बुलिंग, मर्दवादी भाषा या भय? किन वजहों से Facebook से दूर हो रहीं महिलाएं...

Facebook News: फेसबुक यूजर कहती हैं कि मैंने फेसबुक पर लिखना पहले से बहुत कम कर दिया है. यहां कुछ मर्दों का सर्विलांस और विज‍िलांस बढ़ा है. बहुत ज्यादा सोशल मीडिया पुलिसिंग या यू कहें कि मेल गेजिंग बढ़ी है फेसबुक पर. यहां हर महिला को सिर्फ मेल पर्सपेक्टिव से जांचा जाने लगा है. 

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Facebook से दूर होतीं महिलाएं Facebook से दूर होतीं महिलाएं

मानसी मिश्रा

  • नई दिल्ली ,
  • 25 जुलाई 2022,
  • अपडेटेड 8:14 PM IST
  • 79 प्रतिशत महिला यूजर्स को फेसबुक पर लगता है डर
  • महिलाएं कर रहीं Lock Profile फीचर का इस्तेमाल

फेसबुक, अरे न पूछो, नशा था ये मेरे लिए... ये कोई छह सात साल पुरानी बात है जब फेसबुक मेरे लिए बहुत सेफ प्लेस हुआ करता था. कोई कविता हो, मन में उमड़ रही कोई भी फीलिंग, बस फेसबुक पर लिख डाला. कभी फेसबुक के दोस्तों ने मजेदार कमेंट किए, कभी दुख जताया तो कभी साथ खड़े दिखे. कमेंट के जरिये तर्क-वितर्क हुए. लेकिन मेरे देखते ही देखते ये प्लेटफॉर्म मुझे अजीब तनाव बढ़ाने वाला स्पेस लगने लगा. 

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डीयू में श‍िक्ष‍िका डॉ सविता पाठक फेसबुक के बारे में बात करते हुए कहती हैं कि अगर किसी रिपोर्ट में यह कहा जा रहा है कि औरतें फेसबुक से दूरी बना रही हैं तो इसमें कोई झूठ नहीं है, मेरी खुद की कई जानने वाली महिलाओं ने फेसबुक त्याग दिया है. बता दें कि हाल में सामने आई  Meta की रिसर्च रिपोर्ट में पाया गया है कि इंडियन वुमन इस मर्दवादी प्लेटफॉर्म से दूरी बना रही हैं. इसके पीछे का एक कारण Facebook पर बढ़ती अश्लीलता है. कंपनी अपने सबसे बड़े बाज़ार भारत में महिला यूजर्स को खोता देख परेशान है. 

यहां बुलिंग सहना आसान काम नहीं

इस रिपोर्ट पर aajtak.in ने अलग अलग उम्र की महिलाओं से उनके फेसबुक अनुभवों पर बात की तो कमोबेश ज्यादातर की प्रत‍िक्र‍िया मिलती जुलती सी है. फेसबुक से महिलाओं की दूरी पर सविता पाठक कहती हैं कि फेसबुक पर जो बुलिंग, काइंड ऑफ लैंग्वेज, मर्दवादी भाषा, कुतर्कों की बौछार, गाली-गलौच और औरतों पर इजली लेवल लगा देने वाली चीजे हैं, ये सब औरतें झेल नहीं पातीं. इतनी बुलिंग सहना बहुत मुश्क‍िल है. मैं खुद बीच-बीच में ब्रेक ले लेती हूं, कई महीने नहीं आती यहां, जब लगता है कि मेरी टॉक्स‍िस‍िटी बढ़ रही है तो एकदम यहां आना बंद कर देती हूं. लिखना भी पहले से बहुत कम कर दिया है. यहां कुछ मर्दों का सर्विलांस और विज‍िलांस बढ़ा है. बहुत ज्यादा सोशल मीडिया पुलिसिंग या यू कहें कि मेल गेजिंग बढ़ी है फेसबुक पर. यहां हर किसी को मेल पर्सपेक्टिव से जांचा जाने लगा है. 

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सारी रिश्तेदारी फेसबुक पर है, मर्द बहुत ज्यादा हैं

मेरठ की रहने वाली डॉ सुरीति गुप्ता ने हाल ही में अपनी पीएचडी पूरी करके एक नौकरी जॉइन की है. सुरीति कहती हैं कि फेसबुक से कहीं अच्छा इंस्टा या व्हाट्सऐप है. फेसबुक पर तो जैसे सभी रिश्तेदार, पड़ोसी और मर्दों का पूरा जमावड़ा लग गया है. यहां यूथफुलनेस जैसी कोई बात ही नहीं है. जिसे देखो, वही बस लड़कियों को जज करने में लगा है. 

