जानिए क्या है 371 करोड़ का वह घोटाला, जिसकी वजह से CID की गिरफ्त में आए चंद्रबाबू नायडू

आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और तेलुगू देशम पार्टी के अध्यक्ष एन. चंद्रबाबू नायडू को शनिवार सुबह आंध्र प्रदेश की सीआईडी ने गिरफ्तार कर लिया. नायडू पर आरोप है कि उन्होंने 371 करोड़ रुपये के कथित स्किल डेवलपमेंट घोटाले में मुख्य निभाई थी.

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गिरफ्तार किए गए हैं पूर्व सीएम और टीडीपी अध्यक्ष एन. चंद्रबाबू नायडू गिरफ्तार किए गए हैं पूर्व सीएम और टीडीपी अध्यक्ष एन. चंद्रबाबू नायडू

अब्दुल बशीर

  • अमरावती,
  • 09 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 12:47 PM IST

अविभाजित आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू को शनिवार सुबह राज्य की सीआईडी ने गिरफ्तार कर लिया. नायडू पर कथित तौर पर राज्य में बेरोजगार युवाओं को प्रशिक्षित करने के लिए आंध्र प्रदेश राज्य कौशल विकास निगम (एपीएसएसडीसी) की आड़ में 371 करोड़ रुपये के बड़े घोटाले की साजिश रचने का आरोप है. हालांकि खुद पर लगे आरोपों का खंडन किया है.

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नायडू ने खारिज किए आरोप

चंद्रबाबू नायडू ने कहा, 'पिछले 45 वर्षों से मैंने निस्वार्थ भाव से तेलुगु लोगों की सेवा की है. मैं तेलुगु लोगों के हितों की रक्षा के लिए अपना जीवन बलिदान करने के लिए तैयार हूं. दुनिया की कोई भी ताकत मुझे तेलुगु लोगों, मेरे आंध्र प्रदेश और मेरी मातृभूमि की सेवा करने से नहीं रोक सकती.'

चंद्रबाबू नायडू को इस इस कथित घोटाले का मुख्य साजिशकर्ता माना जाता है. आरोप है कि उन्होंने शेल कंपनियों के माध्यम से सार्वजनिक धन को निजी संस्थाओं में स्थानांतरित करने की योजना बनाई, जिसके परिणामस्वरूप सार्वजनिक खजाने को नुकसान हुआ और निजी लाभ हुआ.

क्या हैं आरोप:

1. कथित सुनियोजित घोटाला: चंद्रबाबू नायडू ने 371 करोड़ रुपये के घोटाले की सावधानीपूर्वक योजना बनाई फिर उसे निर्देशित कर क्रियान्वित किया.सरकार द्वारा अग्रिम धनराशि का अधिकांश हिस्सा नकली चालानों के माध्यम से शेल कंपनियों को भेज दिया गया, चालान में उल्लिखित वस्तुओं की कोई वास्तविक डिलीवरी या बिक्री नहीं हुई.

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2. सीमेंस के साथ संदिग्ध समझौता ज्ञापन: नायडू के कार्यकाल के दौरान, राज्य सरकार ने जर्मन इंजीनियरिंग दिग्गज सीमेंस के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए. 

3. संदिग्ध फंड रिलीज: यह आरोप लगाया गया है कि महज तीन महीने के भीतर पांच किश्तों में 371 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया, जबकि सीमेंस ने इस परियोजना में कोई फंड निवेश नहीं किया था.धन का एक हिस्सा सीओई क्लस्टर बनाने के लिए इस्तेमाल किया गया था, जो आधिकारिक प्रक्रिया से हटकर था, जबकि बाकी हिस्सा शेल कंपनियों के माध्यम से भेजा गया था.

4. एमओयू की शर्तें: एमओयू में निर्धारित किया गया कि आंध्र प्रदेश सरकार 3,356 करोड़ रुपये की कुल परियोजना लागत का 10 प्रतिशत खर्च कर सकती है.

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मुख्य खुलासे:

पारदर्शिता की कमी: विशेष रूप से, तत्कालीन प्रमुख वित्त सचिव और तत्कालीन मुख्य सचिव द्वारा किसी भी नोट फाइल पर हस्ताक्षर नहीं किए गए थे, जिससे पारदर्शिता पर सवाल खड़े हो गए.

