जम्मू-कश्मीर चुनाव के पहले चरण में कहां है बड़ी फाइट, किस सीट पर महिला उम्मीदवारों का दबदबा?

जम्मू-कश्मीर में एक दशक के बाद विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं, जिसका पहला चरण 18 सितंबर को होगा. इसमें कश्मीर की 24 सीटों के लिए मतदान होगा. उम्मीदवारों के सेलेक्शन और प्रमुख चुनावी मैदानों से लेकर चुनाव छोड़ने वालों और जेंडर गैप तक, कई वजहें चुनाव की शुरुआत को आकार दे रही हैं.

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जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव

दीपू राय

  • नई दिल्ली,
  • 17 सितंबर 2024,
  • अपडेटेड 11:14 AM IST

2024 के जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव (Jammu Kashmir Assembly Polls) का पहला चरण एक हाई-स्टेक लड़ाई जंग रहा है. साल 2019 में आर्टिकल 370 हटाए जाने और राज्य का दर्जा खत्म होने के बाद यह पहला चुनाव है. प्रमुख निर्वाचन क्षेत्रों में बड़ी तादाद में उम्मीदवारों के नाम वापस लेने और जेंडर गैप की वजह से यह चुनाव सियासी तौर पर तनावपूर्ण मुकाबले के लिए मंच तैयार करता है.

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जेंडर असंतुलन: पहले चरण में कुल 219 उम्मीदवारों में से केवल नौ महिलाएं हैं. 96 फीसदी पुरुष-प्रधान दौड़ राजनीतिक प्रतिनिधित्व में असमानता को दर्शाती है.

हाई ड्रॉपआउट रेट: डोडा, भद्रवाह और अनंतनाग पश्चिम जैसे प्रमुख निर्वाचन इलाकों में उम्मीदवारों ने बड़ी संख्या में नाम वापस लिए हैं. डोडा में सबसे ज्यादा सात उम्मीदवार बाहर हुए.

बड़े स्तर पर राजनीतिक होड़: कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के बीच 'दोस्ताना' प्रतिस्पर्धा सहित प्रमुख मुकाबले पॉलिटिकल सिनेरियो को आकार देंगे, जिसमें 42 फीसदी कैंडिडेट्स निर्दलीय हैं.

सियासत में दोस्ताना मुकाबला अहम

219 उम्मीदवारों में से 42 फीसदी निर्दलीय हैं, जबकि जेंडर के आधार पर 96 फीसदी पुरुष और सिर्फ चार प्रतिशत महिलाएं हैं. इस मुकाबले में प्रमुख निर्वाचन इलाकों में कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के बीच 'दोस्ताना' मुकाबला भी देखने को मिल रहा है.

इलाके में जेंडर गैप और पार्टी प्रतिद्वंद्विता जेंडर के स्तर पर प्रतिनिधित्व और पॉलिटिकल अलाइनमेंट में चल रही चुनौतियों को उजागर करती है.

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  • पहले चरण में 42 फीसदी उम्मीदवार निर्दलीय हैं.
  • 96 प्रतिशत उम्मीदवार पुरुष हैं, जबकि सिर्फ 9 महिलाएं चुनाव लड़ रही हैं.

पार्टी प्रतिनिधित्व, जेंडर गैप और सीटों पर एक नजर

पार्टी प्रतिनिधित्व: जम्मू और कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के 21 उम्मीदवार (10 फीसदी) हैं, जबकि जम्मू और कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस 18 सीटों (आठ फीसदी) पर चुनाव लड़ रही है. भारतीय जनता पार्टी 16 सीटों (सात फीसदी) के लिए चुनाव लड़ रही है और कांग्रेस के 9 उम्मीदवार (चार फीसदी) हैं. संख्या के मामले में निर्दलीय उम्मीदवार इस दौड़ में हावी हैं.

जेंडर गैप: 219 उम्मीदवारों में से केवल 9 महिलाएं हैं. यह लैंगिक असंतुलन को दर्शाता है, जिसमें पुरुष चुनावी मैदान पर भारी हावी हैं.

सबसे ज्यादा उम्मीदवार वाली सीटें: पंपोर विधानसभा सीट से 14 उम्मीदवार हैं, उसके बाद शांगस और अनंतनाग में 13-13 उम्मीदवार अपनी सियासी किस्मत आजमा रहे हैं.

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पहले चरण में अहम मुकाबले

विधानसभा चुनाव के पहले चरण में प्रमुख सीटों पर जाने-माने राजनीतिक हस्तियों के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिल रही है. पंपोर में, नेशनल कॉन्फ्रेंस के हसनैन मसूदी का मुकाबला पीडीपी के जहूर अहमद मीर से होगा, जिन्होंने 2008 और 2014 में जीत हासिल की थी. अनंतनाग से पूर्व सांसद मसूदी मीर को हराने की कोशिश कर रहे हैं.

