पिछले 6 सालों से नरेंद्र मोदी दुनियाभर में सबसे
लोकप्रिय प्रधानमंत्री के तौर पर उभरे हैं. आज पीएम
नरेंद्र मोदी का जन्मदिन है. वैसे तो उनकी जिंदगी
खुली किताब की तरह है. लेकिन कुछ ऐसी बातें भी हैं
जिन्हें लोग कम जानते हैं.
ये बहुत कम ही लोग जानते हैं कि स्कूल के दौरान
नरेंद्र मोदी को अभिनय और नाटक में बहुत रुचि थी.
अभिनय और रंगमंच के प्रति उनके प्रेम की रुचि के बारे
में उनके जीवन पर लिखी गई किताब "The Man
of the Moment: Narendra
Modi" में जिक्र है. ये किताब साल 2013 में
एमवी कामथ और कालिंदी Randeri ने लिखी थी.
बता दें, ये किताब उस वक्त लिखी गई थी जब वह
भारत के प्रधानमंत्री नहीं बने थे, लेकिन देश के बेहतरीन
राजनीतिक नेता के रूप में उभर रहे थे. वहीं मोदी ने
खुद अपनी किताब "Exam Warriors" में
बताया कि उन्हें अभिनय और नाटक/ड्रामा से कितना
प्यार है.
वहीं मोदी को लगा कि वह डायलॉग की डिलीवरी परफेक्ट तरीके से कर रहे हैं. लेकिन वह चाहते थे कि डायरेक्टर भी उनके बारे में यहीं बोले. अगले दिन, मोदी ने डायरेक्टर से कहा कि वह मेरी जगह आए और मुझे बताए कि मैं कहां गलत कर रहा हूं. कुछ ही सेकंड में, मुझे एहसास हुआ कि खुद को बेहतर बनाने में
मैं कहां गलत हो रहा था. आपको फिर से बता दें, ये सभी बातें मोदी ने किताब "Exam Warriors" में लिखी है.
बता दें, मोदी 13-14 साल के थे जब उन्होंने वडनगर में अपने स्कूल के लिए फंड जमा करने के लिए नाटक किया था. स्कूल की कंपाउंड की दीवार कई जगहों पर टूट गई थी और स्कूल के पास इसकी मरम्मत के लिए फंड नहीं था. जिसके बाद सभी बच्चों ने मिलकर नाटक करने के बारे में सोचा.
जिसके बाद मोदी और उनके दोस्तों की टोली ने फैसला कर लिया था कि वह अपने स्कूले के पैसे जुटाएंगे और नाटक करेंगे. ये नाटक मोदी ने लिखा था. जिसका उन्होंने डायरेक्शन भी किया और नाटक में एक्टिंग भी की.
मोदी का ये नाटक गुजराती में था. जिसका नाम था 'पीलू फूल'. इसका शाब्दिक अर्थ है पीले फूल.
नाटक का विषय अस्पृश्यता एक सदियों पुरानी प्रथा थी. बता दें, अस्पृश्यता की प्रथा को अनुच्छेद 17 के अंतर्गत एक दंडनीय अपराध घोषित कर किया गया है.
अस्पृश्यता को अपराध घोषित करने का पहला कानून 1955 में संसद द्वारा पारित किया गया था, लेकिन जब यह नाटक लागू हुआ (1963-64), तब भी समाज में अस्पृश्यता गहरी जड़ थी.
कैसा था मोदी का नाटक
मोदी के नाटक 'पीलू फूल' में, एक गांव में एक दलित महिला अपने बेटे के साथ रहती है. बेटा बीमार पड़ जाता है और मां उसे वैद्य (पारंपरिक चिकित्सक), डॉक्टर और तांत्रिक के पास ले जाती है लेकिन सभी बच्चे को देखने से इनकार कर देते हैं क्योंकि दोनों "अछूत" हैं.
किसी ने महिला को सुझाव दिया कि अगर वह गांव के मंदिर में देवताओं को चढ़ाए गए पीले फूल को उसका बेटा छू लेता है को उसकी बीमारी से ठीक हो जाएगी.
महिला मंदिर की ओर में भागती है लेकिन दलित होने की वजह से उसे मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है. पुजारी उस पर चिल्लाता है. महिला उस पुजारी के सामने एक पीले फूल के लिए रोती- गिड़गिड़ाती है ताकि वह अपने बेटे की जान बचा सके. जिसके बाद पुजारी, अंत में उसे एक फूल देने के लिए मान जाता है. मोदी का ये नाटक एक संदेश के साथ समाप्त होता है कि हर कोई भगवान और सभी को मंदिरों में देवताओं को चढ़ाए गए फूलों पर समान अधिकार रखता है.
द मैन ऑफ द मोमेंट के सह-लेखक, Kalindi Randeri के बारे में बताते हुए नरेंद्र मोदी ने एक इंटरव्यू में कहा कि जब वह इस किताब को लिखने के लिए ग्राउंड रिसर्च करने के लिए वडनगर का दौरा किया तो कई लोगों ने नाटक को याद करते हुए कहा कि यह एक अच्छी तरह से लिखा गया और अच्छी तरह से अभिनय किया गया है.
ऐसा कहा जाता है कि मोदी का नाटक एक वास्तविक घटना से प्रेरित था जिसमें उन्होंने वडनगर में एक पुजारी को एक दलित महिला को मंदिर से दूर भागते देखा था.