नेपाल के जेन-जी आंदोलन से हिंसा और आगजनी की जैसी तस्वीरें सामने आईं, उसकी कल्पना शायद ही कभी किसी ने की होगी. ये तस्वीरें नेपाल प्राकृतिक खूबसूरती से सजी उन तस्वीरों से बिल्कुल अलग हैं, जो कई बार भारतीय फिल्मों का हिस्सा बनी हैं. जहां भारत में सिनेमा, संस्कृति को बदलने वाला, लोगों को खुशी देने वाला एक बड़ा माध्यम रहा है. वहीं नेपाल के साथ भारत को जोड़ने वाले सांस्कृतिक पुल में, भारतीय फिल्मों का भी बड़ा रोल रहा है.
इन फिल्मों को नेपाल में भी इतना प्यार मिलता रहा है कि इसे भारतीय सिनेमा का दूसरा घर कहना गलत नहीं होगा. 1950 के दशक में नेपाली सिनेमा के जन्म से पहले और बाद में भी, भारतीय फिल्मों को नेपाल में वैसी ही पॉपुलैरिटी मिली है, जैसी अपने घर में मिलती है. दूसरी तरफ नेपाली सिनेमा के जन्म की कड़ी भी भारत से ही जुड़ी है. दोनों देशों के बीच बने इस फिल्मी कलेक्शन को जोड़ने वाली कई कड़ियां हैं जो नेपाल को भारतीय सिनेमा का दूसरा घर बनाती हैं. चलिए बताते हैं कैसे...
भारत में ही हुआ था पहली नेपाली फिल्म का जन्म
इस समय जब नेपाल जेन-जी आंदोलन में जल रहा है, नेपाली भाषा में बनी पहली फिल्म 'हरिश्चंद्र' 74वीं सालगिरह मनाने जा रही है. भारत और नेपाल के रिश्ते की गहराई इस फिल्म से भी समझी जा सकती है. 14 सितंबर 1951 को रिलीज हुई ये फिल्म बनी नेपाली भाषा में थी, मगर ये एक भारतीय प्रोडक्शन थी.
इसके बारे में बहुत ज्यादा जानकारी तो उपलब्ध नहीं है. लेकिन filmsofnepal.com पर उपलब्ध जानकारी और पोस्टर से पता चलता है कि 'हरिश्चंद्र' एक भारतीय प्रोडक्शन थी. इसके प्रोड्यूसर टी. पी. चौरसिया और एस. पी. मुखर्जी, भारतीय थे. उन्होंने अपने बैनर बिहार मूवीटोन के अंडर ये फिल्म बनाई थी. इसका शूट कोलकाता और दार्जीलिंग में हुआ था.
कहा जाता है कि डायरेक्टर संघ राठी की इस फिल्म ने ही नेपाली फिल्ममेकर्स को उनके अपने ही घर में शूट हुई नेपाली फिल्म बनाने के लिए मोटिवेट किया. आखिरकार नेपाली सरकार खुद फिल्म प्रोडक्शन में उतरी और नेपाल में ही शूट हुई पहली नेपाली फिल्म 'आमा' (अम्मा) 1964 में बड़े पर्दे पर पहुंची.
जब मशहूर भारतीय एक्ट्रेस माला सिन्हा ने की नेपाली फिल्म
'हरिश्चंद्र' के बाद बनी दूसरी नेपाली फिल्म 'माइतीघर' (मायका), 1966 में रिलीज हुई जिसमें हिंदी फिल्म एक्ट्रेस माला सिन्हा ने, नेपाली एक्टर चिदंबर प्रसाद लोहनी के साथ लीड रोल निभाया था. लोहनी एक रियल एस्टेट कारोबारी थे जिनके साथ माला ने आगे चलकर शादी भी की. लेकिन हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में तब बड़ा नाम बन चुकीं माला, नेपाली फिल्म करने के लिए क्यों तैयार हुईं, इसके पीछे शायद एक इमोशनल वजह भी थी.
माला खुद नेपाली मूल की थीं. उनके पिता एल्बर्ट सिन्हा, नेपाली ईसाई थे जो काम की तलाश में पश्चिम बंगाल चले आए थे. माला का ऑरिजिनल नाम एल्डा था. जब बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट बंगाली फिल्मों से उनका करियर शुरू हुआ तो उन्हें बेबी नजमा नाम दिया गया. बाद में जब वो बड़ी होकर हिंदी फिल्मों में आईं तो उन्होंने माला नाम रख लिया.
अपने वक्त में बड़ी ब्लॉकबस्टर साबित हुई 'माइतीघर', नेपाली सिनेमा के इतिहास में एक आइकॉनिक फिल्म मानी जाती है. माला के अलावा भी फिल्म के टेक्नीशियन्स और दूसरे डिपार्टमेंट में कई भारतीयों ने काम किया था.
देव आनंद ने शुरू किया नेपाल में शूट
नेपाल में जब थिएटर्स खुलने शुरू हुए तो वहां चलने वाली शुरुआती फिल्में भारतीय ही थीं. उस दौर के भारतीय फिल्म स्टार्स राज कपूर, दिलीप कुमार और देव आनंद को नेपाल में भी खूब फैन फॉलोइंग मिली. बाद में देव आनंद का जलवा नेपाल में अलग लेवल पर चला गया. इसकी वजह थी उनकी फिल्म 'हरे रामा हरे कृष्णा' (1971), जो उन्होंने नेपाल में शूट की थी. मगर देव आनंद नेपाल में शूट करने क्यों गए इसका भी एक किस्सा है.
