बिहारः पटना स्टेशन पर कोरोना टेस्ट में लापरवाही, जांच से बचने को चकमा देकर निकल रहे यात्री

बिहार राज्य स्वास्थ्य समिति की तरफ से पटना स्टेशन के मुख्य द्वार पर कोविड-19 जांच के लिए बड़ा सा कैंप लगा हुआ है जहां दूसरे शहरों से पटना पहुंचने वाले लोगों की कोविड-19 जांच की व्यवस्था है.

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रेलवे स्टेशन से चकमा देकर निकल जा रहे यात्री (प्रतीकात्मक फोटोः पीटीआई) रेलवे स्टेशन से चकमा देकर निकल जा रहे यात्री (प्रतीकात्मक फोटोः पीटीआई)

रोहित कुमार सिंह

  • पटना,
  • 25 अप्रैल 2021,
  • अपडेटेड 7:04 PM IST
  • अन्य रास्तों से निकल जा रहे रेल यात्री
  • सरकार ने दिए हैं सबकी जांच के निर्देश

बिहार में कोविड-19 संक्रमण पूरी तरीके से बेलगाम हो चुका है. हालात नियंत्रित करने के लिए सरकार ने कई कदम उठाने का ऐलान कर रखा है. इसके बावजूद लापरवाही नजर आ रही हैं. सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने पटना रेलवे स्टेशन पर पहुंचने वाले सभी यात्रियों के लिए कोविड-19 की जांच की व्यवस्था की है, लेकिन आलम यह है कि दूसरे शहरों से पटना पहुंचने वाले लोगों में से कुछ ही लोगों की  कोरोना जांच की जा रही है. बाकी यात्री स्टेशन के अन्य रास्तों से बाहर निकलने में सफल हो जा रहे हैं.

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दरअसल, बिहार राज्य स्वास्थ्य समिति की तरफ से पटना स्टेशन के मुख्य द्वार पर कोविड-19 जांच के लिए बड़ा सा कैंप लगा हुआ है जहां दूसरे शहरों से पटना पहुंचने वाले लोगों की कोविड-19 जांच की व्यवस्था है. हालत यह है कि पटना आने वाले यात्री चकमा देकर जांच से बचने में कामयाब हो जा रहे हैं. बाहर से आ रहे यात्री मुख्य द्वार से न निकल कर अन्य रास्तों से स्टेशन के बाहर निकल जा रहे.

आजतक की टीम रविवार को पटना रेलवे स्टेशन पहुंची तो पाया कि मुख्य द्वार पर कुछ ही लोग अपनी कोरोना जांच करा रहे हैं. लेकिन बड़ी संख्या में यात्री अन्य रास्तों से स्टेशन के बाहर निकल जा रहे. इस संबंध में पटना स्टेशन पर तैनात डॉक्टर बृजेश आनंद ने कहा कि जो भी यात्री मुख्य द्वार से निकलते हैं उनकी जांच की जा रही है. अन्य रास्तों से निकल रहे यात्रियों के संबंध में पूछे जाने पर उन्होंने बेबसी व्यक्त की.

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मुख्य द्वार पर एक यात्री को कोरोना पॉजिटिव पाया गया था. कोविड 19 की जांच से जुटे लोग उसे काफी देर तक बैठाए रखे. इस संबंध में डॉक्टर बृजेश ने कहा कि वे लोग एम्बुलेंस का इंतजार कर रहे हैं. बता दें कि बिहार में कोविड-19 संक्रमण अपना पैर पसार चुका है. सरकारी हों या फिर निजी, अस्पतालों में न तो बेड उपलब्ध हैं और ना ही पर्याप्त ऑक्सीजन सिलेंडर.

 

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