दिल्ली विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को प्रचंड बहुमत मिल गया है. बीजेपी 48 सीटों पर आगे चल रही है, जबकि 70 सीटों वाली विधानसभा में आम आदमी पार्टी महज 22 सीटों पर सिमट गई है. इतना ही नहीं, आम आदमी पार्टी के दिग्गज नेता भी अपनी सीट बचाने में नाकामयाब रहे हैं. अरविंद केजरीवाल नई दिल्ली सीट से बीजेपी के प्रवेश वर्मा से 4089 वोटों से हार गए हैं, वहीं, दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया भी जंगपुरा से चुनाव हार गए हैं. हालांकि उनकी हार का मार्जिन बेहद कम है, वह बीजेपी के तरविंदर सिंह मारवाह से महज 675 वोटों से हारे हैं. चुनाव हारने वालों की लिस्ट में AAP के सत्येंद्र जैन, सौरभ भारद्वाज का नाम भी शामिल है. नतीजों से साफ है कि दिल्ली के वोटर्स ने पीएम मोदी की गारंटी पर भरोसा जताया है. चुनाव परिणामों को लेकर पॉलिटिकल एक्सपर्ट रजत सेठी के क्या takeaways हैं, आइए एक-एक कर जानते हैं...
1. केजरीवाल पर जनमत संग्रह था दिल्ली का चुनाव
दिल्ली का इस बार का चुनाव पिछले 2013, 2015 और 2020 के चुनाव से पूरी तरह अलहदा था, क्योंकि आम आदमी पार्टी जिस करप्शन के खिलाफ लड़ाई के मुद्दे पर सत्ता में आई थी, उसी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घिर गई. दिल्ली चुनाव केजरीवाल पर एक तरह से जनमत संग्रह था और अब साफ हो गया है कि वे चुनाव हार गए हैं. कोई बहाना नहीं, कोई चाल नहीं.
2. दिल्ली ने AAP के (कु)शासन मॉडल को नकारा
दिल्ली में आम आदमी पार्टी साफ हो गई है. नतीजों से क्लियर है कि जनता ने पीएम मोदी की गारंटी पर भरोसा जताया है. और आम आदमी पार्टी के (कु)शासन मॉडल को नकार दिया है. बीजेपी को 45.91 फीसदी वोट हासिल हुआ है, जबकि आम आदमी पार्टी के खाते में 43.59 फीसदी वोट शेयर गया है. हालांकि इसमें बड़ा अंतर नहीं है, लेकिन सीटों का अंतर साफ दिखाई दे रहा है. ऐसे में ये माना जा सकता है कि दिल्ली के वोटर घर से किसी को वोट देने की बजाय आम आदमी पार्टी को नकारने के लिए निकले थे.
3. जेल से सरकार चलाने का जनता में गलत मैसेज गया
अन्ना आंदोलन से निकाली पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल की छवि करप्शन से लड़ने वाली थी, लोगों को भरोसा था कि ये ऐसी पार्टी है जो आम आदमी की बात करती है औऱ उसका नेता सिद्धांतों के लिए खड़ा है, केजरीवाल ने राजनीति में कदम रखते वक्त वीआईपी कल्चर खत्म करने और करप्शन को ज़ड़ से उखाड़ने की बात कही थी, लेकिन साल दर साल तस्वीर बदलती गई. एक समय ऐसा आया जब केजरीवाल पर शराब घोटाले के आरोप लगे. उन्हें जेल जाना पड़ा. लेकिन उन्होंने सीएम पद से इस्तीफा नहीं दिया और कहा कि वह जेल से ही सरकार चलाएंगे. इससे जनता में ये मैसेज गया कि वह सत्ता से चिपके हुए हैं.
