सैलरी वाले दिन का एंथम लिखने वाला वो गीतकार जिसने राज कपूर को कह दिया 'मेरे पास वक्त नहीं है'

'दिन है सुहाना आज पहली तारीख है, खुश है जमाना आज पहली तारीख है.' ये गाना कई सालों तक हर महीने की पहली तारीख को रेडियो सीलोन पर बजाया जाता था. क्या आपको पता है कि ये गाना लिखा किसने था? पर्दे के पीछे रहकर ऐसे कई बेहतरीन गाने लिखने वाले गीतकार का नाम था- कमर जलालाबादी.

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कमर जलालाबादी कमर जलालाबादी

सुबोध मिश्रा

  • नई दिल्ली ,
  • 06 मार्च 2025,
  • अपडेटेड 1:40 PM IST

एक आम मिडल क्लास आदमी वैसे तो पूरे महीने सैलरी और खर्चे के बीच बैलेंस बनाने में लगा रहता है. लेकिन कम से कम एक दिन ऐसा होता है जब वो इस बैलेंस को इग्नोर करके थोड़ा सा खर्च कर लेना चाहता है और वो दिन है- एक तारीख, यानी सैलरी का दिन. 

एक बेहद पॉपुलर चॉकलेट ब्रांड ने इस फीलिंग को अपने प्रमोशन कैम्पेन के लिए भी इस्तेमाल किया था, जिसकी टैग लाइन लोगों को रट गई- 'मीठा है खाना आज पहली तारीख है.' लेकिन इस चॉकलेट का ऐड असल में एक बहुत पॉपुलर पुराने गाने की पैरोडी था. ये गाना था 1954 में आई फिल्म 'पहली तारीख' का टाइटल ट्रैक. 

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किशोर कुमार ने ये गीत गाया था और इसके बोल थे 'दिन है सुहाना आज पहली तारीख है, खुश है जमाना आज पहली तारीख है.' ये गाना कई सालों तक हर महीने की पहली तारीख को रेडियो सीलोन पर बजाया जाता था. क्या आपको पता है कि ये गाना लिखा किसने था? पर्दे के पीछे रहकर ऐसे कई बेहतरीन गाने लिखने वाले गीतकार का नाम था- कमर जलालाबादी. 

'दुनिया में गरीबों को आराम नहीं मिलता'
कमर साहब की फिल्मी शुरुआत लाहौर से हुई थी, जहां वो असल में एक जर्नलिस्ट के तौर पर 'डेली मिलाप' और 'निराला' जैसे अखबारों के लिए काम करते थे. उन्हें फिल्मों में गाने लिखने का काम सबसे पहली बार 1942 में आई फिल्म 'जमींदार' के लिए मिला, जिसके म्यूजिक डायरेक्टर मास्टर गुलाम हैदर थे. कमर ने जो तीन गाने लिख कर दिए, उन्हें धुन में पिरोने में हैदर को कामयाबी नहीं मिल रही थी. आखिरकार, वो एक दिन रात में अपने स्टूडियो पहुंचे, जहां ताला लगा था. गुलाम हैदर को अपने ही स्टूडियो में खिड़की के रास्ते घुसना पड़ा और उन्होंने रात भर में कमर के लिखे गानों की धुनें तैयार कीं. इस मशक्कत से जो नगमे तैयार हुए उनमें 'दुनिया में गरीबों को आराम नहीं मिलता' बहुत पॉपुलर हुआ. 

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बाद के एक इंटरव्यू में कमर जलालाबादी ने बताया कि इस गाने की वजह से उन्हें पुणे की प्रभात फिल्म कंपनी में काम मिला जिससे आइकॉनिक म्यूजिक डायरेक्टर जोड़ी हुसनलाल-भगत राम डेब्यू करने जा रही थी. बेगम पारा और प्रेम अदीब स्टारर इस फिल्म के गाने भी बहुत पॉपुलर हुए. फिल्म के एल्बम से 'दो दिलों को ये दुनिया मिलने ही नहीं देती' बहुत ज्यादा पॉपुलर हुआ. प्रभात फिल्म कंपनी के लिए ही कमर ने 'रामशास्त्री', 'गोकुल' और 'लाखारानी' जैसी फिल्मों के लिए गाने लिखे जो 1944 से 1945 के बीच रिलीज हुईं. इन फिल्मों के गाने भी पॉपुलर हुए और इस पॉपुलैरिटी की वजह से कमर को मुंबई में काम मिला. 

