'कहीं सस्ता समोसा, कहीं महंगा...', रवि किशन ने संसद में उठाया खाद्य पदार्थों के रेट का मुद्दा

कांग्रेस प्रवक्ता सुरेंद्र राजपूत ने रवि किशन का मज़ाक उड़ाते हुए पूछा कि क्या वह प्रधानमंत्री मोदी के मित्र गौतम अडानी द्वारा संचालित एयरपोर्ट्स पर महंगे समोसे के दामों पर कंट्रोल करने के लिए भी आवाज़ उठा सकते हैं.

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रवि किशन की मांग पर कांग्रेस ने लिया फिरकी (Photo: ITG) रवि किशन की मांग पर कांग्रेस ने लिया फिरकी (Photo: ITG)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 31 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 11:13 PM IST

भाजपा सांसद और अभिनेता रवि किशन ने बुधवार को संसद में सरकार से ढाबों से लेकर फाइव स्टार होटल्स तक में परोसी जाने वाले खाने-पीने की चीज़ों की कीमतों और मात्रा को कंट्रोल करने की गुजारिश की. गोरखपुर के सांसद ने कहा, "मुझे अभी भी समझ नहीं आ रहा है कि हमें कहीं एक ही रेट पर छोटी प्लेट में समोसा मिलता है और कहीं बड़ी प्लेट में मिलता है. करोड़ों कस्टमर्स वाला इतना बड़ा बाज़ार बिना किसी नियम-कानून के चल रहा है."

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लोकसभा में ज़ीरो आवर यानी शून्यकाल के दौरान, उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से बीजेपी सांसद ने कहा कि हर जगह खाद्य पदार्थों की कीमतें, गुणवत्ता और मात्रा अलग-अलग हैं. उन्होंने कहा, "एकरूपता ज़रूरी है."

देश भर में खाद्य पदार्थों की कीमतों और मात्रा में एकरूपता के अभाव की ओर इशारा करते हुए, रवि किशन ने कहा, "दाल तड़का कुछ दुकानों पर 100 रुपये, कुछ पर 120 रुपये और कुछ होटलों में 1,000 रुपये में मिलती है."

कांग्रेस ने उड़ाया रवि किशन का मजाक...

रवि किशन की मांग के बाद विवाद खड़ा हो गया. कांग्रेस प्रवक्ता सुरेंद्र राजपूत ने बीजेपी सांसद का मज़ाक उड़ाते हुए पूछा कि क्या वह प्रधानमंत्री मोदी के मित्र गौतम अडानी द्वारा संचालित एयरपोर्ट्स पर महंगे समोसे के दामों पर कंट्रोल करने के लिए भी आवाज़ उठा सकते हैं.

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रवि किशन का बचाव करते हुए बीजेपी प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने कहा कि कांग्रेस को सदन की कार्यवाही में कोई दिलचस्पी नहीं है, क्योंकि वे जनहित के मुद्दे का मज़ाक उड़ा रहे हैं.

यह भी पढ़ें: रवि किशन, निशिकांत दुबे, सुप्रिया सुले... संसद रत्न से सम्मानित हुए ये 17 सांसद

राकेश त्रिपाठी ने कहा, "उनका (कांग्रेसा) एकमात्र ध्यान शोर मचाना, कार्यवाही में बाधा डालना और जानबूझकर सदन की कार्यवाही में बाधा डालना है. जिन लोगों ने इस तरह के व्यवहार को अपनी आदत बना लिया है, वे स्वाभाविक रूप से तब हैरान होते हैं जब वास्तविक जनहित के मुद्दे उठाए जाते हैं."

उन्होंने आगे सवाल किया, "क्या समोसे या खाने-पीने के स्टॉल जैसे मुद्दे जनहित से जुड़े नहीं हैं? ऐसे मामलों का मज़ाक उड़ाना और उन्हें उपहास का विषय बनाना - यह कितना उचित है?"

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