एक एंबेसी में काम करने वाली कौश‍िकी कहती हैं कि अब तो किसी लड़की का रिश्ता तय होने के वक्त पर भी लोग उसकी फेसबुक प्रोफाइल खंगालते हैं. ये पूरी मर्दों की दुनिया है. साथ ही सिक्योरिटी कंसर्न बहुत ज्यादा बढ़ गए हैं. कोई लड़की अच्छे लुक में फोटो डाल रही है तो अवेलेबल है. पब्ल‍िक कमेंट ऑन हो तो कोई भी धड़ल्ले से हाय हैल्लो बोल देगा, यही नहीं, फोटो तक शेयर कर देते हैं. अब जब से प्राइवेसी फीचर आया है और कुछेक कानून बने हैं तो इस पर लगाम तो लगी है. मुझे तो आज भी फेसबुक पर आना ऐसा लगता है जैसे कोई पुरातनपंथी मर्दों की दुनिया है, जहां औरतें अपने रिस्क पर आती हैं. 

अब इंस्टाग्राम ही ठीक है

12वीं का एग्जाम दे चुकी ईशा कहती हैं कि इंस्टाग्राम के जैसा सोशल मीडिया प्लेटफार्म कोई नहीं है, वहां न फूफा, मौसा, मामा वगैरह हैं और न ही कोई सिक्योरिटी थ्रेट, आराम से मनचाहा कैप्शन लिखकर फोटो शेयर करो और बाकी टाइम रील्स देख लो. गृहणी पूजा कहती हैं कि फेसबुक हमको भी पहले बहुत पसंद था, लेकिन उसमें हमेशा एक जैसे पोस्ट दिखते हैं, लोग बहुत लंबे लंबे मैसेज शेयर करते हैं. साथ ही बच्चों के फोटो यहां शेयर करना सेफ नहीं लगता तो बस थोड़ा ही टाइम देती हूं, हमारे लिए तो व्हाट्सऐप ही बेस्ट है.    

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ट्रोलिंग के कारण छोड़ रही महिलाएं

जेएनयू से पीजी रिसर्चर रहीं आराधना मुक्त‍ि वर्तमान में ब्लॉगर-सोशल वर्कर हैं. वो कहती हैं कि 2009 में जिस वक्त वो फेसबुक पर आई थीं, यहां उनके साथ ब्लॉग‍िंग से जुड़े लोग थे, फिर धीरे धीरे नये दोस्त जुड़े और दायरा बढ़ता गया. लेकिन कुछ महिलाएं होती हैं जो एकदम नहीं चाहती कि अजनबी लोग उनसे जुड़ें, वो सिर्फ यहां अपने परिच‍ितों और दोस्तों से जुड़ना चाहती हैं. इसीलिए जो फेसबुक का नया फीचर आया है कि प्रोफाइल लॉक कर दें, ज्यादातर महिलाएं इसे यूज करने लगी हैं. सच कहूं तो ट्रोलिंग के कारण बहुत सी महिलाओं ने फेसबुक छोड़ भी द‍िया है.  

'मैंने पॉलिटिकल पोस्ट ही लिखनी छोड़ दी'

आराधना कहती हैं कि मैंने खुद भी पॉलिट‍िकल पोस्ट लिखना छोड़ दिया, वहां जिस तरह की भाषा में कमेंट होते थे, वो मुझे काफी एंजाइटी देते थे, इसलिए वैसे कमेंट आदि हैंडिल नहीं कर पा रही थी. यही कारण है कि मेरे हॉस्टल की बहुत ज्यादा स‍हेलियां हैं जो पब्ल‍िक पोस्ट नहीं लिखना चाहती हैं. वो किसी अपडेट पर कमेंट नहीं करती हैं, क्योंकि पब्ल‍िक में नाम आ जाएगा फिर लोग फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजने लगेंगे. ऐसे लोग जो दोस्तों में रहना चाहते हैं, वो पब्लिक पोस्ट करते ही नहीं. मेरे देखते देखते दो तीन महिला प्रोफाइल एकदम से गायब हो गईं. वहीं पहले महिलाएं मुखर होकर लिखती थीं. 2009 से मैंने शुरू किया था, तब क्लोज ग्रुप था, धीरे-धीरे लोग बढ़ते गए, पर्सनल चीजें कम शेयर कर रहे हैं लोग. 

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34 फीसदी महिलाओं की प्रोफाइल लॉक्ड, क्यों?

बता दें कि मेटा रिपोर्ट में शोधकर्ताओं से 79 प्रतिशत महिला यूजर्स ने फेसबुक पर अपने कंटेंट और फोटो के दुरुपयोग के बारे में चिंता व्यक्त की थी. वहीं 20 से 30 प्रतिशत महिलाओं ने बताया कि बीते सात दिनों में फेसबुक पर उन्हें अश्लीलता का सामना करना पड़ा. इन्हीं वजहों से फेसबुक Lock Profile फीचर लेकर आया था, इस फीचर के आने के बाद से जून 2021 तक 34 प्रतिशत भारतीय महिलाओं ने इस फीचर का इस्तेमाल करके अपनी प्रोफाइल लॉक कर दी. 

 

 

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