'हर वक्त यही धुन रहती है कमर जलालाबादी को'
7 मार्च 1917 को जन्मे कमर जलालाबादी का असली नाम ओम प्रकाश भंडारी था और वो अमृतसर के जलालाबाद गांव में पैदा हुए थे. कम उम्र में ही शायरी का चस्का लग चुका था तो अब जरूरत थी शायरों की तरह एक अच्छा सा तखल्लुस यानी पेन-नेम रखने की. ओम प्रकाश के बचपन के एक दोस्त थे अमर चंद 'अमर', जिनसे वो शायरी को लेकर सलाह लिया करते थे. उन्होंने कहा कि मेरे तखल्लुस से मिलता जुलता तखल्लुस रख लो. तो अमर से मिलाते हुए ओम प्रकाश ने तखल्लुस चुना 'कमर' यानी चांद. और अपने गांव जलालाबाद को जोड़कर बना लिया जलालाबादी, इस तरह ओम प्रकाश भंडारी बन गए कमर जलालाबादी. 

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कमर ने 7 साल की उम्र से शायरी लिखनी शुरू कर दी थी और अपना पहला गाना उन्होंने 9 साल की उम्र में लिखा था. ये 1920 का दशक था और देश में स्वतंत्रता संग्राम जोर पकड़ने लगा था. तब उस बच्चे ने देशभक्ति की फीलिंग वाला एक गीत लिखा, जिसकी तीन लाइनें कुछ इस तरह थीं- 'देखो कि परिंदे भी चाहते हैं आजादी को, कोई नहीं चाहता अपनी बर्बादी को, हर वक्त यही धुन रहती है कमर जलालाबादी को...' कई साल बाद एक इंटरव्यू में कमर ने हंसते हुए कहा कि उन्हें कुछ वक्त बाद समझ आया कि ये तीनों लाइनें गलत थीं. लेकिन फिर वो शायरी लिखते रहे और सीखते-सीखते बेहतर होते चले गए. 

'इतने दूर हैं हुजूर कैसे मुलाकात हो?'
लाहौर और पुणे से बनी फिल्मों ने कमर जलालाबादी को जो शोहरत दिलाई, उसके आधार पर उन्हें मुंबई से भी ऑफर आने लगे. मुंबई में उन्होंने 1948 की फिल्म 'प्यार की जीत' के लिए जो गाने लिखे वो बहुत पॉपुलर हो गए. इसमें से एक गीत 'एक दिल के टुकड़े हजार हुए, कोई यहां गिरा-कोई वहां गिरा' जबरदस्त चल निकला और आज भी याद किया जाता है. 

इस फिल्म की कामयाबी के बाद का एक किस्सा यूं है कि कमर, दादर रेलवे स्टेशन पर खड़े एक ट्रेन का इंतजार कर रहे थे. तभी एक ट्रेन से एक खूबसूरत नौजवान उतरा और कमर के सामने आकर 'प्यार की जीत' में लिखा उनका गाना गुनगाने लगा- 'इतने दूर हैं हुजूर कैसे मुलाकात हो, कुछ तुम बढ़ो-कुछ हम बढ़ें फिर दिल से दिल की बात हो.' 

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गुनगुनाने के बाद उस नौजवान ने अपना इंट्रो देते हुए कहा, 'मैं राज कपूर हूं और मैं एक फिल्म शुरू कर रहा हूं. आप मेरे लिए गाने लिखिए.' उस वक्त राज कपूर का करियर शुरू ही हुआ था और उनका नाम बहुत बड़ा नहीं था. उन्हें जवाब देते हुए कमर ने कहा, 'मैं 16 फिल्मों के गाने लिख रहा हूं मेरे पास तो किसी की तरफ देखने के लिए भी वक्त नहीं है.' 

राज कपूर चले गए और जैसा कि इतिहास में दर्ज ही है, वो एक बड़ा सितारा बन गए. इसके बाद वो जब भी कमर को कहीं मिलते, तो उन्हें कहते, 'आपके पास तो वक्त ही नहीं है!' आखिरकार कमर को राज कपूर के लिए गाने लिखने का मौका 'छलिया' (1960) में मिला, जिसके गाने कल्याण जी-आनंद जी कंपोज कर रहे थे. इस फिल्म में कमर के लिखे गीत- मेरे टूटे हुए दिल से, डम-डम डिगा-डिगा और छलिया मेरा नाम; आज क्लासिक्स में गिने जाते हैं. 

9 जनवरी 2003 को दुनिया से रुखसत होने से पहले कमर जलालाबादी ने लगभग 40 साल लंबे करियर में 150 से ज्यादा फिल्मों के लिए, 700 से ज्यादा गाने लिखे जो आज भी बहुत पॉपुलर हैं. 'हावड़ा ब्रिज' से उनके गाने 'मेरा नाम चिन चिन चू' और 'आइए मेहरबां, बैठिए जान-ए-जां' आज भी खूब सुने जाते हैं. 'फागुन' का गाना 'एक परदेसी मेरा दिल ले गया' और 'महुआ' का 'दोनों ने किया था प्यार मगर' क्लासिक गीतों में गिने जाते हैं. 

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