राजधानी में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कल्याण को लेकर खूब सियासत हुई है, लेकिन दिल्ली सरकार के खर्च का ब्यौरा कुछ अलग ही कहानी बयान करता है. आम आदमी पार्टी (AAP) के विधायक वीर सिंह धींगान की ओर विधानसभा में पूछे गए सवाल और दिल्ली के मंत्री प्रवेश वर्मा के जवाब से कई अहम तथ्य सामने आए हैं. सवाल पिछले 6 साल में दिल्ली सरकार की ओर से इन वर्गों पर हुए खर्च से जुड़ा था. लेकिन सरकार इसमें बड़ी रकम खर्च करने में पूरी तरह विफल रही है.
एससी-एसटी बजट कैसे खर्च किया?
दिल्ली में 2015 से 2025 तक आम आदमी पार्टी की सरकार रही. सरकार ने अपने हर बजट भाषण में बड़ी-बड़ी योजनाओं का ऐलान किया. सबसे ज्यादा आवंटन 2022-23 के दौरान किया गया, जब इन वर्गों के लिए 582 करोड़ रुपये से अधिक के बजट की घोषणा की गई. पिछले वित्तीय वर्षों, 2020-21 और 2021-22 में एससी/एसटी और पिछड़े वर्गों के लिए आवंटित बजट 400-400 करोड़ रुपये से ज्यादा था.
इन घोषणाओं के बावजूद दिल्ली सरकार ने वर्ष 2019-20 में सबसे ज्यादा 288.04 करोड़ रुपये खर्च किए, जो चुनावी साल में हुआ. 2020-21 में तत्कालीन केजरीवाल सरकार ने 433.65 करोड़ रुपये की बजट घोषणा के मुकाबले सिर्फ 49.29 करोड़ रुपये ही खर्च किए. 2023-24 में सरकार ने इस खाते में आवंटन को काफी कम कर दिया. उस वित्तीय वर्ष के दौरान सिर्फ 250 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था. फिर भी सरकार ने करीब एक तिहाई राशि करीब 91 करोड़ रुपये खर्च किए. चालू वित्त वर्ष 2024-25 में सरकार 170.78 करोड़ रुपये की बजट घोषणा के मुकाबले फरवरी तक सिर्फ 130 करोड़ रुपये ही खर्च कर सकी.
इन योजनाओं में खर्च नहीं हुआ फंड
दिल्ली में दलित और पिछड़ों के कल्याण के लिए 80 से ज़्यादा योजनाएं हैं. फंड का कम इस्तेमाल होने का मतलब है कि कल्याणकारी उपाय या तो ठीक से प्लान नहीं किए गए या फिर लाभार्थियों तक नहीं पहुंच पाए. उदाहरण के लिए 'एससी बस्तियों का सुधार' नाम की एक योजना है जिसके तहत वर्ष 2019-20 में 75 करोड़ रुपये का फंड आवंटित किया गया था, लेकिन 35 करोड़ रुपये से भी कम का इस्तेमाल किया गया. अगले साल, आवंटित 65 करोड़ रुपये में से खर्च सिर्फ 50 लाख रुपये हुए.
दिल्ली सरकार की 'जय भीम मुख्यमंत्री प्रतिभा विकास योजना' के तहत 2020-21 में 60 करोड़ रुपये के बजट का प्रावधान किया गया था, लेकिन साल के दौरान एक भी पैसा खर्च नहीं किया गया. यहां तक कि वित्तीय वर्ष 2022-23 और 2023-24 में क्रमशः 90 करोड़ रुपये और 30 करोड़ रुपये के बजट प्रावधानों के बावजूद खर्च जीरो ही रहा. वर्ष 2022-23 और 2023-24 के दौरान 'प्रतिष्ठित व्यक्तियों की जन्म और पुण्यतिथि योजना' के तहत खर्च जीरो रहा. इसी तरह एससी/एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक छात्रों के लिए बजट में तय किए गए फंड का बड़ा हिस्सा लगातार इस्तेमाल ही नहीं किया गया.
कुमार कुणाल