरण को सावधानी से डाला गया था. यह लगभग जादुई लग रहा था क्योंकि सुई चुंबकीय बल पर प्रतिक्रिया कर रही थी, आसानी से अपने छिपे हुए स्थान से बाहर आ रही थी. इसे सफलतापूर्वक निकाला गया.'
परिवार ने नहीं बताई सुई जाने की वजह
उन्होंने कहा, 'अगर यह काम नहीं करता, तो हमें छाती और फेफड़ों को खोलकर पारंपरिक तरीके से सुई निकालने की जरूरत होती, जो अधिक कठिन और चुनौतीपूर्ण होता.' अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के मुताबिक, परिवार इस बारे में कोई जानकारी नहीं दे सका कि बच्चे के फेफड़े में सुई कैसे गई.
aajtak.in