दिल्ली में बीजेपी ने बंपर जीत हासिल कर सातों लोकसभा सीटों पर कब्जा जमा तो लिया है, लेकिन सरकारी कर्मचारियों ने बीजेपी को एक कड़ा संदेश दिया है. सामान्य तौर पर चुपचाप काम करने वाले सरकारी कर्मचारियों ने अपने वोट के जरिए इन लोकसभा चुनावों में गुस्से का इजहार किया. सरकारी कर्मचारियों की सबसे ज्यादा तादाद नई दिल्ली लोकसभा क्षेत्र में है, जहां से बीजेपी की बांसुरी स्वराज जीतीं हैं, लेकिन इस जीत में भी उन इलाकों में जहां सरकारी कर्मचारी सबसे ज्यादा संख्या में रहते हैं वहां से स्वराज पिछड़ गईं.
तीन विधानसभाओं में रहते हैं सबसे ज्यादा सरकारी कर्मचारी
सरकारी कर्मचारियों के लिहाज से नई दिल्ली लोकसभा की तीन विधानसभाएं, नई दिल्ली, दिल्ली कैंट और आरके पुरम काफी महत्वपूर्ण हैं. इन्हीं इलाकों में केंद्र सरकार के अलग-अलग विभागों से जुड़े अधिकतर कर्मचारी और अधिकारी रहते हैं. नई दिल्ली लोकसभा में यूं तो कुल 10 विधानसभाएं आतीं हैं जिनमें 7 में बीजेपी की उम्मीदवार बांसुरी स्वराज आगे रहीं, उनमें आम आदमी पार्टी उम्मीदवार सोमनाथ भारती जिस मालवीय नगर विधानसभा से आते हैं वहां भी बांसुरी ने बीजेपी का झंडा बुलंद किया. यही नहीं दिल्ली के मंत्री सौरभ भारद्वाज की ग्रेटर कैलाश विधानसभा में भी बीजेपी आगे रही, लेकिन केंद्रीय कर्मचारियों की सबसे ज्यादा संख्या वाली तीन विधानसभाओं में बांसुरी स्वराज पिछड़ गईं.
सरकारी कर्मचारियों वाली विधानसभाओं में क्या रहे आंकड़े?
नई दिल्ली विधानसभा जहां से दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल विधायक हैं, वहां कुल 57668 वोट पड़े जिनमें से सोमनाथ भारती को 29257 वोट मिले और बांसुरी स्वराज को 26995 वोट से ही संतोष करना पड़े यानी अंतर 2200 वोटों का रहा. दिल्ली कैंट विधानसभा में कुल 40174 वोट पड़े जिनमें से बीजेपी को 19029 तो आम आदमी पार्टी को 20211 वोट हासिल हुए यानी अंतर लगभग 1200 वोटों का रहा. वहीं आरके पुरम विधानसभा में कुल 72439 वोट डाले गए जिसमें सोमनाथ भारती को 35965 वोट तो बांसुरी स्वराज को 35053 वोट मिल पाए यानी वोटों का अंतर 900 से कुछ अधिक रहा. जानकारों की मानें तो इन तीनों विधानसभाओं में 60 फीसदी से 90 फीसदी तक सरकारी कर्मचारी रहते हैं.
क्या हो सकती है नाराजगी की वजह?
केंद्र सरकार के कर्मचारियों की सबसे बड़ी मांग नए वेतन आयोग को लेकर है. सातवां वेतन आयोग साल 2014 में गठित हुआ था जिसे साल 2016 में लागू किया गया. केंद्रीय कर्मचारी चाहते हैं कि आठवां वेतन आयोग जल्द गठित किया जाए. साथ ही साथ, ओल्ड पेंशन स्कीम (ओपीएस) को लेकर भी लगातार कर्मचारी यूनियन अपनी आवाज उठाते रहे हैं. इसको लेकर दिल्ली में इसी साल एक बड़ी रैली भी बुलाई गई थी.
बता दें कि, चुनावी परिणाम में बीजेपी भले ही बहुमत से दूर रही हो, लेकिन दिल्ली की सभी सातों सीटें जीतकर क्लीन स्वीप की हैट्रिक लगाई है. इससे पहले 2014 और 2019 में भी वोटर्स ने दिल्ली की सभी सात सीटें बीजेपी की झोली में डाल दी थी. साल 1952 के बाद यह पहला चुनाव है, जिसमें किसी पार्टी ने दिल्ली में लगातार तीसरी बार सातों सीटें जीती हैं.
वीरेंद्र सचदेवा बोले- विधानसभा में AAP को हराएंगे
वीरेंद्र सचदेवा ने कहा कि दिल्ली में मानसून आने वाला है, लेकिन हमें पता है कि नाले की सफाई नहीं हुई है और आने वाले समय में फिर से उनके (केजरीवाल के) मंत्री नए-नए बहाने बनाएंगे, लेकिन इस बार हम उन्हें बहाना नहीं बनाने देंगे और यह जीत सिर्फ एक विराम है. हम फिर से अपने काम पर लगेंगे और विधानसभा से AAP को उखाड़ फेंकेंगे. बता दें कि दिल्ली में साल 2025 में विधानसभा चुनाव होना है.
बड़े अंतर से हारे कांग्रेस के प्रत्याशी
दिल्ली कांग्रेस शुरुआत से ही गठबंधन के पक्ष में नहीं थी. इसके बावजूद ना सिर्फ गठबंधन हुआ, बल्कि भारी विरोध के बाद कन्हैया कुमार को उत्तर पूर्वी दिल्ली और उदित राज को उत्तर पश्चिमी दिल्ली से टिकट दिया गया. चांदनी चौक से पूर्व सांसद और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष जेपी अग्रवाल को प्रत्याशी बनाया था. ये तीनों प्रत्याशी बड़े अंतर से चुनाव हार गए हैं.
कुमार कुणाल