मल्टीपल एंट्री-एग्ज‍िट सिस्टम से कितना सुधरेगी इंडिया की हायर एजुकेशन? पढ़ें- क्या कहते हैं विशेषज्ञ

विशेषज्ञों का कहना है कि यह इंड‍ियन पहले की कठ‍िन प्रोसेस वाली शिक्षा प्रणाली में लचीलापन और एक अलग तरह का दृष्ट‍िकोण देगा. नये मल्टीपल एंट्री-एग्ज‍िट सिस्टम से क्या बदलाव आएंगे, आइए जानते हैं इस पर विशेषज्ञों की राय.

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प्रतीकात्मक फोटो (unsplash) प्रतीकात्मक फोटो (unsplash)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 18 अक्टूबर 2023,
  • अपडेटेड 11:55 AM IST

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020) में प्रस्तावित मल्टीपल एंट्री एंड एग्ज‍िट ऑप्शन इंडिया में हायर एजुकेशन को और ज्यादा इनक्लूसिव और स्टूडेंट-सेंट्र‍िक बनाएगी. इस नये सिस्टम से स्टूडेंट्स को कई फायदे होने वाले हैं. इसमें छात्रों को अपनी गति से सीखने और फुल डिग्री प्रोग्राम के बिना स्क‍िल और योग्यता प्राप्त करने का लचीलापन शामिल है.

मल्टीपल एंट्री एग्ज‍िट सिस्टम से छात्र अपने करियर के दौरान कभी भी अपनी पढ़ाई फिर से शुरू कर सकते हैं. इससे एक तरह से उन्हें आजीवन नया पढ़ने और सीखने का मौका मिलता है. हालांकि मल्टीपल एंट्री और एग्जिट सिस्टम (MEES) के इम्प्लीमेंटेशन को लेकर कई चिंताएं हैं.

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एक संसदीय पैनल ने हाल ही में इस नये सिस्टम से पड़ने वाले प्रभाव को लेकर आपत्ति उठाई थी. पैनल ने इसकी व्यावहारिकता और प्रभाव पर सवाल उठाया है. आइए एक्सपर्ट से जानते हैं कि इस सिस्टम के आने से वाकई कितने जरूरी बदलाव होंगे. 

हाई ड्रॉप आउट में कमी आएगी

ऋषिहुड विश्वविद्यालय गुरुग्राम के कुलपति और सह-संस्थापक शोभित माथुर का कहना है कि इस नये सिस्टम को कुछ इस तरह से डिजाइन किया गया है कि इससे लंबे समय से चले आ रहे इश्यू जैसे कठोर एकेडमिक स्ट्रक्चर्स और हाई ड्रॉप आउट में कमी आएगी. शोभित माथुर मानते हैं कि पैनल द्वारा उठाई गई चिंताएं वास्तव में वैध हैं, लेकिन उन्हें एजुकेशनल इंस्टीट्यूट्स, छात्रों और नीति निर्माताओं सहित सभी हितधारकों को शामिल करके एक अच्छी तरह से सोची-समझी इंप्लीमेंटेशन स्ट्रेटजी से सुलझाया जा सकता है. 

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काम के साथ कर सकते हैं पढ़ाई

वो आगे कहते हैं कि ये नया सिस्टम स्टूडेंट्स को अलग अलग चरणों में एकेडमिक प्रोग्राम्स में एंट्री या एग्जिट की सुव‍िधा देता है. उदाहरण के लिए, चार साल के स्नातक कार्यक्रम में नामांकित छात्र अगर एक साल के बाद पढ़ाई छोड़ता है तो वो प्रमाणपत्र ले सकता है. अगर दो साल के बाद वो छोड़ने का फैसला लेता है तो छात्र को डिप्लोमा के साथ बाहर निकलने का विकल्प मिलता है. यदि छात्र पढ़ाई जारी रखने का निर्णय लेता है, तो वह पूरी डिग्री पूरी कर सकता है. 

