द्वार से ही एक्जिट हो गई बीजेपी तो फिर दक्षिण में कैसे पसार पाएगी पांव?

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग खत्म होने के बाद से अब सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हुई हैं कि राज्य में किसकी सरकार बनेगी? एग्जिट पोल की मानें तो राज्य में बीजेपी के हाथों से सत्ता जा सकती है. यह सर्वे अगर नतीजे में तब्दील होते हैं तो बीजेपी के लिए मिशन-साउथ को भी झटका लग सकता है?

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बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा

कुबूल अहमद

  • नई दिल्ली ,
  • 11 मई 2023,
  • अपडेटेड 3:02 PM IST

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के फाइल नतीजे शनिवार को आएंगे, लेकिन बुधवार को मतदान खत्म होने के साथ ही एग्जिट पोल के सर्वे सामने आए हैं. इंडिया टुडे-एक्सिस माय इंडिया के सर्वे के अनुसार कांग्रेस को सबसे ज्यादा 122-140 सीटें मिल सकती हैं तो बीजेपी को 62-80 सीटें मिलने की संभावना है. इस तरह से अगर चुनावी नतीजे रहे तो फिर बीजेपी के हाथ से सिर्फ कर्नाटक की सत्ता ही नहीं बल्कि मिशन-साउथ के अरमानों को भी सियासी झटका लग सकता है? 

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कर्नाटक में पिछले साढ़े तीन दशक से चली आ रही सत्ता परिवर्तन की रवायत इस बार भी कायम होती नजर आ रही है. कर्नाटक का चुनाव कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा था, क्योंकि यह दक्षिण भारत का इकलौता राज्य था, जहां उसे किसी तरह सत्ता में आने का मौका मिला था. कर्नाटक से ही दूसरे दक्षिण भारत के राज्यों में बीजेपी के लिए गलियारा खुलने की उम्मीद थी, लेकिन अगर कर्नाटक में उसे हार मिलती है तो फिर साउथ के राज्यों में उसके लिए सियासी मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं. 

बता दें कि नरेंद्र मोदी के अगुआई में बीजेपी केंद्र की सत्ता पर काबिज होने के बाद देश के अधिकतर राज्यों में या तो अकेले अपने दम पर सरकार बनाई या फिर एनडीए गठबंधन की सरकारें बनीं, लेकिन बीजेपी के लिए अभी भी दक्षिण भारत में अपना परचम नहीं फहरा सकी. कर्नाटक की चुनावी बाजी बीजेपी हारती है तो फिर दक्षिण भारत के दूसरे अन्य राज्यों की सत्ता में आने के लिए उसे अभी और लंबा इंतजार करना पड़ सकता है.  

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कर्नाटक को छोड़ दिया जाए तो दक्षिण के किसी भी राज्य में फिलहाल बीजेपी की सरकार नहीं है. दक्षिण के आंध्र प्रदेश, केरल, पुडुचेरी, तमिलनाडु और तेलंगाना में बीजेपी अभी तक खुद को स्थापित नहीं कर सकी है. दक्षिण के छह राज्यों में 130 लोकसभा सीटें आती हैं, जो कुल लोकसभा सीटों का 25 फीसदी है. ऐसे में सियासी तौर पर दक्षिण का काफी महत्व है.

बीजेपी कर्नाटक का विधानसभा चुनाव जीतकर आगामी 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले दक्षिणी राज्यों को सियासी संदेश देना चाहती थी. इतना ही नहीं कर्नाटक के जरिए दक्षिण के राज्यों में अपने पैर पसारना चाहती है. यही वजह है कि बीजेपी दक्षिण में भारतीय संस्कृतिवाद का सहारा ले रही थी, जिसके लिए पार्टी ने पिछले दिनों आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडू के राज्यों के लोगों को काशी का भ्रमण कराया था और उन्हें साधने की कोशिश कर रही थी.   

