आरके पुरम का फ्लैट नंबर 1246, पड़ोसी का टीवी और नाना की सीख... स्मृति ने याद किया बचपन

स्मृति ने बचपन के दिनों को याद करते हुए बताया कि वो 1246, आरके पुरम में रहा करती थीं. इस घर में अभी उनके जानने वाले रहते हैं. स्मृति ने ऊपर के एक घर की ओर इशारा करते हुए बताया कि ये घर है. यहां पर मां, तीन बेटियां, नाना-नानी, दो मासियां और एक मामा रहा करते थे. एक कमरे का घर है, सब इसी में रहते थे.

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स्मृति ईरानी ने याद किया बचपन (Photo: Screen Grab) स्मृति ईरानी ने याद किया बचपन (Photo: Screen Grab)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 23 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 8:53 PM IST

एक्ट्रेस-पॉलिटिशियन स्मृति ईरानी दिल्ली से हैं. उनका बचपन बेहद गरीबी में बीता. लेकिन सपनों की उड़ान शुरू से ही ऊंची हुआ करती थी. आजतक से एक्सक्लुसिव बातचीत में स्मृति ने अपने बचपन का घर दिखाया और उन दिनों को याद किया. स्मृति ने बताया कि कैसे दिल्ली के आरके पुरम का वो फ्लैट उनके लिए आज भी खास है. वहीं उनके नाना ने कैसे उनके जीवन पर गहरा असर छोड़ा. साथ ही जिक्र किया कि पड़ोसी के घर टीवी देख कर उन्हें हमेशा से कुछ बड़ा करने की इच्छा होती थी.

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एक रूम के घर में रहते थे 9 लोग?

स्मृति ने बचपन के दिनों को याद करते हुए बताया कि वो 1246, आरके पुरम में रहा करती थीं. इस घर में अभी उनके जानने वाले रहते हैं. स्मृति ने ऊपर के एक घर की ओर इशारा करते हुए बताया कि ये घर है. यहां पर मां, तीन बेटियां, नाना-नानी, दो मासियां और एक मामा रहा करते थे. एक कमरे का घर है, सब इसी में रहते थे. यहां से चलते-चलते हर दिन सेक्टर 12, आरके पुरम जाती थी. वहां पर स्वंय सेवकों का बनाया एक छोटा सा स्कूल था, टेंट वाला. वहां पढ़ती थी. सामने एक पक्की दीवार वाला कॉन्वेंट स्कूल होता था, मेरी बड़ी इच्छा होती थी कि वहां पढ़ूं. लेकिन मां ने कहा था कि पैसे नहीं थे.

स्मृति ने आगे बताया कि मां दिल्ली के ताज मानसिंह में हाउस कीपर का काम करती थीं. ताज में एक टाटा ग्रुप में सुविधा दी थी कि जो लोग उनके यहां काम करते हैं, उनके बच्चें अगर 60 प्रतिशत लाते हैं, यानी फर्स्ट डिविजन तो उनकी स्कूली फीस दी जाती थी. तो मैंने मेरी मां से कहा था कि अगर मैं फर्स्ट डिविजन लाऊं तो आपको नहीं मिलेगी मेरी फीस. तो उन्होंने कहा कि वहां आपको एडमिशन मिलेगा कैसे? तो मैं हर दिन जाकर स्कूल के बाहर खड़ी हो जाती थी. तो वहां की नन्स परेशान हो गई थीं और मुझसे कहा कि क्या है तुम हर दिन यहां आकर खड़ी हो जाती हो. मैंने कहा कि मुझे स्कूल में दाखिला कैसे मिलेगा? तो उन्होंने कहा कि एग्जाम देना पड़ेगा. तो मैंने दिया, पास हुई और एडमिशन लिया. 

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स्मृति ईरानी केे बचपन का घर

नाना का रहा गहरा प्रभाव

स्मृति ने बताया कि वो आरके पुरम के उस घर में वो 6-7 ही साल रहीं. स्मृति बोलीं- मैं यहां से तब गई जब 13-14 साल की थी. मेरे नानाजी का देहांत हो गया था, तब मैं यहां से शिफ्ट हो गई थी. मुझे इस घर को देखकर मेरे नाना याद आते हैं. यहां से हर दिन चलकर वो सेक्टर-6 शाखा में जाते थे. स्मृति ने बताया कि उनके जीवन में नाना का बहुत इंफ्लुएंस रहा है. जहां नाना शाखा के लिए जाया करते थे आज वहां विश्व हिंदू परिषद का हेड क्वार्टर है. 

स्मृति ने आगे बताया कि वो 3 महीने की थीं, जब पहली बार चुनाव प्रचार करने गई थीं. वो बोलीं- आपने मुझे अक्सर चुनाव प्रचार करते देखा होगा लेकिन पहली बार जो मैंने चुनाव प्रचार किया था तब मैं तीन महीने की थी, और उनका नाम है- विजय कुमार मल्होत्रा. घर में ये था कि आपको सामाजिक सेवा करनी है तो संघ में कीजिए, राजनीति में जाने की क्या जरूरत है. मेरी शुरू से सोच थी कि पॉलिसी निर्धारित करने में भूमिका निभानी है. इसलिए मैंने भारतीय जनता पार्टी जॉइन की. 

पड़ोसी के घर के टीवी को देख आया क्या ख्याल?

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स्मृति ने बताया कि आगे अपने बचपन की यादों के पिटारे को खंगालते हुए बताया कि जब पड़ोसी के घर के टीवी का किस्सा बताया. स्मृति ने सामने वाले घर की ओर इशारा करते हुए बताया कि ये जो आपको 1237 दिख रहा है, एक जमाने में यहां पर, लगभग 40 साल पहले यहां पर जो परिवार रहता था, उनके पास टेलीविजन होता था. तो उनकी खिड़की से खड़े होकर मैंने... रवि शास्त्री ने जब 6 छक्के मारे थे, तो जोर-जोर से चिल्ला कर मैंने पूरी गली में शोर मचाया था. आप सोचिए, एक वक्त होता था कि गली में एक के घर टीवी हो, तो सब देखते थे. 

स्मृति ने कहा कि आप पूछते हैं टेलीविजन क्यों, टीवी कितने लोगों के जीवन में क्या-क्या कर देता है. एक सीरियल आता था उड़ान, कविता चौधरी में उसमें पुलिस अफसर बनती थीं. मुझे भी रुचि थी कि मैं IPS ऑफिसर बनूंगी. लेकिन मेरे पिताजी ने कहा कि तुम्हारी फितरत नहीं है ऑर्डर लेने की. मैंने कहा ठीक है लेने की नहीं है देने वाले बन जाते हैं. स्मृति मानती हैं कि टेलीविजन का आपके स्वभाव पर गहरा असर पड़ता है. 

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