देव हमेशा चाहते थे कि उनकी फिल्मों की कहानी नई लोकेशंस में सेट हो. इसी तलाश में वो पहली बार सिक्किम में 'ज्वेल थीफ' शूट करने पहुंचे थे. इसी तरह 1970 में देव आनंद मेहमान बनकर नेपाल के राजकुमार प्रिंस वीरेंद्र की शादी में नेपाल पहुंचे थे. इस ट्रिप पर वो अपने एक जर्मन फिल्ममेकर दोस्त के साथ हिप्पियों को देखने निकल पड़े. उनके तौर तरीके देखकर ही देव को 'हरे रामा हरे कृष्णा' का प्लॉट सूझा. देव जब शादी से विदा लेने नेपाल के तत्कालीन राजा, किंग महेंद्र के सामने पहुंचे तो उन्होंने नेपाल में फिल्म शूट करने का आईडिया सामने रख दिया.
राजा ने ना सिर्फ उन्हें फिल्म शूट करने की इजाजत दी, बल्कि देव को न्यौता दिया कि वो पोखरा में उनके गेस्ट हाउस आएं और वहां रहकर अपनी फिल्म का काम आगे बढ़ाएं. देव आनंद को राजा का ऐसा सपोर्ट और जनता का ऐसा प्यार मिला कि वो काठमांडू के साथ-साथ, वहां कम्युनिस्टों के गढ़ भक्तपुर में भी शूट कर आए, जहां भारतीयों को कुछ खास पसंद नहीं किया जाता था.
'हरे रामा हरे कृष्णा' की पॉपुलैरिटी का ये कमाल हुआ कि देव की दोस्ती बाद में राजा बने किंग वीरेंद्र और राजकुमार ज्ञानेंद्र से भी रही. देव आनंद ने भारतीय फिल्मों के लिए नेपाल के जो दरवाजे खोले, उसके बाद कई फिल्मों का शूट वहां हुआ. नेपाल धीरे-धीरे भारतीय फिल्मों के लिए लगभग घरेलू लोकेशन बन गया जहां बजट में शूट निपटाने के साथ-साथ, वहां लोगों से सपोर्ट बहुत मिलता था. बाद अमिताभ बच्चन ने भी नेपाल में अपनी फिल्मों के लिए खूब शूट किया.
नेपाल में, नेपाली फिल्मों से भी ज्यादा चली हैं साउथ फिल्में
भारतीय फिल्मों के लिए नेपाल कितनी बड़ी जगह है इसका एक सबूत वहां का बॉक्स ऑफिस भी है. नेपाल के बॉक्स ऑफिस पर सबसे बड़ी फिल्म, नेपाली फिल्म 'सारंगी' है. इसने लगभग 47 करोड़ नेपाली रुपये का ग्रॉस कलेक्शन किया था. मगर 2024 में आई इस नेपाली फिल्म से पहले, एक लंबे समय तक वहां के बॉक्स ऑफिस पर सबसे बड़ी फिल्म 'बाहुबली 2' (2017) थी.
एस.एस. राजामौली की फिल्म ने नेपाल के बॉक्स ऑफिस पर 23 करोड़ नेपाली रुपये का कलेक्शन किया था. अभी ये नेपाल के बॉक्स ऑफिस पर तीसरी सबसे कमाऊ फिल्म है. दूसरे नंबर पर भी भारत के तेलुगू सिनेमा से निकली 'पुष्पा 2' (2024) है. अल्लू अर्जुन की फिल्म ने वहां बॉक्स ऑफिस पर 26 करोड़ नेपाली रुपये से ज्यादा कलेक्शन किया था. KGF 2 और RRR भी नेपाल में जमकर कमाई करने वाली भारतीय फिल्मों में से एक हैं. बल्कि इन साउथ इंडियन फिल्मों की कमाई उन ऐसी नेपाली फिल्मों से भी ज्यादा है, जो टॉप 10 सबसे कमाऊ नेपाली फिल्मों की लिस्ट में आती हैं.
मनीषा कोइराला और डैनी डेंजोग्पा से लेकर आज के यंग एक्टर रोहित सराफ तक, भारतीय सिनेमा का तगड़ा नेपाल कनेक्शन रहा है. मगर दोनों देशों के कलाकारों के आने-जाने से इतर, भारतीय सिनेमा को नेपाल में उसी तरह प्यार मिला है जैसे ये वहां की अपनी इंडस्ट्री हो.
पीढ़ी दर पीढ़ी भारतीय सिनेमा ने नेपाली जनता के फैशन, गानों और एटिट्यूड पर अपनी पहचान बराबर छोड़ी है. अब जबकि नेपाल में एक नया निजाम दस्तक दे रहा है और माहौल बदल रहा है, तो नजरें इस बात पर भी रहेगी कि भारतीय सिनेमा का ये दूसरा घर, अपने पुराने मेहमान के लिए कितनी गर्मजोशी रखता है.
सुबोध मिश्रा