'इतने असंवेदनशील कैसे हो सकते हैं?', कोविड में जान गंवाने वाली नर्स को मुआवजा नहीं मिलने पर HC की महाराष्ट्र सरकार को फटकार

याचिका में महाराष्ट्र सरकार के उस आदेश को चुनौती दी गई थी जिसमें पुणे के रहने वाले सुधाकर पवार के मुआवजे के दावे को खारिज कर दिया गया था. सुधाकर ससून अस्पताल में नर्स के रूप में काम करने वाली अनीता राठौड़ (पवार) के पति हैं. अनीता की अप्रैल 2020 में कोविड काल के दौरान मृत्यु हो गई थी.

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बॉम्बे हाई कोर्ट (फाइल फोटो) बॉम्बे हाई कोर्ट (फाइल फोटो)

विद्या

  • मुंबई,
  • 17 अप्रैल 2024,
  • अपडेटेड 5:23 PM IST

बॉम्बे हाई कोर्ट ने बुधवार को कोविड काल के दौरान जान गंवाने वाली पुणे की एक नर्स के परिवार को मुआवजा देने से इनकार करने के लिए महाराष्ट्र सरकार को कड़ी फटकार लगाई. जस्टिस जीएस कुलकर्णी और एफपी पूनीवाला की बेंच इस याचिका पर सुनवाई कर रही थी. 

याचिका में महाराष्ट्र सरकार के उस आदेश को चुनौती दी गई थी जिसमें पुणे के रहने वाले सुधाकर पवार के मुआवजे के दावे को खारिज कर दिया गया था. सुधाकर ससून अस्पताल में नर्स के रूप में काम करने वाली अनीता राठौड़ (पवार) के पति हैं. अनीता की अप्रैल 2020 में कोविड काल के दौरान मृत्यु हो गई थी.

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अनीता को मिला 'कोविड शहीद' का दर्जा

बेंच ने कहा कि अनीता के पति ने अपनी याचिका में बताया है कि उनकी पत्नी पूरी तरह स्वस्थ थीं लेकिन कोविड मरीजों के इलाज के दौरान वह बेहद तनाव में थीं. बेंच ने कहा कि अनीता राठौड़ हेल्थ वॉरियर्स की उस टीम का हिस्सा थीं जिसने अस्पताल में कोविड मरीजों की देखभाल करने के लिए अपनी जान को जोखिम में डाला. हॉस्पिटल एंड ट्रेंड नर्सेज एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने उन्हें 'कोविड शहीद' का दर्जा भी दिया.  

याचिका में दिया सरकारी रेजोल्यूशन का हवाला

जस्टिस कुलकर्णी ने कहा, 'उन परिस्थितियों में अनीता ने मरीजों की देखभाल करते हुए और ड्यूटी से अधिक समय तक काम करते हुए अपने जीवन का बलिदान दिया.' याचिका में 29 मई, 2020 के राज्य सरकार के उस रेजोल्यूशन (GR) का हवाला दिया गया, जिसमें उन सरकारी कर्मचारियों के परिजनों को 50 लाख रुपए का मुआवजा दिया गया था, जिनकी महामारी के दौरान स्वास्थ्य सेवाओं के समर्थन में ड्यूटी करते हुए मृत्यु हो गई थी.

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पवार ने खटखटाया हाई कोर्ट का दरवाजा

याचिका में दावा किया गया कि मामला सरकार के रेजोल्यूशन के अंतर्गत आता है. पवार ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था जिस पर अदालत ने पिछले साल नवंबर में अधिकारियों को मुआवजे के लिए उनकी एप्लीकेशन पर फैसला लेने का निर्देश दिया. हालांकि अधिकारियों ने एप्लीकेशन को खारिज कर दिया था जिसके बाद पवार दोबारा हाई कोर्ट पहुंचे. बुधवार को सुनवाई के दौरान सरकारी वकील ने कहा कि पवार ने केंद्र की योजना के तहत मुआवजे की मांग की थी न कि GR के तहत.

बेंच ने दो हफ्ते में अधिकारियों से मांगा जवाब

यह सुनकर जस्टिस कुलकर्णी ने कहा, 'आप इतने असंवेदनशील कैसे हो सकते हैं? ऐसी आपत्तियां न उठाएं जो असमर्थनीय और गलत हों. हमारे हाई कोर्ट के कर्मचारियों को भी इस स्कीम के तहत मुआवजा मिला है. जब किसी ऐसे व्यक्ति की बात हो जिसकी मृत्यु इस तरह हुई है तो उस पर तकनीकी तर्क न दें.'

बेंच ने अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता मुआवजे का हकदार है. पीठ ने कहा कि केंद्र सरकार ने उक्त योजना के तहत राज्य सरकारों के लिए धन आवंटित किया था, जिसमें कोविड-19 के दौरान ड्यूटी करते हुए जान गंवाने वाले कर्मचारियों के परिजनों को 50 लाख रुपए का मुआवजा दिया गया था. पीठ ने अधिकारियों से दो हफ्ते के भीतर याचिका पर जवाब दाखिल करने को कहा कि क्यों विवादित आदेश को रद्द नहीं किया जाए. इसके बाद कोर्ट याचिका पर सुनवाई करेगा.

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