कर्नाटक

यह दक्षिण भारत का एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां बीजेपी ने अपने दम पर सरकार बनाई है. न सिर्फ यहां बीजेपी का प्रदर्शन अपने पीक पर रहा है बल्कि 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को राज्य में कुल मतदाताओं में से आधे से अधिक का समर्थन भी मिला था. बीजेपी का आधार भी बहुत मजबूत है. 2008 में बीजेपी ने लिंगायत समुदाय के लोकप्रिय नेता बीएस येदियुरप्पा की अगुवाई में राज्य में जेडीएस की मदद से अपनी पहली सरकार बनाई थी. 

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- साल 2013 में येदियुरप्पा बीजेपी से अलग हो गए थे, जिसके बाद पार्टी चुनाव में बहुत बुरी तरह हारी थी. बीजेपी का वोट प्रतिशत सीधा गिरकर 20 फीसदी हो गया था. लेकिन अगले साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का वोट प्रतिशत 20 फीसदी से बढ़कर 43 फीसदी हो गया था. बीजेपी ने राज्य में 28 लोकसभा सीटों में से 17 पर जीत दर्ज की थी. 

- 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी का वोट प्रतिशत सात फीसदी गिर गया था. हालांकि, पार्टी ने 224 विधानसभा सीटों में से 104 सीटों पर जीत दर्ज कर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी को राज्य में कुल 51 फीसदी वोट मिले थे जबकि जिन सीटों पर पार्टी चुनाव लड़ी थी वहां का वोट प्रतिशत 53 फीसदी रहा था. 

कर्नाटक में पार्टी ने 28 संसदीय सीटों में से 25 पर जीत दर्ज की थी. ऐसे में कर्नाटक का चुनाव बीजेपी के मिशन-साउथ के लिहाज से काफी अहम माना जा रहा है, लेकिन एग्जिट पोल के नतीजे से उसकी उम्मीदों को झटका लग सकता है. राज्य में बीजेपी के पूरे चुनावी अभियान को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने संभाल रखी थी. पीएम मोदी ने 19 रैलियां और 6 रोड शो करके सियासी माहौल को बदलने की पूरी कोशिश की है. इसके बावजूद बीजेपी की सत्ता में वापसी नहीं होती है तो निश्चित रूप से बीजेपी की लगातार जीत पर एक डेंट लगेगा और मिशन साउथ का झटका. 

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आंध्र प्रदेश

यह दक्षिण भारत का वह राज्य है, जहां 1990 के दशक में बीजेपी को टीडीपी के रूप में एक कद्दावर का राजनीतिक सहयोग मिला था. चंद्रबाबू नायडू वे नेता थे, जिन्होंने 1990 के दशक में खुलकर बीजेपी का समर्थन किया था. टीडीपी अटल सरकार के दौरान एनडीए का हिस्सा थी. टीडीपी मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में भी एनडीए का हिस्सा रही थी. 

बीते कुछ सालों में आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव और आम चुनावों के साथ ही हुए हैं. आंध्र प्रदेश में बीजेपी का जनाधार कम रहा है लेकिन टीडीपी से गठबंधन की वजह से बीजेपी ने कम सीटों पर चुनाव लड़े लेकिन 2014 में चार विधानसभा सीटें और दो संसदीय सीटें जीतने में कामयाब रही. 2014 विधानसभा चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर दो फीसदी और लोकसभा चुनाव में सात फीसदी रहा. 

हालांकि, 2019 के विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने आंध्र प्रदेश में अकेले सभी सीटों पर चुनाव लड़ा था और दोनों ही चुनावों में पार्टी का वोट प्रतिशत एक फीसदी से भी कम रहा था. इन दोनों चुनावों में बीजेपी अपना खाता तक नहीं खोल सकी थी. 

