हाल में ही मध्य प्रदेश के मुरैना से एक मामला सामने आया, जहां 8 साल के एक बच्चे ने अपनी नानी के पैर छूने से इनकार कर दिया. जब उससे वजह पूछी गई तो उसने बताया कि वो उसकी नानी नहीं बल्कि पत्नी है. इससे पूरा परिवार सन्न रह गया. उसने मामा को अपना बेटा बताया. इस बच्चे ने बताया कि जब पिछले जन्म में उसकी मौत हुई, तब उसकी बेटी (जो इस जन्म में मां है) गर्भवती थी. उसने तेरहवीं पर बेटे को जन्म दिया. वो 4 साल की उम्र से ही अपनी मां को बेटी बताता आ रहा है.
इससे पहले राजस्थान के बीकानेर में 2018 में जन्मी एक बच्ची ढाई साल का होता ही फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने लगी. यहां के सिंथल गांव में रहने वाली ये बच्ची एक ऐसे परिवार से है, जहां अंग्रेजी से किसी का दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है. घर में सभी लोग टीवी पर भी हिंदी कार्यक्रम देखते हैं. कोरोना महामारी के कारण बाहरी दुनिया से भी कम संपर्क रहा. उसने खुद को अमेरिका के कैलिफोर्निया की रहने वाली स्रीसा बताया. इसी तरह के और भी कई मामले हमने देखे हैं. पुनर्जन्म पर तो तमाम फिल्में भी बनी हैं.
तो क्या वाकई पुनर्जन्म होता है? दिल्ली की रहने वाली हिप्नोथैरेपिस्ट ऋचा सुमन व्यास इस सवाल का जवाब हां में देती हैं. ऋचा दावा करती हैं कि पिछले जन्म का हमारे आज के जीवन पर काफी असर पड़ता है, कुछ लोगों को ये याद रहता है और कुछ को नहीं. जिन्हें याद नहीं रहता, वो भी अपना पिछला जन्म देख सकते हैं.
इसके लिए 'पास्ट लाइफ रिग्रेशन थेरेपी' का इस्तेमाल होता है. पास्ट लाइफ रिग्रेशन थेरेपी के जरिए न केवल मानसिक और भावनात्मक बल्कि शारीरिक दिक्कतों को भी दूर किया जा सकता है. ये पश्चिमी देशों में काफी प्रचलित है, लेकिन अब भारत में भी इसका इस्तेमाल बढ़ रहा है. थेरेपी को करने वालों में अमेरिकी फिजियोथेरेपिस्ट और हिप्नोथेरेपिस्ट डॉक्टर ब्रेन वीस काफी जाना माना नाम है. वो इस विषय पर कई किताबें भी लिख चुके हैं.
पास्ट लाइफ रिग्रेशन थेरेपी क्या होती है?
पास्ट लाइफ रिग्रेशन थेरेपी दो थ्योरी पर आधारित है- रीइनकार्नेशन और लॉ ऑफ कर्मा. यहां रीइनकार्नेशन का मतलब होता है पुनर्जन्म. कहा जाता है कि इंसान जब तक अपनी आत्मा का पूर्ण विकास नहीं कर लेता, तब तक वो जन्म लेता रहता है. वो अपनी हर जिंदगी में नए अनुभव हासिल करता है. वहीं लॉ ऑफ कर्मा का मतलब है कि इंसान जो बोता है, वही काटता है. अगर किसी के साथ एक जन्म में बुरा किया है, तो अगले जन्म में उसके साथ अच्छा करके उस ऋण को चुकाना होगा.
कैसे होती है पास्ट लाइफ रिग्रेशन थेरेपी?
हिप्नोथैरेपिस्ट ऋचा सुमन व्यास कहती हैं कि मान लीजिए आपके शरीर में कहीं किसी तरह का दर्द है, इलाज कराया तो कोई कारण नहीं मिल रहा तो ऐसे में पास्ट लाइफ रिग्रेशन कराया जा सकता है. हो सकता है कि पिछले जीवन में आपको किसी ने उस जगह पर चोट पहुंचाई हो और वो दर्द आपने अभी भी वहां स्टोर करके रखा हुआ है. अवचेतन मन में सारी यादें रहती हैं. अवचेतन की एक खूबी ये है कि इसमें वक्त का कुछ असर नहीं होता.
