भारत दुनिया की वेट मैनेजमेंट इंडस्ट्री में बहुत तेजी से बढ़ रहा है. यहां न केवल नई एंटी-ओबेसिटी दवाओं के लिए बड़ा बाजार है, बल्कि सस्ती जेनेरिक दवाओं के प्रोडक्शन के लिए भी अच्छी सुविधा है. वजन घटाने वाली दवाओं के प्रोडक्शन की तेजी के पीछे भारत में बढ़ता मोटापा एक बहुत बड़ा कारण है. इसके साथ ही मशहूर कुछ एंटी-ओबेसिटी दवाओं के पेटेंट खत्म होने वाले हैं और सरकार भी देश में ही दवाओं के निर्माण का समर्थन कर ही है. अब विदेशी और भारतीय दवा कंपनियां तेजी से बढ़ते भारतीय बाजार का हिस्सा बनने के लिए कॉम्पिटिशन कर रही हैं. यही वजह है कि भारत वेट मैनेजमेंट में नई तकनीक और निर्माण दोनों का एक मुख्य केंद्र बन गया है.
मार्च 2025 में एली लिली ने भारत में अपनी मोटापा घटाने वाली दवा मौनजारो (तिरजेपेटाइड) लॉन्च की थी. ये दवाई सीडीएससीओ से अप्रूवल मिलने के बाद सिंगल डोज में भी बाजारों में मौजूद है.
पहले तीन महीनों में मौनजारो की बिक्री लगभग 24 करोड़ रुपये रही और जून 2025 में अकेले इसी महीने की बिक्री 50 करोड़ रुपये तक पहुंच गई. मौनजारो की 2.5 मिलीग्राम शीशी की कीमत 3,500 रुपये और 5 मिलीग्राम शीशी की कीमत 4,375 रुपये है. अगर कोई हर हफ्ते ये दवाई लेता है तो उसे हर महीने लगभग 14,000-17,500 रुपये तक खर्च करने होंगे. अगर आप छह महीने का कोर्स लें, तो ये आपको 1 लाख रुपये में मिलेगी.
नोवो नॉर्डिस्क ने मौनजारो का मुकाबला करने के लिए अपनी वजन घटाने वाली दवाई वेगोवी (सेमाग्लूटाइड 2.4 मिलीग्राम) को जून 2025 में भारत में लॉन्च किया. वेगोवी पांच स्ट्रेंथ्स में आती है और खुराक के अनुसार इसकी कीमत 4,336 रुपये से लेकर 26,015 रुपये प्रति माह है.
भारत के मिडिल क्लास और हाई-मिडिल क्लास वाले लोग अब मौनजारो और वेगोवी जैसी प्रीमियम दवाओं को खरीदने में सक्षम हो रहा है. शुरुआती खुराकों की बढ़ती मांग दिखाती है कि डॉक्टर ज्यादा नए मरीजों को ये दवाएं दे रहे हैं और मरीज इलाज जारी रख रहे हैं. साल 2022 में लॉन्च हुई नोवो नॉर्डिस्क की ओरल सेमाग्लूटाइड राइबेलसस की कीमत सिर्फ दो साल में 26 करोड़ रुपये से बढ़कर 412 करोड़ रुपये हो गई है. इसने GLP-1 बाजार में बड़ा हिस्सा बना लिया.
मौनजारो और राइबेलसस की सफलता से पता चलता है कि भारतीय मरीज हेल्थ और लाइफस्टाइल को सुधारने पर ध्यान दे रहे हैं और प्रीमियम इलाज को भी प्राथमिकता दे रहे हैं.
भारत में सेमाग्लूटाइड जैसी GLP-1 रिसेप्टर एगोनिस्ट दवाओं के पेटेंट लगभग 2026 में खत्म होने वाले हैं. इसे 'पेटेंट क्लिफ' कहते हैं. इससे भारतीय दवा कंपनियों के लिए सस्ते जेनेरिक वर्जन बनाने का रास्ता खुल रहा है, जिससे अरबों डॉलर की कीमत वाली दवाओं का बड़ा बाजार तैयार हो रहा है. नोवो नॉर्डिस्क की सेमाग्लूटाइड फ्रैंचाइजी ने 2024 में सिर्फ ओजेम्पिक से 17 अरब डॉलर और वेगोवी से 8.4 अरब डॉलर कमाए थे. ऐसे में 100 से ज्यादा देशों में पेटेंट खत्म होने के बाद, भारतीय निर्माता बड़े पैमाने पर प्रोडक्शन और एक्सपोर्ट की तैयारी कर रहे हैं.
डॉ. रेड्डीज, बायोकॉन, सन फार्मा, सिप्ला, ल्यूपिन और अरबिंदो फार्मा जैसी बड़ी भारतीय कंपनियां अब जेनेरिक दवाओं की बढ़ती मांग को ध्यान में रखते हुए तैयारी कर रही हैं.
डॉ. रेड्डीज बड़े पैमाने पर और सस्ती दवाओं के प्रोडक्शन के लिए तैयार हैं और उसे सेमाग्लूटाइड बनाने का 10 साल से ज्यादा का अनुभव है. बायोकॉन ने यूके और यूरोप में ओरल GLP-1 दवाएं लॉन्च की हैं, जो भारत की पेप्टाइड दवाएं बनाने की क्षमता दिखाती हैं. जाइडस लाइफसाइंसेज किफायती सेमाग्लूटाइड बनाने के लिए नई सुविधाओं में इनवेस्टमेंट कर रही है.
वहीं सिप्ला मोटापे के इलाज की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए वेट मैनेजमेंट के बाजार में प्रवेश कर रही है. ये कंपनियां सिर्फ भारत में मरीजों की सेवा ही नहीं कर रही हैं, बल्कि किफायती जेनेरिक दवाओं के ग्लोबल एक्सोर्टर बनने का भी टारगेट रख रही हैं.
भारत सरकार प्रोडक्शन इनसेंटिव्स (PLI) प्लान के जरिए दवाओं के प्रोडक्शन को बढ़ावा दे रही है. इस योजना में 14 क्षेत्रों में 1.97 लाख करोड़ रुपये का निवेश शामिल है, जो एडवांस्ड दवाओं और APIs के निर्माण को सपोर्ट करता है. इनमें GLP-1 रिसेप्टर एगोनिस्ट शामिल हैं. 2026 तक मोटापे और डायबिटीज की दवाओं के लिए और भी इनसेंटिव मिलने की उम्मीद है, जिससे भारत ग्लोबल फार्मास्युटिकल मैन्युफैक्चरिंग सेंटर के रूप में अपनी स्थिति और मजबूत करेगा.
भारत में मोटापे की समस्या तेजी से बढ़ रही है और ये बच्चों और बड़ों दोनों को प्रभावित कर रही है. बता दें,भारत में छोटे बच्चों में मोटापे की समस्या सबसे ज्यादा है और यह एक बड़ी चुनौती है.
भारत को 'डायबिटीज कैपिटल ऑप वर्ल्ड' भी कहा जाता है, क्योंकि यहां लगभग 7.7 करोड़ बड़े लोग डायबिटीज से पीड़ित हैं. 2024 की एक स्टडी के अनुसार लखनऊ में पाया गया कि 6-12 साल के लगभग 30% बच्चे ज्यादा वजन वाले या मोटे हैं, जो देश के औसत से बहुत ज्यादा है.
वैश्विक GLP-1 एंटी-ओबेसिटी दवाओं का बाजार 2024 में 13.84 बिलियन डॉलर था और 2030 तक यह बढ़कर 48.84 बिलियन डॉलर हो जाने की उम्मीद है. इसका मतलब है कि बाजार में हर साल लगभग 18.5% की तेजी हो सकती है.
भारत का घरेलू GLP-1 बाजार 2024 में 110.55 मिलियन डॉलर का था और 2025 से 2030 तक ये 34.3% सालाना बढ़ने की उम्मीद है. इसका कारण बढ़ता मोटापा, डायबिटीज और आने वाली सस्ती जेनेरिक दवाएं हैं. भारत में मोटापा घटाने वाली दवाओं की कीमत जून 2025 तक 628 करोड़ रुपये पहुंच गई, यानी पिछले पांच साल में ये पांच गुना बढ़ चुकी है. GLP-1 दवाओं का इस बाजार में 75% हिस्सा है.
आजतक हेल्थ डेस्क