आंध्रप्रदेश में लंबे समय से टीडीपी का साझेदार रहने के बावजूद बीजेपी राज्य में टीडीपी की छत्रछाया के बाहर नहीं निकल सकी अपना जनाधार मजबूत करने में कामयाब नहीं हो पाई है. 2024 के लोकसभा चुनाव में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या बीजेपी एक बार फिर आंध्र प्रदेश में अपने दम पर चुनाव लड़ेगी या फिर अपनी सीटें बढ़ाने के लिए किसी साझेदार को ढूंढेगी?

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तेलंगाना

तेलंगाना में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं. कभी आंध्र प्रदेश का हिस्सा रहा तेलंगाना लंबे भाषायी विवाद के बाद 2014 में अलग राज्य बन गया था. तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसी राव के नेतृत्व में तेलंगाना राष्ट्रीय समिति (अब भारत राष्ट्रीय समिति) लंबे समय से इस आंदोलन की अगुवाई कर रहे थे. तेलंगाना के गठन के बाद से वह राज्य की सत्ता संभाल रहे हैं. आंध्र प्रदेश की तरह तेलंगाना की सियासत में भी बीजेपी की कोई बड़ी भूमिका नहीं है.

2014 के बाद से तेलंगाना में बीजेपी की परफॉर्मेंस आंध्र प्रदेश की तरह ही रही है. तेलंगाना विधानसभा चुनाव में बीजेपी का वोट प्रतिशत 7 फीसदी और लोकसभा चुनाव में 10 फीसदी रहा है. बीजेपी का टीडीपी से गठबंधन रहा है. 2014 में राज्यवार वोट प्रतिशत की तुलना में बीजेपी का सीटों पर वोट प्रतिशत अधिक रहा है. विधानसभा चुनाव में बीजेपी का वोट प्रतिशत 19 फीसदी जबकि लोकसभा चुनाव में 23 फीसदी रहा. 

2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अकेले चुनाव लड़ा था और उसका वोट प्रतिशत महज सात फीसदी था. हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव में तेलंगाना में बीजेपी का वोट प्रतिशत में इजाफा हुआ और ये बढ़कर 19 फीसदी पहुंच गया था. इसके बाद से राज्य में बीजेपी की परफॉर्मेंस में लगातार सुधार हो रहा है. बीजेपी ने 2020 में हुए हैदराबाद नगर निगम चुनाव में राजनीतिक पंड़ितों को चौंका दिया था. इस चुनाव में न सिर्फ पार्टी ने अच्छे खासे वोट बटोरे थे बल्कि वोट प्रतिशत और सीट शेयरिंग के हिसाब से वह दूसरे स्थान पर रही थी. 

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तेलंगाना में हाल ही में विधानसभा उपचुनाव में बीजेपी ने सत्तारूढ़ टीआरएस को कड़ी टक्कर दी थी और मुख्य प्रतिद्वंदी बनकर उभरी. इस प्रक्रिया में बीजेपी ने उसी कांग्रेस को पीछे छोड़ दिया, जिसने आंध्र प्रदेश से तेलंगाना को अलग करने की प्रक्रिया शुरू की थी. अब यह तो समय बताएगा कि हैदराबाद नगर निगम और उपचुनाव में बीजेपी ने जो रफ्तार पकड़ी है, वह उसे बरकरार रख पाती है या नहीं? लेकिन अगर बीजेपी तेलंगाना में चौंकाने वाले नतीजे देती है तो कर्नाटक के बाद दक्षिण भारत के एक और राज्य में बीजेपी के जनाधार का विस्तार होगा.

केरल

केरल की राजनीति में कैडर आधारित सियासत का दबदबा रहा है. राज्य में वामपंथी गठंबधन और कांग्रेस गठबंधन बारी-बारी से सत्ता में आते-जाते रहे हैं, लेकिन 2021 के विधानसभा चुनाव में यह ट्रेंड उस समय बदला, जब सत्तारूढ़ वामपंथी मोर्चा अपनी सरकार बचाने में कामयाब रहा. 