शोभ‍ित माथुर कहते हैं कि इसे अमेरिका की तरह ग्लोबल एजुकेशनल नॉर्म्स के अनुरूप डिजाइन किया गया है. इसमें छात्रों को बड़ी कंपनियों को बदलने, अकादमिक ब्रेक लेने या यहां तक कि विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों के बीच क्रेडिट स्थानांतरित करने की स्वतंत्रता है. 

मॉडल लर्न‍िंंग होती है आसान 

ये नया सिस्टम एजुकेशनल प्रोग्राम्स को छोटी और मैनेजबल इकाईयों में सीखने की छूट देता है. जिसमें अपने रिजल्ट और क्रेडिट होते हैं. ये क्रेडिट बिल्डिंग ब्लॉक्स की तरह हैं जिन्हें पढ़ाई और करियर के दौरान हासिल कर सकते हैं. 

एसजीटी यूनिवर्सिटी गुरुग्राम के डीन एकेडेमिक्स प्रोफेसर राजेश कुमार सिन्हा बताते हैं कि ये मॉडल लर्निंग को बहुत आसान बनाता है. मान लीजिए कि एक मनोविज्ञान स्नातक डेटा रिलेटेड फील्ड में जाने की इच्छा रखता है तो उस स्थिति में छात्र डेटा एनालिसिस सर्ट‍िफिकेट ले सकता है. इसलिए, यह अवधारणा न केवल आजीवन सीखने को बढ़ावा देती है, बल्कि विशिष्ट उद्योगों या नौकरी के दौरान योग्यता में बढ़ावा देने का अवसर देती है. यह छात्रों को वर्कफोर्स में शीघ्र प्रवेश की अनुमति देता है, जो तत्काल नौकरी के अवसर या करियर में बदलाव चाहने वालों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद हो सकता है. आज के अस्थिर नौकरी बाजार में, जहां करियर में हर कदम नया सीखने की चुनौतियां हैं, ऐसे में कोई भी अपनी शैक्षिक योग्यता में नये आयाम जोड़ सकता है. 

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क्या है (Multiple entry) और एग्जिट सिस्टम (exit system)

नई शिक्षा नीति (New Education Policy) के नीति के अनुसार, अगर कोई छात्र किसी भी कारणवश पढ़ाई को बीच सेमेस्टर में छोड़ देते हैं तो भी उन्हें सर्टिफिकेट और डिप्लोमा दिया जाएगा. अगर छात्र ने एक साल पढ़ाई की है तो सर्टिफिकेट, दो साल बाद डिप्लोमा दिया जाएगा. वहीं अगर कोर्स पूरा किया है तो डिग्री दी जाएगी.

तीन साल में डिग्री और चार साल में ऑनर्स डिग्री का प्लान
यूजीसी के अनुसार, 'जो छात्र तीन साल में ग्रेजुएशन करना चाहते हैं, उन्हें 120 क्रेडिट (अकादमिक घंटों की संख्या के माध्यम से मापा जाता है) प्राप्त करने होंगे जबकि चार साल में यूजी ऑनर्स की डिग्री के लिए चार साल में 160 क्रेडिट हासिल करने होंगे.' 

रिसर्च ऑनर्स डिग्री का भी ऑप्शन
वहीं, अगर कोई छात्र रिसर्च स्पेशलाइजेशन करना चाहते हैं तो उन्हें अपने चार साल के कोर्स में एक रिसर्च प्रोजेक्ट शुरू करना होगा. इससे उन्हें रिसर्च स्पेशलाइजेशन के साथ ऑनर्स की डिग्री मिलेगी. फिलहाल छात्रों को तीन साल के यूजी कोर्स को पूरा करने के बाद ऑनर्स डिग्री मिलती है. यूजीसी के मुताबिक, "जो छात्र पहले से पढ़ रहे हैं और मौजूदा च्वाइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम (CBCS) के अनुसार तीन साल के UG प्रोग्राम में हैं, वे चार साल के अंडरग्रेजुएट प्रोग्राम को आगे बढ़ाने के लिए पात्र हैं. विश्वविद्यालय उन्हें प्रोग्राम में बदलाव के लिए  ब्रिज कोर्स (ऑनलाइन) का ऑप्शन देगा.

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Report: Shelly Anand

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