The History of the Syringe and Needles: सिरिंज एक मेडिकल इंस्ट्रूमेंट है जिसका उपयोग मरीज के शरीर में दवाएं इंजेक्ट करने, टेस्टिंग के लिए खून निकालने के लिए किया जाता है. हालांकि अधिकतर लोग सिरिंज को इंजेक्शन भी कहते हैं. सिरिंज एक इंस्ट्रूमेंट है और इंजेक्शन एक मेडिकल प्रोसीजर है जिसमें हेल्थकेयर प्रोफेशनल या डॉक्टर सुई का उपयोग करके शरीर में दवा या अन्य लिक्विड पदार्थ इंजेक्ट करते हैं. भारत में, विभिन्न प्रकार की सिरिंज उपलब्ध हैं जिनके अलग-अलग फायदे हैं. लेकिन क्या कभी किसी ने सोचा है कि जब ये मॉडर्न सिरिंज उपलब्ध नहीं थीं, तब कैसे काम चलता था?
दरअसल, सिरिंज का इतिहास काफी पुराना है और समय के साथ-साथ इसमें बदलाव होते गए और आज दुनिया भर में अरबों रुपये का व्यापास सिर्फ सिरिंज से होता है. तो आइए आज हम आपको सिरिंज के इतिहास के साथ-साथ दुनिया भर में सिरिंज की कितनी डिमांड है, इस बारे में बताते हैं.
सिरिंज एक बेलनाकार ट्यूब की तरह होती है जिसमें एक प्लंजर (पिस्टन) होता है जो दवाई या लिक्विड को अंदर खींचने और बाहर धकेलने के काम आता है. सिरिंज के निचले सिरे पर रिमूवेबल सुई (निडिल) होती है. उसे सिरिंज से जोड़ते हैं और उसके द्वारा शरीर में दवा या अन्य तरल पदार्थ इंजेक्ट किए जाते हैं. आज के समय में जो आधुनिक सिरिंज प्रयोग की जाती हैं, उन्हें हाइपोडर्मिक सिरिंज भी कहते हैं.
सिरिंज को 5 हिस्सों में बांट सकते हैं. पहला बैरल जिसमें दवाई भरी होती है. यह पारदर्शी होता है ताकि इसकी सामग्री दिखाई दे सके. सिरिंज के इस हिस्से पर दवाई की मात्रा लिखी होती है जिसको देखकर ही मेडिकल प्रोफेशनल दवाई की मात्रा का अंदाजा लगा सकते हैं.
दूसरा प्लंजर (पिस्टन) जिससे लिक्विड को बाहर धकेलते हैं या अंदर खींचते हैं. इसके बाद जो सुई (निडिल) होती है उसे शरीर में चुभोने के बाद ही दवाई अंदर जाती है. निडिल और सिरिंज को जोड़ने के लिए जो हिस्सा होता है उसे हब कहते हैं. इसके अलावा फ्लैंज वह हिस्सा होता है जो प्लंजर के लिए उंगली का सहारा देता है. यह सिरिंज के ऊपरी सिरे पर होता है.
प्लास्टिक सिरिंज के प्रयोग से पहले कांच की सिरिंज आती थीं लेकिन आज के समय में प्लास्टिक सिरिंज एक सस्ता, डिस्पोजेबल विकल्प है. आमतौर पर, ये सिरिंज या तो पूरी तरह से प्लास्टिक प्लंजर टिप या रबर प्लंजर टिप के साथ आती हैं. प्लास्टिक सिरिंज प्लंजर और बैरल दबाव में कुछ लचीले होते हैं, जिससे 5% तक की मात्रा में अशुद्धि हो सकती है. ये सिरिंज1ml, 2ml, 3ml, 5ml, 10ml, 20ml आदि साइज में आती हैं.