4. केजरीवाल की विश्वसनीयता घटी
अरविंद केजरीवाल आम आदमी पार्टी के नेशनल कन्वीनर हैं, वह पार्टी को दिल्ली की चौहद्दी से निकालकर दूसरे राज्यों में लेकर गए और जनता को भरोसा दिलाने का प्रयास किया कि वह उनकी सेवा करने आए हैं. इसमें गुजरात, गोवा, मध्यप्रदेश, पंजाब जैसे राज्य शामिल हैं, जहां आम आदमी पार्टी ने हाथ आजमाने की कोशिश की और पंजाब में पार्टी इस काम में कामयाब भी हुई. मतलब साफ था, लोगों को केजरीवाल पर भरोसा था, पार्टी भी उन्हीं के चेहरे पर चलती है. लेकिन दिल्ली में मिली हार के बाद केजरीवाल की साख को झटका लगेगा. और भ्रष्टाचार विरोधी योद्धा के रूप में केजरीवाल की छवि को डेंट लगेगा.
5. नई राजनीतिक जगह बनाने का असफल प्रयास
आम आदमी पार्टी ने पहला चुनाव 2013 में जीता था, लेकिन 2025 में दिल्ली की सत्ता से बाहर हो गई, इससे ये मैसेज क्लियर है कि दिल्ली में नई पार्टी के रूप में किया गया प्रयोग असफल साबित हो गया. और लोगों ने बीजेपी पर ही भरोसा जताया है.
6. AAP के लिए ज़हर का प्याला साबित हुआ MCD जीतना
MCD जीतना AAP के लिए ज़हर भरा प्याला साबित हुआ. वे दिल्ली के वास्तविक मुद्दों- हवा, पानी और कूड़े के ढेर से बच नहीं पाए. क्योंकि जनता में सड़क, सीवर, पानी पड़ा मुद्दा थे, जिन्हें लेकर नाराजगी बनी हुई थी.
7. 'आप-दा' कैंपेन ने AAP को पहुंचाई चोट
दिल्ली में चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी ने आम आदमी पार्टी के खिलाफ "आप-दा" कैंपेन चलाया और ये बताने की कोशिश की कि AAP ने किस तरह दिल्ली को नुकसान पहुंचा और विकास के काम नहीं किए. लिहाजा बीजेपी AAP के खिलाफ ये नैरेटिव सेट करने में सफल हुई, औऱ इसका लाभ परिणामों में दिखा. "आप-दा" कैंपेन ने वहीं चोट पहुंचाई, जहां AAP को चोट लगी थी. भाजपा को "गाली पार्टी" कहने वाले आम आदमी पार्टी के जवाबी हमले का कोई असर नहीं हुआ. यह हमला विफल रहा.
8. पिछले 10 दिनों में भाजपा का तूफानी प्रदर्शन
पिछले 10 दिनों में भाजपा ने तूफानी प्रदर्शन किया और आम आदमी पार्टी के शासन की विफलताओं पर लगातार हमले किए. इसी बीच बजट में 12 लाख तक की इनकम पर टैक्स में छूट दी गई, इससे मध्यम वर्ग को काफी राहत मिली, इसका असर ये हुआ कि मिडिल क्लास का वोट बीजेपी की ओर ट्रांसफर हो गया.
9. अपने एजेंडे से भटक गई आम आदमी पार्टी
हर पार्टी का एक एजेंडा होता है, जिसके आधार पर वह चुनाव लड़ती है और अपना अस्तित्व कायम रखती है, उसे वह किसी भी कीमत पर कमजोर नहीं करती. आम आदमी पार्टी का एजेंडा भ्रष्टाचार विरोधी था, लेकिन उन्होंने इसे राजनीतिक नाटकबाजी के लिए बदल दिया. मतदाताओं ने उनकी हरकतों को समझ लिया.
10. केजरीवाल को रीसेट करने की जरूरत
केजरीवाल को रीसेट करने की जरूरत है. एमसीडी छोड़ना और भाजपा को पूर्ण नियंत्रण देना शायद उनका एकमात्र कदम हो सकता है. अब जरूरी है कि आम आदमी पार्टी बीजेपी को काम करने दें, चाहे वह सफल हों या विफल.
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