गुजरात: पाटण में कार्तिक पूर्णिमा का मेला बजा रहा खतरे की घंटी, 7 दिन में आते हैं 12 लाख लोग

गुजरात के पाटण जिले के सिद्धपुर में दीपावली के बाद कार्तिक पूर्णिमा का सबसे बड़ा मेला लगता है. सिद्धपुर की सरस्वती नदी कई सालों से सूखी पड़ी थी. मगर, स्थानीय लोगों की कोशिशों से गुजरात के मुख्यमंत्री ने नदी में पानी पहुंचवाया है. अब यहां की मिट्टी का टेस्ट करना जरूरी है कि वह झूला लगाने लायक है या नहीं.

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सरस्वती नदी के कारण मिट्टी में नमी है. लिहाजा यह टेस्ट करना जरूरी है कि वह बड़े झूले लगाने लायक है या नहीं. सरस्वती नदी के कारण मिट्टी में नमी है. लिहाजा यह टेस्ट करना जरूरी है कि वह बड़े झूले लगाने लायक है या नहीं.

विपिन प्रजापति

  • पाटण,
  • 04 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 5:40 PM IST

गुजरात के पाटण जिले के सिद्धपुर में दीपावली के बाद कार्तिक पूर्णिमा मेला लगता है. यह उत्तर गुजरात का सबसे बड़ा मेला होता है. इसमें गुजरात भर से लाखों श्रद्धालु पवित्र मास में पूजा-अर्चना के लिए आते हैं. यहां 7 दिनों तक चलने वाले मेले में करीब 12 लाख से ज्यादा लोग पहुंचते हैं. मगर, इस बार मोरबी में हुए हादसे के बाद इस मेले को लेकर लोग डरे हुए हैं. 

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सिद्धपुर की सरस्वती नदी कई सालों से सूखी पड़ी थी. मगर, स्थानीय लोगों की कोशिशों से गुजरात के मुख्यमंत्री के द्वारा नदी में पानी पहुंचा गया है. जलस्तर को ऊपर लाने के लिए करीबन 4 महीने से पानी धरोई और नर्मदा डेम से छोड़ा गया है. इससे नदी में पानी आ गया और आस-पास का जलस्तर भी ऊपर उठ गया है. 

नदी का प्रवाह मेला लगने के 15 दिनों पहले मोड़ा गया है.

मगर, नगरपालिका ने पैसों के चक्कर में बिना किसी जांच के मेले के लिए प्लॉटों की नीलामी कर दी. 15 दिन पहले मेले के लिए पानी के प्रवाह को मोड़ा गया है. नगरपालिका के सत्ताधीश अधिकारियों ने लोगों की जान की परवाह किए बिना मेला लगाने का फैसला कर दिया. 

नदी में बड़े झूले लगना असंभव : सॉइल टेस्ट कराने की मांग  

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बड़े झूले लगाने से पहले मिट्टी की जांच की जाने की मांग की जा रही है.

नगरपालिका के सदस्य अंकुर मारफतिया ने नगरपालिका के चीफ ऑफिसर और पालिका अध्यक्ष को लिखित जानकारी दी है. उन्होंने बताया की नदी के आस-पास के इलाकों में जल स्तर बढ़ाने के लिए सासंद के द्वारा सरकार को कहा गया था. इसके बाद कई सालों से सूखी नदी में पानी आया है. 

मगर, हर साल होने वाले इस मेले में नदी की मिट्टी में नमी और पानी की मात्रा को देखते हुए बड़ा झूला न लगाया जाए. पहले सॉइल टेस्ट किया जाए. मिटटी झूले लगाने लायक है या नहीं, पहले इसकी जांच की जाए और फिर मेला लगाने की परमिशन दी जाए, ताकि होने वाले हादसों को टाला जा सके. 

7 दिन चलने वाले मेले में 12 लाख से ज्यादा लोग आते हैं. मगर, मोरबी हादसे के बाद लोग सहमे हैं.

प्रशासनिक अधिकारी हर चीज में अपना रहे हैं शॉर्टकट 

मोरबी में हुए हादसे के बाद आम लोगों में डर का माहौल है. जिस तरह से मोरबी की घटना हुई, उसके बाद प्रशासन ने गुजरात में हर जगह बने केबल ब्रिज, कमजोर ब्रिज की जांच शुरू कर दी है. साथ ही शंका होने पर ऐसे पुल तुरंत बंद करके जांच की बात भी गुजरात सरकार कर रही है. 

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मगर, प्रशासन हर चीज में शॉर्क कट अपनाना चाहती है. नियमों के मुताबित अधिकारी काम नहीं करते हैं, जिसके कारण बड़े हादसे होते हैं. 

इन बातों क्या ध्यान रखा जाना चाहिए 

  • जमीन का सॉइल टेस्ट जरूरी हैं
  • यूटिलिटी की परमिशन दी जाए 
  • यूटिलिटी के मुताबिक लोगों का बीमा कराना जरूरी
  • जो झूले लगने वाले हैं, उनके फिटनेस सर्टिफिकेट देखे जाएं 

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