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त्राल (Tral) विधानसभा में पीडीपी के रफीक अहमद नाइक का मुकाबला कांग्रेस के सुरिंदर सिंह से है. यह सीट 2008 से पीडीपी के मुश्ताक अहमद शाह के पास है. पुलवामा में एक नाटकीय मुकाबला देखने को मिलेगा, क्योंकि पीडीपी के वहीद उर्रहमान पारा (हाल ही में जेल से रिहा हुए) का मुकाबला मोहम्मद खलील बंद से होगा, जिन्होंने 2008 और 2014 में पीडीपी के लिए सीट जीती थी, लेकिन अब वे नेशनल कॉन्फ्रेंस के बैनर तले चुनाव लड़ रहे हैं.

कुलगाम में, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI-M) के सीनियर कैंडिडेट मोहम्मद यूसुफ तारिगामी, प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी द्वारा समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार सयार अहमद रेशी के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं.

इसके अलावा, डूरू (Dooru) में पीडीपी के मोहम्मद अशरफ मलिक कांग्रेस के मजबूत नेता गुलाम अहमद मीर को चुनौती देंगे. यह इलाका लंबे वक्त से कांग्रेस का गढ़ माना जाता है. अनंतनाग के एक प्रमुख निर्वाचन क्षेत्र बिजबेहरा में पीडीपी की इल्तिजा मुफ्ती, बीजेपी के सोफी यूसुफ और नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन के बशीर अहमद वीरी के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है.

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कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के बीच दोस्ताना मुकाबला

INDIA ब्लॉक का हिस्सा कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस चार निर्वाचन क्षेत्रों में दोस्ताना मुकाबला कर रहे हैं. बनिहाल में विकार रसूल वानी (कांग्रेस) और सज्जाद शाहीन (नेशनल कॉन्फ्रेंस) दोनों ही चुनाव लड़ रहे हैं. भद्रवाह में, एनसी के शेख महबूब इकबाल और कांग्रेस पार्टी के नदीम शरीफ सियासी मैदान में हैं. देवसर में पीरजादा फिरोज अहमद (NC) और अमन उल्लाह मंटू (कांग्रेस) चुनाव लड़ रहे हैं. शेख रियाज अहमद (कांग्रेस) और खालिद नजीब सुहरवर्दी (NC) डोडा के लिए चुनाव लड़ रहे हैं.

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साल 2014 के चुनावों में कांग्रेस ने देवसर और बनिहाल पर जीत हासिल की थी, जबकि बीजेपी ने डोडा और भद्रवाह सीट पर कब्जा किया था. वहीं, 2008 में कांग्रेस ने देवसर को छोड़कर बाकी सभी सीटें जीती थीं, जिसे पीडीपी ने जीता था.

पहला चरण अहम

पहला चरण जम्मू-कश्मीर में पूरे चुनाव की दिशा तय करता है. सिर्फ इस चरण में 23 लाख से ज्यादा मतदाता हैं, जिनमें 1.23 लाख युवा मतदाता (18 से 19 साल) शामिल हैं, इसलिए राजनीतिक दल समर्थन हासिल करने के लिए कोशिश तेज कर रहे हैं.

डोडा की रैली में पीएम मोदी की अहम टिप्पणी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जम्मू के डोडा में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए कहा, "इन तीनों परिवारों ने मिलकर जम्मू-कश्मीर के लोगों के साथ जो किया है, वह किसी पाप से कम नहीं है." उन्होंने कहा कि ये तीनों परिवार इन चुनावों में जम्मू-कश्मीर के महत्वाकांक्षी युवाओं के खिलाफ खड़े होंगे.

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आगे की राह

जम्मू-कश्मीर में 25 सितंबर और 1 अक्टूबर को वोटिंग होनी है, जिसके नतीजे 8 अक्टूबर को आएंगे. 90 सीटों वाली विधानसभा में बहुमत के लिए तेरह मुख्य दल प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं. मुख्य खिलाड़ी महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली पीडीपी और उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस हैं. मुफ्ती और उमर दोनों मुख्यमंत्री रह चुके हैं. नेशनल कॉन्फ्रेंस ने भारत की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के साथ भी गठबंधन किया है, जबकि जम्मू में बीजेपी का मजबूत आधार है.

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पहले चरण में तनावपूर्ण सियासी माहौल

2018 के बाद से जम्मू और कश्मीर में अहम बदलाव हुए हैं. अनुच्छेद 370 को हटाने से इसका स्पेशल स्टेटस खत्म हो गया और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया गया, जिससे इस क्षेत्र के पॉलिटिकल सिनेरियो पर गहरा असर पड़ा. परिसीमन ने सीमाओं को नया आकार दिया है और अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आरक्षण नीतियों में बदलाव किया है.

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जम्मू-कश्मीर के चुनावों का पहला चरण तनावपूर्ण राजनीतिक माहौल को दर्शाता है, जिसमें उम्मीदवारों का बाहर होना, जेंडर गैप और क्षेत्र की प्रमुख पार्टियों के बीच कड़ा मुकाबला शामिल है. हालांकि, लैंगिक असंतुलन और क्षेत्रीय राजनीति अभी भी हावी है, लेकिन वोटर्स की बढ़ती तादाद लोकतंत्र की प्रगति की तरफ इशारा हो सकती है.

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