उसके लिए 50 साल या 500 साल पहले हुई घटना अब भी मौजूद होती है. अवचेतन मन विश्वास नहीं करेगा कि वो पिछला जन्म था, जिसमें आपने साथ कुछ घटित हुआ था, ये दूसरा शरीर है. बल्कि अवचेतन मन वो सारी यादें दोबारा दिखाएगा. जब हम थेरेपी करते हैं, तो हम अवचेतन मन को विश्वास दिलाते हैं कि अब वो चीज खत्म हो गई है. ये अलग शरीर है और अलग जीवन है. तो जो भावनाएं आपने स्टोर की हुई हैं, उनसे मैं मुक्ति दिलाती हूं.
कैसा रहता है पुनर्जन्म में लोगों को ले जाने का अनुभव
थेरेपिस्ट ऋचा कहती हैं कि कई लोग एकदम सटीक समय, जगह, तारीख और घटना बताते हैं और जब हम गूगल पर चेक करते हैं, तो वो एकदम वैसे ही पाया जाता है. बहुत सारे मामलों में हम क्रॉस चेक नहीं कर पाते. वो जरूरी भी नहीं है. लेकिन अगर कोई अपनी ऐतिहासिक जिंदगी यानी इतिहास से जुड़ा पिछला जन्म बता रहा है, जिसमें प्रमुख या मशहूर किरदार हैं, या कोई महल या पैलेस जैसी जगह बता रहा है, तो उस समय को हमें चेक करना होगा, हम कर सकते हैं, कई बार वो सही भी निकला है. किसी को मतिभ्रम (हैलुसिनेशन) हो गया (काल्पनिक चीजें दिखाई या सुनाई देना), किसी को बार बार कोई चीज दिखाई दे रही है, सुनाई दे रही है, तो ऐसे मामलों को डील करने पर कुछ लोगों को आराम भी मिला, लेकिन कुछ मामलों में साइकेट्रिस्ट की जरूरत होती है. तब हिप्नोथैरेपी कॉन्सेप्ट उन पर काम नहीं करता है.
प्यार, नफरत, आकर्षण हर सवाल का मिल सकता है जवाब
रिलेशनशिप के अलावा कोई डर या फोबिया भी पिछले जन्म से जुड़ा हो सकता है. अंधेरा या ऊंचाई से फोबिया होना बहुत सामान्य है, लेकिन अगर आपको फूल की पत्तियों से डर लगता है, या फिर किसी चीज को देखकर डर जाते हैं तो इसे फोबिया की श्रेणी में रखेंगे. ऋचा ने बताया कि उन्होंने कई ऐसे मामले देखे हैं जिसमें लोगों को अजीब तरह का फोबिया होता है. ऐसे में थेरेपी के जरिये थेरेपिस्ट आपको वक्त में पीछे लेकर जाता है कि ये फोबिया आप में कहां से शुरू हुआ है. जिसके बाद एक हिप्नोथेरेपिस्ट उस पर काम करना शुरू करता है और इस तरह के फोबिया से जूझ रहे शख्स की मदद करता है.
ऋचा के मुताबिक इस थेरेपी से ये भी पता चल जाता है कि हमारा किसी के साथ कौन सा कर्मा जुड़ा है? कोई क्यों अचानक हमें परेशान कर रहा है? कोई क्यों बिना किसी रिश्ते के भी हमारी फिकर कर रहा है? क्यों कोई हमारी तरफ या हम उसकी तरफ खिंचे चले जा रहे हैं? इंसान को कई उलझनों से बाहर निकालने के लिए पास्ट लाइफ रिग्रेशन थेरेपी कारगर साबित हो सकती है.
Shilpa / Akashdeep Shukla