भले ही मॉडर्न सिरिंज का अविष्कार 1853 में हुआ हो लेकिन 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व से ही सिरिंज का प्रयोग किसी न किसी रूप में होता आ रहा है. सबसे पहला सिरिंज का प्रयोग चिकित्सा के जनक कहे जाने वाले हिप्पोक्रेट्स (ग्रीक फिजिशियन) ने किया था. हालांकि तकनीकी रूप से वह सिरिंज नहीं थी.
इंडियन जर्नल ऑफ फिजियोलॉजी एंड फॉर्माकोलॉजी के मुताबिक, हिप्पोक्रेट्स एनीमा (बाउल क्लींजर) के दौरान जानवरों के मूत्राशय, हाथीदांत या बांस से बनी सिरिंज का इस्तेमाल करते थे. फिर सत्रहवीं शताब्दी में एनीमा के लिए रबर से बने लचीले बल्ब और बोतल ने पशु मूत्राशय का स्थान ले लिया था.
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ साइंस का कहना है, फिर 11वीं शताब्दी में मिस्र के नेत्र रोग विशेषज्ञ अम्मार इब्न अली अल-मौसिली (Ammar ibn Ali al-Mawsili) मोतियाबिंद को हटाने के लिए एक हाइपोडर्मिक सिरिंज जैसा इक्यूपमेंट का प्रयोग करते थे. बताया जाता है कि यह उस अवधि के दौरान मोतियाबिंद सर्जरी में एक महत्वपूर्ण खोज थी जिससे मोतियाबिंद के इलाज में तेजी आई थी.
हालांकि 17वीं शताब्दी की शुरुआत तक नस में सुई डालकर दवाई देने वाले सिरिंज के कोई भी प्रयोग नहीं किए गए थे लेकिन 17वीं शताब्दी के मध्य (1656) में ब्रिटेन के आर्किटेक्ट और फिजिसिस्ट सर क्रिस्टोफर रेन (Christopher Wren) ने एक खोखले हंस के पंख से जुड़े पशु मूत्राशय का उपयोग करके उन्होंने कई कुत्तों को अफीम, शराब और क्रोकस मेटालोड्रग (17वीं शताब्दी की उल्टी की दवा) दिया था.
फिर लगभग 150 साल बाद दुनिया का पहला टीका बनाने वाले ब्रिटिश फिजिशियन एडवर्ड जेनर (Edward Jenner) सामने आए और उन्होंने चेचक का टीका बनाया. आखिरकार उन्होंने 1796 में 8 साल के लड़के के शरीर में चीरा लगाया और दवा इंजेक्ट की. हालांकि यह तकनीकी रूप से इंजेक्शन नहीं था.
इसके बाद 19वीं शताब्दी के मध्य तक फिजिशियन और अन्य मेडिकल एक्सपर्ट ने दवा को शरीर में पहुंचाने के लिए अलग-अलग तकनीकों पर फोकस करना शुरू किया ही था कि 1844 में आयरिश सर्जन फ्रांसिस रयंड (Francis Rynd) ने दुनिया की पहली खोखली सुई (निडिल) का अविष्कार किया. उन्होंने एक कैनुला और ट्रोकार का इस्तेमाल किया था और उससे ही दवा शरीर में डाली जाती थीं.
BBC के मुताबिक, 10 सालों बाद ही हाइपोडर्मिक सुई का मॉडर्न वैरिएंट सामने आया और 1853 में स्कॉट के फिजिशियन अलेक्जेंडर वुड (Alexander Wood) ने प्लंजर जोड़कर पहली कांच की सिरिंज बनाई. इस कांच की सिरिंज से डॉक्टर दवाई की मात्रा का अनुमान लगा सकते थे.
पहली बार उन्होंने ये इंजेक्शन 80 साल की महिला को दिया जो न्यूराल्जिया से पीड़ित थी. उसे दर्द से आराम दिलाने के लिए कंधे पर दर्द वाली जगह पर मॉर्फिया दवा की 20 बूंदें दी गई थीं. पहले तो महिला को गहरी नींद आई लेकिन बाद में उनकी हालत में सुधार हुआ.
