Nalanda: करोड़ों का वारिस कन्हैया असली या नकली, 41 साल बाद आया फैसला

मुरगावां गांव के जमींदार कामेश्वर सिंह के पुत्र कन्हैया सिंह मैट्रिक परीक्षा के दौरान चंडी हाईस्कूल से वर्ष 1977 में अचानक गायब हो गया. कुछ महीने बाद ही गांव में एक भिक्षुक आया. जिसको पड़ोसियों ने कन्हैया समझ कर उनके घर में रखा. कुछ दिन बाद संपत्ति हड़पने के आरोप में एफआईआर दर्ज करायी गई. 41 साल बाद जज मानवेन्द्र मिश्र ने आरोपी दयानंद गोसाईं को सजा सुनाकर जेल भेज दिया.

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न्यायाधीश मानवेन्द्र मिश्र का ऐतिहासिक फैसला न्यायाधीश मानवेन्द्र मिश्र का ऐतिहासिक फैसला

रंजीत कुमार सिंह

  • नालंदा,
  • 07 अप्रैल 2022,
  • अपडेटेड 5:32 PM IST
  • तीन धाराओं में मिली सजा
  • ऐतिहासिक फैसला के लिए जाने जाते हैं मानवेन्द्र मिश्र

बिहार शरीफ कोर्ट के न्यायाधीश मानवेन्द्र मिश्र अपने ऐतिहासिक फैसले से चर्चा में रहते हैं. आज एक बार फिर इसी तरह का फैसला सुनाया है. एक केस में करीब 41 साल बाद फैसला सुनाते हुए आरोपी को तीन अलग-अलग धाराओं में जेल भेज दिया. फैसले को जानने के लिए कोर्ट में लोगों की भीड़ लगी थी.

दरअसल, यह  मामला बेन थाना के मुरगावां गांव के जमींदार कामेश्वर सिंह के पुत्र कन्हैया सिंह का है. जो मैट्रिक परीक्षा के दौरान चंडी हाईस्कूल से वर्ष 1977 में अचानक गायब हो गया था. कामेश्वर सिंह के करोड़ों की संपत्ति का इकलौता वारिस कन्हैया था. गायब होने के कुछ महीने बाद ही गांव में एक भिक्षुक आया जिसको पड़ोसियों ने कन्हैया समझ कर उनके घर में रखा था. लेकिन कामेश्वर की पुत्री रामसखी देवी ने भिक्षुक को कन्हैया मानने से इंकार कर दिया था. इसके बाद वर्ष 1981 में सिलाव थाने में संपत्ति को हड़पने और कन्हैया पर नकली होने का आरोप लगाकर मुकदमा दर्ज कराया गया.

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हालांकि, वर्ष 1981 में मामला दर्ज होने के बाद जांच की गई. जिसमें उसकी पहचान मुंगेर जिले के लखई गांव निवासी दयानंद गोसाई के रूप में की गयी. इस मामले में अन्य बहनें खास रुचि नहीं ले रही थी. लेकिन बहन रामसखी देवी उसे कन्हैया मानने से इनकार कर रही थी.

सहायक अभियोजन पदाधिकारी राजेश पाठक ने बताया कि यह मामला सर्वोच्च न्यायालय तक गया. लेकिन, इसकी सुनवाई के लिए निचली अदालत में भेजा गया. कन्हैया मामले में अब तक कई मोड़ आ चुके हैं. पहली बार इसकी पहचान होने पर कामेश्वर सिंह की पत्नी और बेटी रामसखी ने उसे कन्हैया मानने से इंकार किया था. इसके बाद उसपर संपत्ति हड़पने का सिलाव थाने में एफआईआर दर्ज करायी गई. करीब 41 साल बाद जज मानवेन्द्र मिश्र ने 420 , 419 और 120 भारतीय दंड संहिता के तहत 3 साल की सजा और 10 हजार रुपए का जुर्माना सुनाते हुए आरोपी दयानंद गोसाईं को जेल भेज दिया.

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