बिहार विधानसभा का आखिरी सत्र जनता के मुद्दों को उठाने का अवसर था, लेकिन पांचों दिन हंगामे की भेंट चढ़ गए. सदन के अंदर गाली गलौज, धक्का मुक्की और हाथापाई तक की नौबत आई. राजनीतिक आरोप व्यक्तिगत हमलों में बदल गए और यह कड़वाहट सदन के बाहर भी दिखी.