केरल की राजनीति में बीजेपी एक कमजोर खिलाड़ी रहा है. हालांकि, RSS कार्यकर्ताओं का केरल में मजबूत आधार है. 2014 से राज्य में बीते चार चुनावों में बीजेपी का वोट प्रतिशत 10-13 फीसदी के आसपास रहा है. 

2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का वोट प्रतिशत सबसे ज्यादा 13 फीसदी रहा. पार्टी ने 2021 के विधानसभा चुनाव में मेट्रो मैन ई. श्रीधरन को अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाया था. हालांकि, इस चुनाव में भी पार्टी का परफॉर्मेंस 2016 विधानसभा चुनाव की तरह ही रहा. पार्टी का वोट प्रतिशत दो फीसदी लुढ़ककर 13 फीसदी से कम होकर 11 फीसदी हो गया. 

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केरल में जनाधार बढ़ाने के लिए बीजेपी लगातार कोशिश कर रही है. यहां वो सभी आधार मौजूद हैं जिससे बीजेपी को चुनाव में मदद मिलता है.जैसे कि 50 फीसदी से ज्यादा अल्पसंख्यक (ईसाई और मुस्लिम). आरएसएस का मजबूत कैडर, लेफ्ट के रूप में वैचारिक प्रतिद्वंदी. फिर भी बीजेपी यहां कुछ खास कामयाबी हासिल नहीं कर सकी है. केरल में बीजेपी अपने सियासी आधार को मजबूत करने के लिए अब ईसाई समुदाय को साधने पर फोकस कर रही है. 

तमिलनाडु और पुडुचेरी

तमिलनाडु एक और ऐसा राज्य है, जहां की राजनीति में अभी बीजेपी का कद बहुत छोटा है. तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री और एआईएडीएमके नेता जयललिता उन क्षेत्रीय नेताओं में से एक थीं, जिन्होंने 1990 के दशक में एनडीए के साझेदार के तौर पर बीजेपी का समर्थन किया था. राज्य में बीते एक दशक में बीजेपी का वोट प्रतिशत महज तीन से पांच फीसदी रहा है. राज्य में बीजेपी को वोट प्रतिशत सबसे अधिक 2014 लोकसभा चुनाव में रहा. इस दौरान पार्टी का वोट प्रतिशत पांच फीसदी से थोड़ा अधिक ही था.

इस दौरान बीजेपी ने एक लोकसभा सीट भी जीती थी. 2016 विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अकेले दम पर 234 सीटों में से 189 पर चुनाव लड़ा था लेकिन पार्टी खाता तक नहीं खोल पाई थी. 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने एआईएडीएमके के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था, जिन सीटों पर बीजेपी चुनाव लड़ी वहां उसे 29 फीसदी वोट मिले. हालांकि बीजेपी के खाते में कोई सीट नहीं आई. 

2021 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने एक बार फिर एआईएडीएमके के साथ चुनाव लड़ा और जिन 20 सीटों पर चुनाव लड़ी उनमें से चार सीटों पर ही जीत दर्ज कर पाई. इसके अलावा बीजेपी जिन सीटों पर चुनाव लड़ी वहां उसका वोट प्रतिशत 34 फीसदी रहा. 

केंद्रशासित प्रदेश पुडुचेरी एक छोटा सा केंद्रशासित प्रदेश हैं, जहां 30 विधानसभा सीटें हैं. यहां की राजनीति में दूर-दूर तक बीजेपी दिखाई नहीं देती, लेकिन 2021 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश में बीजेपी का वोट प्रतिशत 14 फीसदी रहा.

यहां बीजेपी ने एनआर कांग्रेस और एआईएडीएमके के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. बीजेपी ने यहां जिन नौ सीटों पर चुनाव लड़ा था, उन पर 45 फीसदी वोट हासिल किए थे. इस चुनाव में बीजेपी ने नौ सीटों पर चुनाव लड़ा था और इनमें से छह सीटों पर जीत दर्ज की थी. 

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