'महाराष्ट्र की पहचान और विरासत पर खतरा...', स्कूलों में हिंदी अनिवार्य करने को लेकर शरद पवार की पार्टी ने जताई चिंता

एनसीपी (SP) ने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि इस कदम को राज्य की सांस्कृतिक और भाषाई सुरक्षा को खत्म करने की एक जानबूझकर की गई कोशिश के रूप में देखा जा रहा है.

Advertisement
शरद पवार (फाइल फोटो) शरद पवार (फाइल फोटो)

ऋत्विक भालेकर

  • मुंबई,
  • 22 अप्रैल 2025,
  • अपडेटेड 6:39 AM IST

महाराष्ट्र (Maharashtra) के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को लिखे एक पत्र में, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) शरद पवार गुट ने अपने महाराष्ट्र प्रवक्ता नितिन देशमुख के जरिए महाराष्ट्र की शैक्षिक प्रणाली में हिंदी को लागू करने पर गंभीर चिंता जताई है. उन्होंने इसे राज्य की भाषाई पहचान और सांस्कृतिक विरासत के लिए खतरा बताया है.

के.आर. सुंदरम बनाम भारत संघ (1986) और तमिलनाडु वी.के. श्याम सुंदर (2011) सहित सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसलों का हवाला देते हुए, एनसीपी ने जोर देकर कहा कि हिंदी संवैधानिक रूप से सर्वोच्च नहीं है. पार्टी का तर्क है कि प्राथमिक विद्यालयों में हिंदी को अनिवार्य रूप से शामिल करने से मराठी कमजोर होती है, जो भारतीय संविधान में अनुच्छेद 29 और 30 के तहत स्थापित भाषाई विविधता के सिद्धांतों का उल्लंघन है.

Advertisement

'भाषाई सुरक्षा को खत्म करने की कोशिश...'

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) स्थानीय भाषा शिक्षा पर जोर देती है. हालांकि, एनसीपी का तर्क है कि हिंदी को जबरन शामिल करना NEP की तीन-भाषा फॉर्मूले का खंडन करता है, जो राज्यों की स्वायत्तता का सम्मान करता है. पार्टी ने चेतावनी दी है कि यह नीति महाराष्ट्र राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1960 को खतरे में डालती है, जिसने महाराष्ट्र को भाषाई राज्य के रूप में स्थापित किया था. इस कदम को राज्य की सांस्कृतिक और भाषाई सुरक्षा को खत्म करने की एक जानबूझकर की गई कोशिश के रूप में देखा जा रहा है.

इसलिए, एनसीपी (शरद पवार) गुट ने हिंदी को जरूरी बनाने के फैसले को तुरंत वापस लेने, मराठी को शिक्षा के प्राथमिक माध्यम के रूप में बहाल करने और महाराष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान की रक्षा के लिए शैक्षिक नीतियों को आकार देने में शिक्षकों, अभिभावकों और भाषाविदों की भागीदारी की मांग की है. 

Advertisement

यह भी पढ़ें: महाराष्ट्र में हिंदी को अनिवार्य करने पर विवाद, विपक्ष ने जताया विरोध

राज्य के नेतृत्व में यकीन जताते हुए, नितिन देशमुख ने अधिकारियों से इन चिंताओं को दूर करने और संवैधानिक सिद्धांतों और भाषाई विविधता के मुताबिक फैसला लेने की गुजारिश की है. 

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement