अजीत डोभाल एक बार फिर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) बन गए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें तीसरी बार एनएसए नियुक्त किया है. ये लगातार तीसरी बार है जब अजीत डोभाल को एनएसए नियुक्त किया गया है.
2014 में पहली बार मोदी सरकार आने के बाद 30 मई 2014 को अजीत डोभाल को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया गया था. 2019 में दोबारा मोदी सरकार आने के बाद 3 जून 2019 को दूसरी बार एनएसए नियुक्त किया गया था. तब मोदी सरकार ने एनएसए अजीत डोभाल को कैबिनेट मंत्री का दर्जा भी दिया गया था. इससे पहले तक उन्हें राज्य मंत्री का दर्जा मिला था.
अब जब तीसरी बार केंद्र में लगातार तीसरी बार एनडीए की सरकार बनी है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनपर फिर भरोसा जताते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया है.
एनएसए बनने से पहले अजीत डोभाल इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के हेड रहे हैं. 1968 में आईपीएस के तौर पर उन्होंने पुलिस सर्विस ज्वॉइन की थी. राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े हर बड़े फैसले अजीत डोभाल की सलाह पर ही लिए जाते हैं.
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार क्या?
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार यानी नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर का पद 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में बनाया गया था. वाजपेयी सरकार में तत्कालीन प्रधान सचिव ब्रजेश मिश्रा को 19 नवंबर 1998 को एनएसए नियुक्त किया गया.
पोखरण-2 से लेकर कश्मीर मुद्दे तक और वाजपेयी की पाकिस्तान तक ऐतिहासिक बस यात्रा से लेकर अमेरिका से रिश्ते सुधारने तक ब्रजेश मिश्रा की अहम भूमिका रही. ब्रजेश मिश्रा दो साल तक संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि भी रहे थे. उन्हें वाजपेयी का संकटमोचक भी कहा जाता था. ब्रजेश मिश्रा 23 मई 2004 तक एनएसए के पद पर रहे.
2004 में जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने प्रधान सचिव और एनएसए की पोस्ट को अलग-अलग कर दिया. पहले प्रधान सचिव ही एनएसए भी हुआ करते थे. मनमोहन सरकार में पूर्व विदेश सचिव जेएन दीक्षित को एनएसए बनाया गया. इस तरह से जेएन दीक्षित दूसरे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बने.
जेएन दीक्षित को 26 मई 2004 को एनएसए नियुक्त किया गया था. जनवरी 2005 में उनका निधन हो गया. उनके बाद कांग्रेस सरकार ने आईपीएस और आईबी के डायरेक्टर रहे एमके नारायण को एनएसए नियुक्त किया गया. उनके बाद 24 जनवरी 2010 को विदेश सेवा में रहे शिव मेनन एनएसए बने. 26 मई 2014 को उनके रिटायरमेंट के बाद 30 मई को अजीत डोभाल पांचवें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बने.
कितने ताकतवर होते हैं एनएसए?
2019 तक राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को राज्य मंत्री का दर्जा मिला था. लेकिन दूसरी बार केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद इसे कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया. एनएसए का पद सबसे शक्तिशाली माना जाता है. एनएसए न सिर्फ राष्ट्रीय सुरक्षा, बल्कि विदेश नीति से जुड़े मामलों में भी प्रधानमंत्री को सलाह देते हैं.
एनएसए राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (एनएससी) का नेतृत्व करते हैं. एनएसए हर दिन प्रधानमंत्री को आंतरिक और बाहरी खतरों से जुड़े मामलों की जानकारी देते हैं. और प्रधानमंत्री की तरफ से रणनीतिक और संवेदनशील मुद्दों की निगरानी करते हैं.
एनएसए हर दिन आईबी और रॉ जैसी एजेंसियों से इंटेलिजेंस लेते हैं और उसकी जानकारी प्रधानमंत्री को देते हैं. एनएसए की मदद के लिए डिप्टी एनएसए होते हैं. इस समय रिटायर्ड आईपीएस दत्तात्रेय पडसलगीकर, रॉ के पूर्व चीफ राजिंदर खन्ना और पूर्व आईएफएस अफसर पंकज सारन डिप्टी एनएसए हैं.
सर्जिकल स्ट्राइक करनी हो या फिर एयरस्ट्राइक कर बदला लेना हो, सारे फैसले एनएसए की सलाह पर ही लिए जाते हैं. उरी अटैक के बाद 2016 में पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 में पुलवामा अटैक के बाद एयरस्ट्राइक में अजीत डोभाल की भूमिका अहम थी. इतना ही नहीं, 2017 में जब डोकलाम पर भारत और चीन के बीच तनाव बढ़ गया था, तब इसे खत्म करने में भी डोभाल ने अहम भूमिका निभाई थी.
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क्यों सबसे ताकतवर हैं अजीत डोभाल?
अप्रैल 2018 में मोदी सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया. सरकार ने डिफेंस प्लानिंग कमेटी का गठन किया. इस कमेटी की कमान एनएसए अजीत डोभाल को सौंपी गई.
एनएसए का पद सरकार में सबसे अहम होता है. एनएसए अजीत डोभाल को इसलिए भी सबसे ताकतवर माना जाता है, क्योंकि डिफेंस प्लानिंग कमेटी में रक्षा सचिव, विदेश सचिव, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस), तीनों सेनाओं के प्रमुख और वित्त सचिव होते हैं. ये सभी एनएसए को रिपोर्ट करते हैं.
डिफेंस प्लानिंग कमेटी का काम राष्ट्रीय सुरक्षा, डिफेंस डिप्लोमेसी और डिफेंस मेनुफैक्चरिंग इकोसिस्टम से जुड़ी प्लानिंग करना है. ये कमेटी सीधे रक्षा मंत्री को रिपोर्ट करती है.
इतना ही नहीं, 2018 में मोदी सरकार ने स्ट्रैटजिक पॉलिसी ग्रुप को पुनर्गठन किया था. इसका प्रमुख भी एनएसए अजीत डोभाल को बनाया गया. ऐसा होते ही अजीत डोभाल देश के सबसे ताकतवर नौकरशाह बन गए. वो इसलिए क्योंकि इससे पहले तक स्ट्रैटजिक पॉलिसी ग्रुप के प्रमुख कैबिनेट सचिव होते थे, लेकिन अब एनएसए हैं. और कैबिनेट सचिव एनएसए को रिपोर्ट करते हैं.
इस ग्रुप में नीति आयोग के उपाध्यक्ष, कैबिनेट सचिव, सीडीएस, तीनों सेनाओं के प्रमुख, आरबीआई के गवर्नर, विदेश सचिव, रक्षा सचिव, वित्त सचिव, गृह सचिव, वित्त सचिव, रॉ के सचिव, आईबी के डायरेक्टर समेत कई अफसर होते हैं.
न्यूक्लियर कोड तक भी पहुंच
भारत की न्यूक्लियर पॉलिसी कहती है कि भारत कभी भी पहले किसी भी देश पर परमाणु हमला नहीं करेगा. अगर कोई देश भारत पर परमाणु हमला करता है तो अपनी सुरक्षा में उस पर हमला किया जाएगा. लेकिन परमाणु हमला करने का आदेश देने से पहले कई सारी बातों का ध्यान रखा जाता है.
किसी भी परमाणु हथियार को लॉन्च करने से पहले एक सीक्रेट कोड लगता है, जो एनएसए के पास भी होता है. इस कोड को डालने पर ही परमाणु हथियार लॉन्च हो सकता है.
जब कोई नया प्रधानमंत्री आता है तो राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ही उन्हें परमाणु हथियार के सीक्रेट कोड सौंपते हैं. इसके साथ ही एनएसए ही उन्हें परमाणु हथियारों से जुड़ी सारी जानकारी देते हैं.
कितनी सैलरी लेते हैं अजीत डोभाल?
1968 बैच के आईपीएस अफसर अजीत डोभाल ने अपने करियर की शुरुआत केरल के कोट्टायम जिले के एएसएपी के तौर पर की थी. 1972 में वो आईबी में शामिल हो गए. पूर्वोत्तर में शांति लाने का श्रेय भी डोभाल को मिलता है.
डोभाल को 1988 में कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया था. उन्होंने कई सालों तक पाकिस्तान में अंडर कवर एजेंट के रूप में भी काम किया है. कई सालों तक आईबी की ऑपरेशन विंग में काम करने के बाद उन्हें आईबी का डायरेक्टर नियुक्त किया गया.
जनवरी 2005 में आईबी के डायरेक्टर पद से रिटायर हुए. रिटायरमेंट के बाद भी वो एक्टिव रहे. 2014 में उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया गया. प्रधानमंत्री कार्यालय के मुताबिक, अजीत डोभाल को हर महीने 1,37,500 रुपये की सैलरी दी जाती है. इसके अलावा उन्हें पेंशन भी मिलती है.
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