देश के पहले गांव माणा में 14 मई से लगेगा पुष्कर कुंभ, जानिए इसका पौराणिक महत्व

बद्रीनाथ के माणा में सरस्वती अलकनंदा के संगम केशव प्रयाग में 14 मई से 26 मई तक पुष्कर कुंभ लगेगा. इसको लेकर गांव माणा में तैयारियां की जा रही हैं. दावा किया जा रहा है कि इस वर्ष करीब डेढ़ लाख लोग यहां पर आएंगे.

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गांव माणा में 14 मई से लगेगा पुष्कर कुंभ गांव माणा में 14 मई से लगेगा पुष्कर कुंभ

कमल नयन सिलोड़ी

  • चमोली,
  • 12 मई 2025,
  • अपडेटेड 10:23 AM IST

देश के प्रथम गांव माणा में 14 मई से 26 मई तक सरस्वती नदी और अलकनंदा के संगम केशव प्रयाग में पुष्कर कुंभ होगा. यह कुंभ दक्षिण भारत के लोगों के लिए आयोजित किया जाता है. आपको बता दें कि जब बृहस्पति मिथुन राशि में प्रवेश करता है तो सरस्वती स्नान यानी कि माणा में पुष्कर कुंभ का आयोजन होता है. 

स्कंद पुराण के अनुसार सरस्वती नदी माणा में आधा किलोमीटर के दायरे में साक्षात दिखाई देती हैं, इसका पानी भी पूरी तरह से हरे रंग का दिखाई देता और यहीं पर सरस्वती नदी विलुप्त हो जाती हैं. इसी मान्यता को मानते हुए दक्षिण भारत के लोग यहां पर पुष्कर कुंभ मनाने वर्षों से आ रहे हैं.

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बद्रीनाथ धाम के पूर्व धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल ने बताया विशेष रूप से इस वर्ष पुष्कर कुंभ हो रहा है. ऐसे में दक्षिण भारत के लोग यहां आएंगे. उनियाल के मुताबिक 12 राशियों में बृहस्पति होता है. प्रत्येक वर्ष एक राशि, जब मेष में होती है तो गंगा स्नान होता है. वहीं, जब यह वृष में होती है तो यमुना स्नान होता है. इसके अलावा जब मिथुन में होती है तो सरस्वती स्नान की परम्परा है.

सरस्वती माणा में हैं, जो बद्रीनाथ से तीन किलोमीटर दूर हैं. अब यह पहला गांव है. इस गांव ने पूरे देश को समृद्धता दी है. वेद यहां से निकले, 18 पुराण, 18 उपपुराण और व्यास भी यहां मौजूद हैं. गीता भी इसी गांव में लिखी गई. यहां दो सरस्वती भी मौजूद हैं. ऐसे में लोग यहां एक में स्नान करते हैं तो दूसरी से सीखते हैं. चमोली जिलाधिकारी ने बताया कि पुष्कर कुंभ में डेढ़ लाख से अधिक दक्षिण भारत के श्रद्धालुओं के पहुंचने की उम्मीद है. श्रद्धालुओं को लेकर यहां पर सभी तरह की तैयारियां पूरी कर ली गई हैं.

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माणा गांव के प्रधान वर्तमान में प्रशासक पीतांबर मोल्फा ने बताया कि पहले इस कुंभ का हम लोगों को पता नहीं चल पाता था. यहां पर दक्षिण भारत से लोग आते थे और स्नान करने के बाद लौट जाते थे. लेकिन 2013 में हम लोगों को इसके बारे में पता चला तो हम इसे भव्य रूप से मनाने लगे. मेले को लेकर सभी तरह की तैयारियां की जा रही हैं. 

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