क्या टोंक में सचिन पायलट को रोक पाएंगे रमेश बिधूड़ी? जानिए बीजेपी की रणनीति

राजस्थान में जल्द ही विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान होने वाला है. उससे पहले बीजेपी ने सत्तारूढ़ कांग्रेस को घेरने की रणनीति को जमीन पर उतारना शुरू कर दिया है. बीजेपी ने कांग्रेस के दिग्गज नेता सचिन पायलट को उनके ही गढ़ में घेरने का पुख्ता प्लान तैयार किया है. पार्टी ने दिल्ली से सांसद और गुर्जर समाज के नेता रमेश बिधूड़ी को टोंक जिले का प्रभार दिया है.

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रमेश बिधूड़ी को सचिन पायलट के गढ़ टोंक का प्रभारी बनाया गया है. रमेश बिधूड़ी को सचिन पायलट के गढ़ टोंक का प्रभारी बनाया गया है.

शरत कुमार / आशीष रंजन

  • जयपुर/नई दिल्ली,
  • 30 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 10:00 PM IST

क्या चुनावी राजनीति में जाति सबसे मजबूत हथियार है? कम से कम राजस्थान चुनाव में तो बीजेपी ने रमेश बिधूड़ी को टोंक का प्रभार देकर यही संकेत दिया है. टोंक को कांग्रेस नेता सचिन पायलट का इलाका माना जाता है. वे टोंक विधानसभा से वर्तमान में विधायक भी हैं. सचिन पायलट गुर्जर जाति से आते हैं और इसी जाति से रमेश बिधूड़ी भी हैं. बिधूड़ी, दक्षिण दिल्ली से बीजेपी के सांसद हैं. फैक्ट यह है कि टोंक जिले में 13-14 फीसदी गुर्जर मतदाता हैं, जिनके बीच सचिन की लोकप्रियता है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या सचिन को घेरने के लिए बीजेपी ने संसद में अमर्यादित और असंवैधानिक बोल बोलने वाले बीजेपी सांसद रमेश बिधूड़ी को टोंक जिले का इंचार्ज बनाया है?

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बिधूड़ी, कुछ दिन पहले संसद में चर्चा के दौरान बसपा सांसद दानिश अली को धर्म के आधार पर अपशब्द बोलकर विवादों में आए हैं. रमेश बिधूड़ी को सांप्रदायिक टकराव वाला चेहरा और गुर्जर नेता के रूप में टोंक का प्रभारी बनाने की चर्चा है. मगर सवाल उठता है कि क्या बीजेपी की रमेश बिधूड़ी के जरिए सचिन को टोंक में घेरने की रणनीति सफल होगी?

क्या कहते हैं टोंक के सामाजिक समीकरण?

टोंक में 23 से 24 फीसदी के बीच अल्पसंख्यक मतदाता हैं. 13 से 14 फीसदी गुर्जर मतदाता हैं. साथ ही 11 से 12 फीसदी तक दलित मतदाता और 8 से 9 फीसदी जाट मतदाता हैं. ये सभी कांग्रेस के वोट बैंक रहे है. सांप्रदायिक ध्रुवीकरण से अल्पसंख्यक वोट का बिखराव रुकेगा. दलित परंपरागत रूप से कांग्रेस के वोटर रहे हैं. जहां तक गुर्जरों की बात है तो ये कांग्रेस के नहीं, बल्कि सचिन पायलट के पक्के वोटर हैं. टोंक सांसद सुखबीर सिंह जौनपुरिया भी गुर्जर ही हैं. मगर सचिन पायलट का नाम आते ही गुर्जर वोटर कहते हैं कि हमें तारे नहीं, चांद देखना है और हमारा चांद पायलट है. 

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क्यों टोंक में कमाल करेगा बिधूड़ी कार्ड?

जहां तक जाट वोट बैंक की बात है- सचिन पायलट के साथ सबसे ज्यादा जाट विधायक और जाट राजनीतिक राजघरानों का समर्थन रहा है. ऐसे में क्या बीजेपी का बिधूड़ी कार्ड टोंक में कोई कमाल करेगा? साधारण शब्दों में कहें तो क्या बिधूड़ी के धार्मिक ध्रुवीकरण से बीजेपी पायलट के मजबूत जातीय समीकरण को तोड़ पाएगी?

