कुछ समय पहले रिलीज हुई अक्षय कुमार, धनुष और सारा अली खान स्टारर फिल्म अतरंगी को मास लेवल पर पॉप्युलैरिटी मिली है. फिल्म के सभी किरदार दर्शकों के फेवरेट बन गए. इसी बीच धनुष के बेस्ट फ्रेंड का किरदार निभाने वाले आशीष वर्मा के काम को भी बहुत नोटिस किया गया.
आशीष वर्मा आजतक डॉट इन से एक्सक्लूसिव बातचीत कर बताते हैं, यहां तक की जर्नी मेरे लिए काफी मुश्किलों भरी रही थी. खुशी इस बात की है कि दर्शकों को मेरा काम पसंद आया है. यह फिल्म मेरे दिल के बहुत करीब रहेगी. इसने मुझे लोगों के बीच पॉप्युलर बनाया है. यह एक ऐसा किरदार था, जिसमें बतौर एक्टर मुझे एक्स्प्लोर करने का मौका मिला है. बहुत लोगों से कॉम्प्लीमेंट्स मिल रहे हैं लेकिन सबसे अच्छा तब लगा, जब लोगों ने इंस्टाग्राम पर आकर मुझे पर्सनल मेसेज कर मेरी तारीफ की. कईयों ने कहा कि हम आपके काम को लंबे समय से फॉलो कर रहे हैं और आगे भी आपको देखना चाहते हैं. यह फीलिंग बहुत ही खूबसूरत है, जिसे बयां कर पाना मुश्किल है.
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कई बार किरदारों से समझौता किया है
आशीष आगे कहते हैं, जब यहां करियर बनाने आया था, तो मैंने अपने काम से समझौता कर लिया था. मैं किसी भी तरह के रोल के लिए राजी हो जाया करता था. उस वक्त जेहन में यही था कि बस काम तो मिल जाए और लोगों की नजर में आऊं. मेरी शुरूआत की लड़ाई यही थी कि लोग मेरे काम को जानें और मेरी मौजूदगी बनी रहे. एक जगह तक पहुंचने के लिए आपको कई बार ऐसे रोल करने पड़ते हैं, जो महज समझौता होता है. धीरे-धीरे चलकर आप वो जगह बनाने लगते हैं. भावेश जोशी के बाद मैं अपने प्रोजेक्ट्स को लेकर चूजी हो गया. अब अतरंगी ने मेरे उस भरोसे को और मजबूत किया है. मैं खुशनसीब हूं कि अपने पसंदीदा डायरेक्टर्स संग साथ काम करूं.
लोग स्क्रिप्ट देने से मना कर देते थे
मैं एक्टिंग को लेकर पैशनेट रहा हूं. जब काम था या नहीं भी था, तो मैं अपने क्राफ्ट पर सवाल नहीं किया करता था. मैंने कभी अपने चॉइसेज पर डाउट नहीं किया कि यार, मैं गलत फील्ड में तो नहीं आ गया. मैं अपने आर्ट को लेकर इमानदार था. जब फिल्में नहीं मिलती थी, तो थिएटर कर अपना काम चला लिया करता था. हां, निराशा बहुत होती थी, कई बार मेकर्स स्क्रिप्ट नहीं देते थे, कहते थे कि तुम्हें पांच मिनट का काम करना है, स्क्रिप्ट लेकर क्या करोगे. यह सुनना कितना बुरा लगता था. हालांकि मैंने खुद को टूटने नहीं दिया था. हां, अच्छे लोग भी मिले, उन्होंने मदद की और इस तरह कारवां चलता रहा.
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तो शॉर्ट फिल्म बनकर रह जाती अतरंगी रे
अगर धनुष के बजाय मुझे उठा लिया जाता, तो कहानी वहीं खत्म हो जाती. पूरी फिल्म एक शॉर्ट फिल्म बनकर रह जाती. इसलिए मुझसे ज्यादा धनुष का किडनैप होना जरूरी था. धनुष की बॉन्डिंग पर आशीष कहते हैं, धनुष सोचते और बोलते तमिल में हैं और मैं रहा हिंदीभाषी, मुझे इसी बात का डर था कि पता नहीं हमारी केमिस्ट्री स्क्रीन पर कैसे दिखेगी. हालांकि धनुष इतने मंजे हुए कलाकार हैं, उन्हें लैंग्वेज बांध ही नहीं सकती है. धनुष मेरे लिए बहुत बड़ा नाम था, मैं उनके काम का मुरीद रहा हूं. वे अपने बाकी के प्रोजेक्ट्स के लगातार बिजी थे, तो हमें इक्वेशन बनाने का वक्त ही नहीं मिला. हमारी पहली मुलाकात डायरेक्ट सेट पर ही हुई.
कंबल ओढ़ते ही धनुष मेरा बेस्ट फ्रेंड बन गया
धनुष के साथ पहली मुलाकात का जिक्र करते हुए आशीष कहते हैं, हम बनारस में शूट करने वाले थे. उस दिन बनारस में बारिश हो रही थी. रात को शूट होना था, लगातार पानी की वजह से ठंड पड़ गई थी. मैं ठिठुर रहा था, उन्होंने देखा मुझे और पास बुलाते हुए अपना कंबल दिया और ओढ़ा दिया. हम दोनों एक ही कंबल में डेढ़ घंटे बैठे रहे. हालांकि उन्हें ये करने की जरूरत नहीं थी. उनसे बॉन्डिंग को स्क्रीन पर परफेक्ट दिखाने के लिए जो मुझे साठ से आठ दिनों की वर्कशॉप चाहिए थी न, वो कुछ घंटों के कंबल में पूरी हो गई. कंबल ओढ़ते ही वे मेरा बेस्ट फ्रेंड बन गया.
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नेहा वर्मा