बिहार विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है. चुनाव आयोग ने आज तारीखों का ऐलान कर दिया है. बिहार में 6 और 11 नवंबर को वोट डाले जाएंगे. वहीं नतीजे 14 नवंबर को घोषित होंगे. ऐसे में राजनीतिक विश्लेषक NDA की स्थिति का मूल्यांकन कर रहे हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में NDA के पास कई रणनीतिक फायदे हैं, लेकिन उन्हें चुनौतियों और जोखिमों का भी सामना करना होगा. नीतीश कुमार राज्य के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे हैं. उन्होंने अपने शासनकाल में कई लोकप्रिय कल्याण योजनाओं और विकास परियोजनाओं के जरिए अपनी पहचान बनाई है.
जैसे ही राज्य चुनाव की ओर बढ़ रहा है, NDA के लिए नीतीश कुमार के नेतृत्व का SWOT (मजबूती, कमजोरी, अवसर, खतरे) विश्लेषण कुछ ऐसा है...
मजबूत पक्ष (Strengths):
- नीतीश कुमार की नेतृत्व क्षमता, एक इंजीनियर से राजनेता बने और राज्य के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे. उन्हें 'सुशासन' पर फोकस करने के लिए जाना जाता है.
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- लोकप्रिय कल्याण योजनाएं, जिनमें सामाजिक सुरक्षा पेंशन का विस्तार, 75 लाख महिलाओं को प्रत्येक को 10,000 रुपये की वित्तीय सहायता और बुनियादी ढांचे का विकास शामिल है.
- BJP और JD(U) का संगठित कार्यकर्ता नेटवर्क, जिसमें RSS के सहयोगी जैसे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का समर्थन भी शामिल है.
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा हाल ही में राज्य में शुरू की गई विकास और बुनियादी ढांचा परियोजनाएं.
कमजोर पक्ष (Weaknesses):
- दो दशक तक सत्ता में रहने से नrतीश कुमार की शुरुआती वर्षों (2005-2010) की ताजगी कम हुई.
- आगामी चुनाव में सत्ता-विरोधी लहर (Anti-incumbency) एक चुनौती हो सकती है.
- BJP, अपनी सामाजिक आधार को बढ़ाने के प्रयासों के बावजूद, अभी भी ज्यादातर ऊपरी जातियों की पार्टी मानी जाती है, जिन्हें बिहार में ‘forwards’ कहा जाता है और ये आबादी का मात्र 10% हैं.
अवसर (Opportunities):
नीतीश कुमार अपने राजनीतिक चरम से पीछे हैं और JD(U) में कोई मजबूत दूसरे स्तर का नेतृत्व नहीं है. BJP इस नेतृत्व अंतर को भरने का अवसर देख सकती है.
खतरे (Threats):
- पार्टी में दलबदलू नेताओं का आना BJP के अंदर अलग प्रभाव डाल सकता है.
- हिंदुत्व की विचारधारा अपनाने के कारण मुस्लिमों सहित पिछड़ी जातियों (Pasmandas) में असंतोष और डर पैदा हो सकता है, जिन्हें नीतीश कुमार ने पहले जीतने में सफलता पाई थी.
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