टोंक में चार सीटें... कांग्रेस और सहयोगी दल का कब्जा

टोंक जिले में 4 विधानसभा सीट हैं. इनमें एक टोंक विधानसभा से सचिन पायलट वर्तमान में विधायक हैं. 2018 में उन्होंने बीजेपी के उम्मीदवार को 50 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था. टोंक के अलावा तीन और विधानसभा सीट- मालपूरा, निवाई (एससी सुरक्षित) और देओली-उनियारा है. 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने मालपुरा सीट छोड़कर तीनों सीटें बड़े अंतर से जीती थीं. मालपुरा सीट कांग्रेस ने रालोद के लिए छोड़ी और वहां उन्हें जीत मिली. यानी टोंक जिले की सभी चार सीटें कांग्रेस और उसके सहयोगी दल ने जीतीं और चारों सीटों पर बीजेपी की हार हुई थी.

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टोंक में 2013 में बीजेपी ने दिखाया था कमाल

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यहां दो बातें महत्वपूर्ण हैं- पहली यह कि 2013 के राजस्थान विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने यह चारों सीटें जीती थीं. उस चुनाव में कांग्रेस की हालत इतनी खराब थी कि इन चार में से सिर्फ एक सीट पर उसे 35 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले थे. दूसरी बात बड़ी बात यह है 2013 के चुनाव में टोंक सीट पर कांग्रेस को सिर्फ 15 प्रतिशत वोट मिले थे. 2014 के बाद सचिन पायलट को कांग्रेस ने राजस्थान का प्रदेश अध्यक्ष बनाया और 2018 में वो उसी टोंक सीट से चुनाव लड़े, जहां पार्टी को टोंक जिले के चारों सीटों में सबसे कम वोट मिले थे.

2018 में पायलट ने बदल दिया टोंक का मिजाज?

2018 के चुनाव में टोंक जिले के मतदाता ने सचिन और कांग्रेस दोनों को भरपूर समर्थन दिया. यहां ना वो केवल सभी सीटें जीतने में सफल रहे बल्कि बड़े अंतर जीते. जिस टोंक सीट पर 2013 में कांग्रेस को 15 प्रतिशत वोट मिले थे, वहां 2018 में कांग्रेस को 64 प्रतिशत वोट मिले. यानी पिछले चुनाव की तुलना में चार गुणा ज्यादा.

सचिन के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद बढ़ा कांग्रेस का वोट?

टोंक और सचिन पायलट को 2018 चुनाव परिणाम से जोड़कर देखने की एक दूसरी महत्वपूर्ण वजह यह भी है कि 2008 से अब तक छह चुनाव हुए हैं- तीन सचिन के प्रदेश अध्यक्ष बनने से पहले (2008 और 2013 विधानसभा और 2009 लोकसभा) और तीन अध्यक्ष बनने के बाद (2014, 2019 लोकसभा और 2018 विधानसभा). आंकड़े बताते हैं कि सचिन के अध्यक्ष बनने से पहले टोंक और राजस्थान में कांग्रेस को खास बढ़त नहीं मिली. 

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पहले तीन चुनाव में टोंक जिले में कांग्रेस को राज्य की तुलना में कम वोट मिले. लेकिन, सचिन के अध्यक्ष बनने के बाद सभी तीन चुनाव में टोंक जिले में कांग्रेस को ज्यादा वोट मिले हैं. 2009 और 2018 के चुनाव ऐसे रहे, जब टोंक जिले में कांग्रेस को 40 फीसदी से ज्यादा वोट मिले, लेकिन 2018 एकमात्र चुनाव रहा, जहां कांग्रेस को बीजेपी से ज्यादा वोट मिले. यानी अगर आंकड़े को देखें तो टोंक में कांग्रेस का चुनावी प्रदर्शन में सचिन पायलट का एक महत्वपूर्ण योगदान रहा है.

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बिधूड़ी को टोंक में उतारने की बीजेपी की क्या है रणनीति?

पायलट, कांग्रेस के बड़े नेता हैं. उपमुख्यमंत्री रहे हैं. हालांकि, अशोक गहलोत के साथ हाल के समय में उनके संबंध खराब रहे हैं. इस चुनाव में दोनों नेता अपनी-अपनी स्थिति को मजबूत रखना चाहेंगे, ना सिर्फ खुद की सीट जीतकर बल्कि अपने प्रभाव वाले इलाके की सीट भी जीतना चाहेंगे. पायलट के लिए टोंक के साथ-साथ राजस्थान भी काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि वही उनकी भविष्य की राजनीति का रास्ता तय करेगा. ऐसे में बीजेपी का बिधूड़ी को टोंक का प्रभार देना कहीं ना कहीं पायलट को उनके गढ़ (टोंक) में ही घेरने और एकमात्र सीट तक सीमित करने की रणनीति हो सकती है. क्योंकि टोंक सचिन के लिए साख का सवाल है.

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