बिहार का बिखरा हुआ मजदूर वर्ग, जानिए- क्यों हर चुनाव में रोजगार बन जाता है यहां का बड़ा मुद्दा

चिंता की बात ये है कि इनमें से लगभग 3 करोड़ लोग बिहार से बाहर दूसरे राज्यों में प्रवासी मजदूर हैं. प्रवासियों की संख्या के लिहाज से बिहार पूरे देश में उत्तर प्रदेश के बाद दूसरे नंबर पर है, यह आंकड़ा 16 जुलाई तक के eShram पोर्टल पर दर्ज रजिस्ट्रेशनों पर आधारित है.

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प्रतीकात्मक फोटो प्रतीकात्मक फोटो

सम्राट शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 22 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 9:32 PM IST

बहुत लंबे समय से बिहार के युवाओं के लिए राज्य के बाहर ही एक बेहतर भविष्य की कल्पना और उसे हासिल करना संभव हो पाया है. स्थानीय स्तर पर नौकरियों की भारी कमी, कम औद्योगिकीकरण, प्राइवेट सेक्टर की सीमित भागीदारी और अनौपचारिक रोजगार पर अत्यधिक निर्भरता ने करोड़ों बिहारवासियों को दूसरे राज्यों की ओर जाने पर मजबूर किया है.

करोड़ों प्रवासी मजदूर!

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बिहार की कुल आबादी करीब 13 करोड़ है, जिसमें से लगभग 10 करोड़ लोग 15 साल से ऊपर की उम्र के हैं. चिंता की बात ये है कि इनमें से लगभग 3 करोड़ लोग बिहार से बाहर दूसरे राज्यों में प्रवासी मजदूर हैं. प्रवासियों की संख्या के लिहाज से बिहार पूरे देश में उत्तर प्रदेश के बाद दूसरे नंबर पर है, ये आंकड़ा 16 जुलाई तक के eShram पोर्टल पर दर्ज रजिस्ट्रेशनों पर आधारित है.

इतनी बड़ी संख्या में लोग राज्य से बाहर जा रहे हैं, तो इसकी एक बड़ी वजह बिहार का सबसे कम वर्कर-पॉपुलेशन रेशियो होना है. यानी राज्य की कुल आबादी के मुकाबले कितने लोग काम कर रहे हैं, उसका अनुपात जुलाई 2023 से जून 2024 तक के पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) के अनुसार बिहार का WPR सिर्फ 33.5% था, जबकि पूरे भारत का औसत 43.7% और सिक्किम का सबसे ज्यादा 60.2% था.

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बिहार में रोजगार या बिजनेस के अवसर और भी ज्यादा अहम इसलिए हो जाते हैं क्योंकि यहां देश में सबसे ज्यादा निर्भर आबादी है. सिक्किम में यह अनुपात 32.4%, पूरे भारत में औसतन 47.5%, जबकि बिहार में यह आंकड़ा 66.3% है.

डिपेंडेंसी रेशियो जितना ज्यादा होता है, उतना ही ज्यादा बोझ काम कर रहे लोगों और सरकार पर होता है. बच्चों और बुजुर्गों के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य सामाजिक सेवाएं देना मुश्किल हो जाता है.

सबसे कम प्रति व्यक्ति आय

जब रोजगार के मौके कम हों और डिपेंडेंट लोग ज्यादा हों, तो इसका सीधा असर राज्य की खुशहाली पर पड़ता है. आर्थिक मामलों के विभाग (Department of Economic Affairs) के मुताबिक, वित्त वर्ष 2023-24 में बिहार में एक व्यक्ति की सालाना औसत आय सिर्फ ₹32,227 थी, यानी महीने के हिसाब से सिर्फ ₹2,686. 10 साल पहले यह ₹22,776 थी. तुलना करें तो, सिक्किम की प्रति व्यक्ति सालाना आय ₹2.92 लाख और उत्तर प्रदेश की ₹50,341 रही.

राजनीति और रोजगार: बयानबाजी बनाम वादे

विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने हाल ही में कहा कि बिहार के युवाओं को भाषण नहीं, रोजगार चाहिए. वहीं, विधानसभा चुनाव से पहले, नीतीश कुमार सरकार ने राज्य की सभी सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए 35% आरक्षण का ऐलान किया है. सरकार ने अगले पांच सालों में 1 करोड़ नौकरियां और रोजगार के अवसर सृजित करने की मंजूरी भी दी है.

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