भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) की एक स्टडी में पता चला है कि राजधानी दिल्ली के स्थानीय क्षेत्रों में फैल रहे प्रदूषण के सभी सोर्स से निपटा जाए तो आबोहवा में काफी सुधार हो सकता है. आईआईटी दिल्ली ने अपनी इस स्टडी को दिल्ली के जहांगीरपुरी, रोहिणी और करोलबाग में किया है और पाया कि छोटे-छोटे कदम उठाकर प्रदूषण को कम किया जा सकता है. स्थानीय क्षेत्र में फैले हुए प्रदूषण स्रोतों से निपटने के चलते पर्टिकुलेट मैटर (PM) 2.5 में 15 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आई है. जहांगीरपुरी में तो 26% तक PM 2.5 कम हुआ है.
PM यानी हवा के वो पार्टिकल्स, जिनकी डायमीटर 2.5 माइक्रॉन या उससे कम है. रिपोर्ट में कहा गया कि स्थानीय क्षेत्रों में वायु प्रदूषक तत्व टूटी-फूटी सड़कों, निर्माण कचरे की गलत तरीके डंपिंग, कचरे को जलाने, टूटी फुटपाथों के कारण फैलते हैं और वायु प्रदूषण फैलाते हैं. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि निर्माण अपशिष्ट, धूल और कचरे को साफ करने जैसे कुछ आसान उपाय अपनाकर वायु प्रदूषण को कम कर सकते हैं. यानी सड़कों और फुटपाथ को ठीक रखा जाए और कूड़े का अंबार ना लगने दिया जाए तो प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई जीतने में बड़ी मदद मिल सकती है.
जमीनी स्तर पर दिखा स्पष्ट प्रभाव
'द इंपैक्ट ऑफ द डिस्पर्स्ड सोर्सेज प्रोग्राम ऑन लोकल एयर क्वालिटी' नाम की स्टडी में इन स्रोतों को घटाने पर स्थानीय हवा की गुणवत्ता में होने वाले सुधार संबंधी प्रभावों का आकलन किया गया है. पोर्टेबल कम लागत वाले सेंसर (PLCS) के जरिए कराई गई स्टडी से जमीनी स्तर पर स्पष्ट प्रभाव सामने आया है. इसे देश के सभी शहरों द्वारा अपनाने की सलाह दी गई है.
यह अध्ययन कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट (CAQM- NCR) के दिशा- निर्देशन में संचालित डिस्पर्स्ड सोर्सेज प्रोग्राम (DSP) पर आधारित है. दिल्ली में प्रोग्राम के तहत 12 शहरी स्थानीय निकायों को जोड़ा गया. जबकि दिल्ली नगर निगम इस प्रोग्राम में नोडल एजेंसी के रूप में जुड़ा.
स्टडी में क्या किया गया?
इस स्टडी को दिल्ली में तीन इलाकों जहांगीरपुरी, रोहिणी और करोलबाग में किया गया. यहां जुलाई 2023 से मार्च 2024 के दौरान स्टडी की गई और 35 PLCS लगाए गए. यह अध्ययन प्रोफेसर साग्निक डे, सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक साइंसेज, आईआईटी दिल्ली की देखरेख में किया गया.
प्रभाव का मूल्यांकन किस तरह किया गया?
इस अध्ययन के तहत पीएम 2.5 को कम करने के प्रभावों का आकलन किया गया. अध्ययन के तहत सरकार के कॉन्टीनुअस एम्बिएंट एयर क्वालिटी मॉनीटरिंग स्टेशन (CAAQMS) और PLCS से प्राप्त आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया. इस स्टडी की परिकल्पना यह थी कि यदि प्रोग्राम का प्रभाव मापने योग्य होता है तो PLCS और सबसे नजदीकी CAAQMS द्वारा एकत्र आंकड़ों के बीच पर्याप्त अंतर होगा. इस परिकल्पना को वैध करने के लिए 'अंतर का अंतर' विधि को अपनाया गया. एक निश्चित अवधि के दौरान PLCS और CAAQMS डेटा उपलब्ध हैं. इससे शोध टीम को स्थानीय वायु गुणवत्ता पर फैले हुए प्रदूषक स्रोतों के समाधान के चलते उत्पन्न प्रभावों का सही तरीके से आकलन करने में मदद मिली.
प्रमुख नतीजे
इस अध्ययन ने डिस्पर्स्ड सोर्सेज प्रोग्राम के फायदों को रेखांकित किया है. इसमें पाया गया कि स्थानीय स्तर पर ही समस्याओं का समाधान करने से पीएम 2.5 की मात्रा में काफी हद तक कमी लायी जा सकती है. इस अध्ययन में पाया गया कि पीएम 2.5 में जहांगीरपुरी में 26.6 प्रतिशत, रोहिणी में 15.7 प्रतिशत और करोलबाग में 15.3 प्रतिशत तक कमी आयी.