दस्तावेजी साक्ष्य से छेड़छाड़: रिपोर्ट्स से पता चलता है कि घोटाले से जुड़े महत्वपूर्ण दस्तावेजी सबूतों को नष्ट करने का प्रयास किया गया था. जांच में मुख्य आरोपी चंद्र बाबू नायडू के साथ-साथ तेलुगु देशम पार्टी को भी गबन किए गए धन के लाभार्थियों के रूप में दर्शाया गया है.

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पृष्ठभूमि: इस घोटाले की जड़ 2014 में आंध्र प्रदेश राज्य कौशल विकास निगम (एपीएसएसडीसी) के गठन से हुई, जिसका उद्देश्य बेरोजगार युवाओं को प्रशिक्षित करना और अनंतपुर जिले में 'किआ' जैसे उद्योगों से शैक्षणिक संस्थानों के साथ संबंधों को बढ़ावा देना था.

सीमेंस कंसोर्टियम: इस परियोजना को सीमेंस, इंडस्ट्री सॉफ्टवेयर इंडिया लिमिटेड और डिजाइन टेक सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड के साथ साझेदारी कर एपीएसएसडीसी द्वारा निष्पादित किया जाना था. सीमेंस को उत्कृष्टता के छह केंद्र स्थापित करने का काम सौंपा गया था.

मानकों का उल्लंघन: प्रवर्तन निदेशालय की जांच के अनुसार, आंध्र प्रदेश सरकार ने बिना निविदा प्रक्रिया के 371 करोड़ रुपये जारी करके स्थापित मानदंडों का उल्लंघन किया.चौंकाने वाली बात यह है कि कौशल विकास के लिए बिना किसी ठोस रिटर्न के 241 करोड़ रुपये कथित तौर पर एलाइड कंप्यूटर्स, स्किलर्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, नॉलेज पोडियम, कैडेंस पार्टनर्स और ईटीए ग्रीन्स सहित विभिन्न शेल कंपनियों को डायवर्ट कर दिए गए.

गिरफ्तारियां: 4 मार्च, 2023 को प्रवर्तन निदेशालय ने मामले के सिलसिले में सौम्याद्रि शेखर बोस, विकास विनायक खानवलकर, मुकुल चंद्र अग्रवाल और सुरेश गोयल सहित प्रमुख लोगों को गिरफ्तार किया था.

वित्त विभाग की संलिप्तता: आरोपों से पता चलता है कि वित्त विभाग के अधिकारियों की आपत्तियों के बावजूद, चंद्रबाबू नायडू ने तत्काल धन जारी करने का आदेश दिया. वित्त प्रमुख सचिव और मुख्य सचिव सहित प्रमुख सरकारी अधिकारियों को फंड जारी करने में मदद दी गई. इन फंडों से जुड़े 70 से अधिक लेनदेन कथित तौर पर शेल कंपनियों के माध्यम से पारित हुए.

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व्हिसलब्लोअर रिपोर्ट: व्हिसलब्लोअर ने पहले कौशल विकास घोटाले की सूचना भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) को दी थी, और इसी तरह की खामियों के बारे में 2018 में भी पता चला था. इन दावों की प्रारंभिक जांच अनिर्णायक थी, और परियोजना से जुड़ी नोटफ़ाइलें कथित तौर पर नष्ट कर दी गई थीं.

जीएसटी अनियमितताएं: इसके अतिरिक्त, कौशल घोटाले के केंद्र में पीवीएसपी/स्किलर और डिज़ाइनटेक जैसी कंपनियों पर सेवा कर का भुगतान किए बिना पैसा लेने का आरोप लगाया गया है. संदेह तब पैदा हुआ जब जीएसटी अधिकारियों ने 2017 में हवाला चैनलों के माध्यम से धन हस्तांतरण से जुड़ी अनियमितताओं की पहचान की.

ऐसे में जब मामले से संबंधित मुख्य दस्तावेज़ गायब हो गए हैं, चंद्रबाबू नायडू और अन्य लोग प्राथमिक संदिग्ध हैं. जांच गबन किए गए धन का पता लगाने पर केंद्रित है, जिससे चंद्रबाबू नायडू से हिरासत में पूछताछ आवश्यक हो गई है. सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज सार्वजनिक अधिकारियों के बयानों सहित सामग्री स्पष्ट रूप से अग्रिम धन जारी करना इस बात की तरफ इशारा करती है कि मामले में चंद्र बाबू नायडू की मुख्य भूमिका थी. 

 

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