कान्स फिल्म फेस्टिवल, दुनिया के सबसे बड़े इंटरनेशनल सिनेमा इवेंट्स में से एक है. हर साल इस इवेंट से इंडियन स्टार्स के रेड कार्पेट लुक्स खूब चर्चा में रहते हैं. हमारे फिल्म स्टार्स और चुनिंदा इंडियन फिल्मों ने कान्स में आए इंटरनेशनल फिल्ममेकर्स का ध्यान तो काफी खींचा है. मगर इस फेस्टिवल में दिया जाने वाला सबसे बड़ा फिल्म अवार्ड- पाल्मे डी'ओर, इंडियन फिल्मों की पहुंच से ज्यादातर दूर ही रहा है.
मगर इंडियन सिनेमा के शुरूआती दौर में एक फिल्म ये बड़ा इंटरनेशनल अवार्ड जीत चुकी है. इस फिल्म का नाम है- नीचा नगर. कान्स फिल्म फेस्टिवल में पाल्मे डी'ओर जीतने वाली, 'नीचा नगर' और एकमात्र भारतीय फिल्म है. इस फिल्म के डायरेक्टर थे चेतन आनंद. ये जानकर आप हैरान रह जाएंगे कि 'नीचा नगर' चेतन आनंद की पहली ही फिल्म थी. इसके बाद भी चेतन ने बेहतरीन दमदार फिल्में बनाईं और इंडियन सिनेमा में उनका योगदान बहुत बड़ा रहा. चेतन आनंद के सिनेमा से लेकर, उनकी पर्सनल लाइफ तक, बहुत सारी बातें ऐसी हैं जो एक सच्चे इंडियन सिनेमा फैन को जरूर जाननी चाहिए. आइए बताते हैं:
इतिहास पढ़ाते-पढ़ाते बन गए फिल्म मेकर
चेतन आनंद का नाम सुनते ही अगर आपको इंडियन सिनेमा के एक और लेजेंड, देव आनंद याद आ जाएं तो आप सही हैं क्योंकि इनमें वाकई एक कनेक्शन है. लाहौर के वकील पिशौरी लाल आनंद के घर 3 जनवरी 1921 में चेतन का जन्म हुआ था. गवर्नमेंट कॉलेज लाहौर से इंग्लिश में ग्रेजुएट चेतन ने कुछ दिन देहरादून के दूं स्कूल में इतिहास भी पढ़ाया और बीबीसी में नौकरी भी की. उन्होंने इंडियन सिविल सर्विसेज का एग्जाम भी दिया लेकिन पास नहीं हुए.
इतिहास पढ़ाने वाले चेतन ने सम्राट अशोक पर एक फिल्म की स्क्रिप्ट लिखी और मुंबई में डायरेक्टर फणि मजूमदार को दिखाने आ गए. लेकिन मजूमदार ने उन्हें अपनी फिल्म 'राज कुमार' (1944) में हीरो ले लिया. कांग्रेस पार्टी में रह चुके चेतन ने इंडियन पीपल्स थिएटर एसोसिएशन (IPTA) भी जॉइन की, जिसका मकसद उस दौर में अपनी स्वतंत्रता पाने के लिए जूझ रहे भारतीय लोगों की स्थिति को आर्ट में दिखाना था. चेतन के फिल्मों में आने के बाद ही उनके दोनों छोटे भाई विजय आनंद (गाइड के डायरेक्टर) और देव आनंद भी फिल्मों में आए.
ब्रिटिश विरोधी कहानी
चेतन में 1946 में 'नीचा नगर' बनाई, जिसे उस दौर की उन शुरूआती फिल्मों में गिना जाता है जिसमें ब्रिटिश साम्राज्यवाद का विरोध था. इसमें एक शहर की कहानी थी, जिसके दो हिस्से थे- रईसों का 'ऊंचा नगर' और पिछड़े, वंचित लोगों का 'नीचा नगर'. शहर के मेयर का नाम सरकार है. सरकार का प्लान है कि ऊंचा नगर से निकल रहे सीवर ड्रेनेज को, नीचा नगर की तरफ डाइवर्ट कर दिया जाए. इधर बीमारी फैलेगी और उधर नीचा नगर वाले जमीनें छोड़ देंगे. खाली जमीनों पर सरकार इमारतें बनाकर पैसे कमाएगा.
