अश्विनी बिद्रे हत्याकांड: कोर्ट ने कहा- पुलिसकर्मियों की ओर से जानबूझकर चूक हुई

कोर्ट ने कहा कि ये चूक जानबूझकर की गई थी और उन्हें माफ नहीं किया जाना चाहिए. जांच में जानबूझकर की गई इन चूकों को आगे की कार्रवाई के लिए नवी मुंबई के पुलिस आयुक्त के संज्ञान में लाया जाना चाहिए.

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अश्विनी बिद्रे हत्याकांड अश्विनी बिद्रे हत्याकांड

विद्या

  • मुंबई,
  • 22 अप्रैल 2025,
  • अपडेटेड 1:12 AM IST

महाराष्ट्र (Maharashtra) की एक अदालत ने सोमवार को राष्ट्रपति पदक विजेता पूर्व पुलिस निरीक्षक अभय कुरुंदकर को 2016 में सहायक पुलिस निरीक्षक अश्विनी बिद्रे-गोर (37) की हत्या के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई, जिसके साथ उनका प्रेम प्रसंग चल रहा था. कोर्ट ने ये भी कहा कि जांच करने वाले पुलिसकर्मियों की ओर से चूक हुई और ये चूक जानबूझकर की गई थी. मामले में फैसला सोमवार को सुनाया गया और न्यायाधीश ने फैसले की एक प्रति पुलिस आयुक्त को भेजी और निर्देश दिया कि वह टिप्पणियों और निर्देशों पर गौर करें.

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न्यायाधीश केआर पालदेवर द्वारा पारित आदेश में कहा गया है, "इंसाफ केवल किया जाना ही नहीं बल्कि इंसाफ होते हुए दिखना भी चाहिए, इस सिद्धांत के आधार पर इसे सावधानीपूर्वक लागू किया जाना चाहिए, न कि अदालत के इन निर्देशों को केवल कागजों पर ही रखना चाहिए." 

'जांच में चूक हुई...'

बिद्रे के परिवार ने सबसे पहले साल 2016 में उसके लापता होने की शिकायत दर्ज कराई थी, क्योंकि उसका पता नहीं चल पाया था. कोर्ट ने पाया कि जांच अधिकारियों की ओर से गुमशुदगी की जांच और अपराध की जांच में चूक हुई थी. कोर्ट ने कहा कि ये चूक जानबूझकर की गई थी और उन्हें माफ नहीं किया जाना चाहिए. जांच में जानबूझकर की गई इन चूकों को आगे की कार्रवाई के लिए नवी मुंबई के पुलिस आयुक्त के संज्ञान में लाया जाना चाहिए.

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जज ने कहा कि बिद्रे के अलग हुए पति राजू गोरे ने तत्कालीन पुलिस कमिश्नर हेमंत नागराले और एक अन्य पुलिस अधिकारी तुषार दोशी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी. उस वक्त गोरे ने आरोपियों के खिलाफ अपराध दर्ज करने के लिए लिखित शिकायत की थी, यहां तक ​​कि व्यक्तिगत रूप से नवी मुंबई के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर से भी मुलाकात की थी, फिर भी उन्होंने उनकी शिकायत पर संज्ञान नहीं लिया था.

इसके अलावा, जज ने बताया किया कि गोरे और उनकी बेटी को कथित तौर पर अपशब्द कहे गए थे. वे इस भावना के साथ वापस आए कि पुलिस विभाग महिला पुलिस अधिकारियों के खिलाफ है, जिनका विभाग में कोई सम्मान और प्रतिष्ठा नहीं है.

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'उचित कार्रवाई की जरूरत...'

जज ने निर्देश दिया कि इन सभी तथ्यों को नवी मुंबई के मौजूदा पुलिस आयुक्त के ध्यान में लाया जाना चाहिए, जिससे राजू गोरे की शिकायत पर आगे की उचित कार्रवाई के लिए उनसे बात की जा सके. जज ने कहा कि गुमशुदगी की शिकायत दर्ज होने के बाद भी, जिन पुलिसकर्मियों को जांच करनी थी, उन्होंने ऐसा नहीं किया. जज ने कहा, "इन दोनों जांच अधिकारियों की ओर से की गई चूक जानबूझकर की गई थी और इसके लिए उनके खिलाफ उचित कार्रवाई की जरूरत है."

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जज ने कहा कि अगर शिकायत दर्ज होते वक्त ही बिद्रे को पकड़ने के लिए तुरंत कार्रवाई की गई होती, तो आरोपी के खिलाफ और भी सबूत होते. जानबूझकर की गई चूक और जांच में देरी की वजह से सबसे अच्छे उपलब्ध सबूत नहीं मिल पाए. यह दुखद है कि एक महिला पुलिस अधिकारी की बेरहमी से हत्या कर दी गई और उसके धड़ और शरीर के कुछ हिस्सों को नाले में फेंक दिया गया, जबकि पुलिस ने इस अपराध का संज्ञान लेने के लिए तुरंत कदम नहीं उठाया, जबकि उनके पास पर्याप्त सबूत थे. ये माफ करने योग्य नहीं हैं."

न्यायाधीश ने कहा कि हाई कोर्ट के निर्देश पर FIR दर्ज होने के बाद मामले की जांच कर रहे पुलिसकर्मियों ने भी आरोपी को बचाने के लिए गंभीर चूक की थी.

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