विशेषज्ञों का क्या कहना है... प्रोफेसर साग्निक डे ने इन नतीजों के बारे में बताया, हम स्थानीय क्षेत्र में फैले हुए वायु प्रदूषण के स्रोतों से निपटने के लिए समाधान तलाशने वाले इस प्रकार के अध्ययन को आईआईटी दिल्ली में किए जाने पर गौरवान्वित हैं. यह पहला अवसर है, जबकि हमने पोर्टेबल कम लागत सेंसर (पीएलसीएस) का इस्तेमाल कर, स्पष्ट रूप से संभावित प्रभावों को प्रदर्शित किया है. इस दौरान पीएम 2.5 के स्तरों में उल्लेखनीय कमी आयी है और यह डेटा संचालित दृष्टिकोण की संभावनाओं को दिखाती है. हमारे शोध से इस बात के भी पर्याप्त प्रमाण मिले हैं कि दीर्घकालिक प्रदूषण स्रोतों पर नियंत्रण करने से वायु गुणवत्ता में सार्थक और स्थायी रूप से सुधार संभव है. हम सिफारिश करते हैं कि व्यापक रूप से नीतिगत बदलावों को साकार करने और वायु गुणवत्ता के प्रबंधन के लिए देशभर के शहरों द्वारा इस प्रोग्राम को अपनाया जाना चाहिए.
दिल्ली नगर निगम के अतिरिक्त आयुक्त तारिक थॉमस ने कहा, यह राजधानी दिल्ली के घनी आबादी वाले शहरी इलाकों में वायु गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए स्थानीय प्रदूषक स्रोतों से निपटने की दिशा में उल्लेखनीय पहल है. आईआईटी दिल्ली द्वारा कराए गए इस अध्ययन ने एमसीडी और ए-पीएजी के संयुक्त प्रयासों की सफलता को रेखांकित करने के साथ-साथ यह भी प्रदर्शित किया है कि गड्ढों की मरम्मत, निर्माण कार्यों के मलबे, और सड़कों की हालत में सुधार करने जैसे प्रयासों से शहरों की वायु गुणवत्ता में सुधार लाया जा सकता है. दिल्ली नगर निगम ने धूल-धक्कड़ को नियंत्रित करने, कचरा प्रबंधन प्रणालियों को सुदृढ़ बनाने और स्थानीय लोगों के सहयोग से वातावरण को अधिक स्वच्छ और सेहतपूर्ण बनाने की दिशा में सक्रिय रूप से काम किया है. हमें पूरा भरोसा है कि यह प्रोग्राम दिल्ली के वातावरण के लिए अधिक व्यापक, अधिक सस्टेनेबल प्रभावों को पैदा कर सकता है.
क्यों है यह अध्ययन महत्वपूर्ण?
देश के अन्य शहरों की तरह दिल्ली में भी वायु प्रदूषण की समस्या काफी है. इस प्रकार के प्रोग्रामों से यह पता चला है कि स्थानीय और प्रबंधनयोग्य प्रदूषण स्रोतों पर ध्यान देकर वायु गुणवत्ता में, खासतौर से शहरी इलाकों में काफी हद तक सुधार किया जा सकता है. स्थानीय प्रयासों से पीएम 2.5 को घटाने में इस प्रोग्राम की सफलता के मद्देनज़र इसे देश के अन्य शहरों में भी नेशनल क्लीन एयर एक्शन प्लान (एनसीएपी) के अंतर्गत अपनाया जा सकता है.
डिस्पर्स्ड सोर्सेज़ प्रोग्राम (डीएसपी) क्या है?
सीएक्यूएम-एनसीआर के मार्गदर्शन में ए-पीएजी प्रदूषण के बिखरे स्रोतों - जिनमें खासतौर से धूल-धक्कड़ और कचरा शामिल है, पर केंद्रित एक प्रोग्राम का संचालन करता है. यह प्रोग्राम दीर्घकालिक मुद्दों जैसे टूटी-फूटी सड़कों, क्षतिग्रस्त फुटपाथों, बड़े गड्ढों और कई कम अवधि के मसलों जैसे निर्माण और अपशिष्ट मलबा तथा सड़कों के किनारे जमा होने वाले कचरे से संबंधित होता है. यह प्रोग्राम इन चुनौतियों से कारगर तरीके से निपटने के लिए नगर निगमों और शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) को महत्वपूर्ण सहयोग प्रदान करता है. दिल्ली में 2020 में शुरू किए गए इस प्रोग्राम का दायरा बढ़ाकर 2023 में इसमें गाजियाबाद, गुरुग्राम, नोएडा और 2024 में फरीदाबाद को भी शामिल किया गया. यह प्रोग्राम फिलहाल दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार के 13 शहरों में सक्रिय है.
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