आजादी से पहले के भारत में समाज की खाई को दिखाने वाली इस फिल्म में जगह-जगह ऐसे सीन्स की भरमार थी जो ब्रिटिश राज में हिन्दुस्तानियों के हाल को दिखाते थे. खुद सरकार के किरदार को भी ब्रिटिश राज के रिप्रेजेंटेटिव की तरह दिखाया गया था. 'नीचा नगर' का ये एंटी-ब्रिटिश और साम्राज्यवाद विरोधी नैरेटिव, सराहा तो बहुत गया. लेकिन ये उन वजहों में से एक बना जिसने पाल्मे डी'ओर जीतने वाली इंडियन फिल्म को, इंडिया में ही रिलीज नहीं होने दिया. इसे दिखाया ही कान्स फिल्म फेस्टिवल में गया था. कई सालों बाद 'नीचा नगर' के प्रिंट कहीं खराब होते मिले और इन्हें बचाने के लिए फिल्म डिविजन ऑफ इंडिया को सौंप दिया गया.
उस दौर की पहली वॉर फिल्म
चेतन पर 1962 के भारत-चीन युद्ध का गहरा असर पड़ा और उन्होंने इसपर 1964 में 'हकीकत' बनाई धर्मेंद्र के लीड रोल वाली इस फिल्म में तमाम एक्टर्स थे और इसके गाने भी बेहतरीन थे. नेशनल अवार्ड जीतने वाली 'हकीकत' इंडिया की शुरूआती वॉर फिल्मों में से एक थी.
चेतन ने 'आंधियां' 'हिंदुस्तान की कसम' 'कुदरत' जैसी कई फिल्में बनाई, जिन्हें हिंदी सिनेमा में क्लासिक माना जाता है. 1988 में उन्होंने टीवी शो 'परम वीर चक्र' भी बनाया, जिसे उस दौर में बहुत पसंद किया गया.
हिंदी सिनेमा को दिए राजेश खन्ना, पंडित रवि शंकर जैसे कलाकार
भारत के क्लासिकल म्यूजिक में लेजेंड का दर्जा रखने वाले सितार वादक, पंडित रवि शंकर को पहला फिल्म ब्रेक चेतन आनंद ने ही दिया था. चेतन ने अपनी पहली फिल्म 'नीचा नगर' के लिए उनसे म्यूजिक कम्पोज करवाया, फिल्म देखने वालों ने म्यूजिक की भी खूब तारीफ की. सोशलिस्ट मूवमेंट में दिलचस्पी ले रहे पंडित रवि शंकर ने भी इप्टा (IPTA) जॉइन की थी और यहीं पर वो चेतन से मिले थे. बाद के एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि 'नीचा नगर' के बाद उन्हें फिल्मों में खूब काम मिला.
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के पहले सबसे बड़े सुपरस्टार कहे जाने वाले राजेश खन्ना को डिस्कवर करने का क्रेडिट भी चेतन को दिया जाता है. बताया जाता है कि चेतन ने ही एक टैलेंट हंट से निकले राजेश खन्ना को अपनी फिल्म 'आखिरी खत' में बतौर हीरो ब्रेक देने के लिए साइन किया. हालांकि जी. पी सिप्पी के साथ राजेश खन्ना की फिल्म 'राज' पहले रिलीज हुई. जब खन्ना का करियर थोड़ा लड़खड़ाने लगा तो वो चेतन के पास गए. क्रिएटिव आईडिया के साथ हमेशा रेडी रहने वाले चेतन ने फिर उनके साथ 'कुदरत' (1981) बनाई, जो बड़ी हिट रही.
चेतन ने सिर्फ बेहतरीन फिल्में ही नहीं बनाई, बल्कि उन्होंने कई टैलेंटेड लोगों को मेंटर भी किया. अपने सबसे छोटे भाई भाई देव आनंद के साथ उन्होंने 'अफसर' और 'टैक्सी ड्राईवर' जैसी फिल्में कीं. ऐसा बताया जाता है कि एक प्रोजेक्ट में बिजी होने की वजह से चेतन ने अपने भाई विजय आनंद को 'गाइड' डायरेक्ट करने को कहा था.
बड़ी हिट के लिए जूझ रहे राज कुमार को चेतन ने 'हीर रांझा' जैसी बड़ी हिट दी. और राज कुमार का करियर जब दोबारा गोते खाने लगा तो चेतन की 'कुदरत' से ही फिर संभला. 1997 में 76 साल की उम्र में संसार को अलविदा कहने से पहले चेतन ने इंडियन सिनेमा को इतना कुछ दिया, जिसने उन्हें लेजेंड बना दिया.
सुबोध मिश्रा