जन्म से दिव्यांग लेकिन फौलादी जज़्बा... झारखंड के टीचर गुलशन पैरों से लिखकर सपनों को दे रहे उड़ान

बिना हाथ के जन्मे गुलशन लोहार पैरों से लिखकर गणित पढ़ाते हैं. मां से सीखी हिम्मत और संघर्ष ने उन्हें गांव का ‘प्रेरणा का स्तंभ’ बना दिया. पढ़ाई के लिए रोज़ 65 किलोमीटर सफर किया करते थे और आज भी स्थायी नौकरी के इंतज़ार में हैं.

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पैरों से लिखकर बच्चों को पढ़ाते हैं गुलशन लोहार (Photo: ITG) पैरों से लिखकर बच्चों को पढ़ाते हैं गुलशन लोहार (Photo: ITG)

सत्यजीत कुमार

  • रांची,
  • 11 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 2:59 PM IST

झारखंड के बरंगा गांव के 'गुरुजी' गुलशन लोहार जन्म से बिना हाथ के हैं, लेकिन उनका हौसला आसमान की ऊंचाई को छूता है. दिव्यांगता उनके सपनों के आगे कभी दीवार नहीं बन पाई. वो ब्लैकबोर्ड पर पैरों से लिखते हैं और अपने विद्यार्थियों को पढ़ाते हैं. पांच भाई-बहनों में सबसे छोटे गुलशन लोहार की मां ने ही उन्हें पैरों से लिखना सिखाया और आगे बढ़ने की राह दिखाई. 

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गुलशन ने अपने गांव से 65 किलोमीटर दूर चक्रधरपुर तक रोज़ाना ट्रेन से सफर करते हुए बीएड और एमएड की पढ़ाई पूरी की. गुलशन ने पढ़ाई के बाद पश्चिमी सिंहभूम के तत्कालीन उपायुक्त से नौकरी के लिए संपर्क किया. 

साल 2011 में उन्हें SAIL की पहल पर बरंगा उत्क्रमित उच्च विद्यालय में संविदा पर गणित शिक्षक के रूप में नियुक्ति मिली. आज भी उन्हें स्थायी सरकारी नौकरी न मिलने का मलाल है, लेकिन वह पत्नी और बेटी के बेहतर भविष्य के लिए लगातार संघर्षरत हैं.

मां बनीं सबसे बड़ी ताकत...

गुलशन लोहार के जन्म पर उनके परिवार में निराशा का क्षण तब आया था, जब उनकी मां ने एक हफ्ते तक उन्हें स्तनपान कराने से इंकार कर दिया था. लेकिन वक्त के साथ उनकी मां ही उनकी सबसे बड़ी ताकत बनीं. मां ने ही उन्हें यह सिखाया कि पैरों की उंगलियों से कैसे लिखना है और उन्हें जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा दी.

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जद्दोजहद से भरा सफर और एजुकेशन...

गुलशन बचपन से ही पैरों की उंगलियों से लिखते आए हैं और उनका शैक्षणिक प्रदर्शन हमेशा शानदार रहा है. उन्होंने कहा कि उनकी ज़िंदगी का मकसद यह साबित करना है कि दिव्यांगता किसी इंसान की मंज़िल तय नहीं करती. गांव लौटकर उन्होंने शिक्षा की कमी को दूर करने का संकल्प लिया.

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प्रेरणा का स्तंभ 'गुरुजी'

गुलशन लोहार बच्चों के मन में उम्मीद जगाते हैं और उन्हें बताते हैं कि परिस्थितियां चाहे कैसी भी हों, सपनों की उड़ान रोकी नहीं जा सकती. यही वजह है कि गांव के लोग उन्हें 'प्रेरणा का स्तंभ' कहकर पुकारते हैं और बच्चे उन्हें प्यार से 'गुरुजी' कहते हैं.

छात्र और सहकर्मी देते हैं मिसाल

क्लास 10 के एक छात्र ने कहा कि सर के पढ़ाने में कभी महसूस नहीं होता कि वह दिव्यांग हैं, वह बहुत सरल तरीक़े से समझाते हैं और कभी नाराज़ नहीं होते. शिक्षिका सुनीता कंठ कहती हैं कि गुलशन सर मानसिक रूप से हम सबसे कहीं ज्यादा मजबूत हैं और उनसे रोज़ कुछ न कुछ सीखने को मिलता है. प्राचार्य राजीव शंकर महतो ने कहा कि गुलशन लोहार इस बात का जीवंत उदाहरण हैं कि अटल निश्चय हो तो सम्मानजनक जीवन जिया जा सकता है.

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गांव वालों का गर्व

बरंगा गांव के बुजुर्ग दशरथ महतो कहते हैं, "गुलशन लोहार उनके लिए सिर्फ़ शिक्षक नहीं, बल्कि उनकी शान हैं. उनकी यात्रा यह सिखाती है कि मुश्किलें कितनी भी बड़ी क्यों न हों, लक्ष्य हमेशा ऊंचा होना चाहिए."

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