वुड ने जब कांच की सिरिंज बनाई उसी समय फ्रांस के सर्जन चार्ल्स प्रवाज (Charles Pravaz) ने भी चांदी से बना एक इक्यूपमेंट बनाया जिसमें प्लंजर (दवा को अंदर धकाने वाला हिस्सा) लगा था और उसमें एक स्क्रू को घुमाते हुए दवा को शरीर में अंदर भेजा जाता था.
वुड ने अपनी नई सिरिंज की टेस्टिंग एक मरीज को दवा (मॉर्फिन) इंजेक्ट करने के लिए किया था जबकि प्रवाज ने अपनी सिरिंज की टेस्टिंग भेड़ पर की थी इसलिए वुड की सिरिंज की प्रभावशीलता को अधिक सटीक माना गया. वहीं प्रवाज अपनी सिरिंज के बारे में कुछ बताते, उससे पहले ही उनकी मौत हो गई थी लेकिन वहीं वुड ने अपनी सिरिंज के बारे में काफी कुछ बताया था.
अभी जो हाइपोडर्मिक सुई मार्केट में मौजूद हैं, वो लगभग वुड की सिरिंज की डिजाइन जैसी ही हैं. बस अब कांच की जगह डिस्पोजेबल प्लास्टिक की सिरिंज मार्केट में आती हैं. कांच की सिरिंज को साफ करने में काफी मेहनत लगती थी और उन्हें डिसइंफेक्ट करते समय टूटने या उनमें दरार आने का खतरा अधिक होता था.
अब आज के समय में प्लास्टिक की सिरिंज मार्केट में मौजूद हैं जो काफी सेफ्टी के साथ आती हैं. इनमें से कई सिरिंज ऐसी भी हैं जिनसे दर्द का अहसास भी नहीं होता और दवा शरीर में अंदर डाल दी जाती है. इसे मेडिकल की दुनिया की सबसे अहम खोज में से एक माना जाता है.
Grand view research रिपोर्ट मुताबिक, भारत के सिरिंज मार्केट की बात करें तो 2018 में करीब 1918 करोड़ रुपये का था और 2023 तक यह बढ़कर लगभग 3198 करोड़ रुपये का हो गया था. अनुमान है कि 2030 तक यह मार्केट लगभग 9163 करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है. 2023 से 2030 तक भारत के डिस्पोजेबल सिरिंज बाजार में 16 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) की उम्मीद है.
Grand view research मुताबिक, ग्लोबल सिरिंज मार्केट 2023 में लगभग 55,230 करोड़ रुपये का था और ये मार्केट 2030 तक लगभग 1 लाख 28 हजार 794 करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है. बताया गया है कि 2024 से 2030 तक यह मार्केट 12.8 के चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ेगा. भारत के इस मार्केट में सबसे अधिक मांग सेफ्टी सिरिंज की है. इसमें एक मैकेनिज्म होता है जो सुई को इस्तेमाल के बाद सुरक्षित रूप से छुपा देता है जिससे प्रोफेशनल्स या अन्य लोगों को सुई से चोट नहीं लगती.
दवा देने के लिए डिस्पोजेबल सिरिंज की मांग में भी वृद्धि हुई है. बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए कंपनियों ने अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ाई है. उदाहरण के लिए, WHO के अनुसार, जुलाई 2021 में भारत में लगभग 90 करोड़ लोगों को डिस्पोजेबल सिरिंज का इस्तेमाल करके कोरोना की वैक्सीन लगाई गई थी जो कि सिरिंज की मांग में वृद्धि का अहम कारण साबित हुई थी और इसी कारण भारत में डिस्पोजेबल सिरिंज बाजार को और अधिक बढ़ावा मिला.
मृदुल राजपूत