देश में हो रहे संगीन अपराधों में से एक मानव तस्करी भी है. भारत देश के कई राज्य ऐसे हैं जहां से मानव तस्करी के हजारों केस सामने आते हैं. इन अपराधों को रोकने और इन घटनाओं से जूझ रहे लोगों को बचाने के लिए कई लोग सामने आते हैं, जिनमें से एक हैं पल्लबी घोष. पल्लबी एक एक्टिविस्ट हैं जो ह्यूमन ट्रैफिकिंग के खिलाफ सालों से काम कर रही हैं. इस दौरान उन्होंने इस क्राइम को करीब से देखा और ना जाने कितनी लड़कियों को रेस्क्यू भी किया है.
पल्लबी ने इंडिया टुडे से बातचीत में अपनी इस जर्नी के बारे में काफी कुछ बताया, उन्होंने बताया कि कैसे वे सालों मानव तस्करी के खिलाफ लड़ाई लड़ रही हैं. पल्लबी की जर्नी आज हर शख्स को सोचने पर मजबूर करती है कि ह्यूमन ट्रैफिकिंग के खिलाफ आवाज क्यों नहीं उठा रहा है.
12 साल की उम्र में पल्लबी ने देखी थी पहली घटना
20 साल पहले 12 साल के उम्र में पल्लबी ने इस क्राइम के बारे में जाना था और अपनी आंखो से देखा था. बचपन में पल्लबी कोलकाता में छुट्टियां मानने गई हुईं थीं. इसी दौरान वह पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना जिले में अपने परिवार के साथ अंकल के यहां गई थीं. तब उन्होंने एक आदमी को देखा जो हर किसी से कह रहा था कि उसकी बेटी कहीं भी मिल नहीं रही है. पल्लबी ने बताया कि पूरे गांव में किसी को भी नहीं पता था कि उनकी बेटी कहां है, वे रोते रहे लेकिन उनके बेटी का कुछ पता नहीं लगा.
पल्लबी छुट्टियां मनाकर घर वापस आ गईं लेकिन यह घटना उनके दिमाग ने नहीं निकल पाई. 12 साल की पल्लबी यही सोचती रहीं कि गांव से एक लड़की अचानक गायब कैसे हो गई और पूरे गांव को इस बारे में खबर तक नहीं है. पल्लबी ने रोते हुए पिता का नाम और गुम हुई बच्ची का नाम अपने पास लिख लिया था. पल्लबी ने बताया कि जब वह दिल्ली आईं तो एक लड़की ने उनसे बोला कि आप कौन-सी भाषा में बात कर रहे हैं तो पल्लबी ने बताया कि वे बंगाली में बात कर रही हैं. सुनकर उस लड़की ने कहा कि हमारे गांव हरियाणा में भी कई औरतें बंगाली में बात करती हैं. यह बात पल्लबी को काफी खटकी और जुगाड़ लगाकर वे उस गांव में पहुंचीं और कई औरतों से मिली.
इस दौरान एक लड़की ने उन्हें बताया कि जब वह 13 साल की थी तब उसे गांव के मेले में एक लड़के से प्यार हो गया था. लड़के ने उसे शादी और बेहतर जिंदगी का लालच दिया, उसे दिल्ली ले आया और फिर दूसरे राज्य में ले जाकर उसे बेच दिया. वह पिछले पांच वर्षों से इसी गांव में है और उसके दो बच्चे भी हैं. लड़की के पति की उम्र 50 साल से भी ज्यादा है. पल्लबी ने लड़के से पूछा कि क्या वे घर जाना चाहती है तो लड़की ने यह कहकर मना कर दिया कि उसका पति कम से कम बच्चों का खर्चा पानी चलाता है तो अब वे यहां से नहीं जा सकती. इसी तरह पल्लबी की सामने ह्यूमन ट्रैफिकिंग से जुड़ी कई सारी घटनाएं हुईं और फिर वे इन चीज से कभी बाहर नहीं निकलीं.
तस्करी के ये हैं कारण
पल्लबी ने बताया कि तस्करी का कारण गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा, प्रवासन, प्राकृतिक आपदाएं और परम्पराएं हैं. अवैध व्यापार का शिकार बनने वाले अधिकांश लोगों के पास कोई सिक्योरिटी नहीं होती है. शहरी नौकरी, अच्छा जीवन, ऐश आराम की जिन्दगी के बहकावे में आकर वे ह्यूमन ट्रैफिकिंग का शिकार हो जाते हैं. लड़कियों को शहरों के बड़े-बड़े सपने दिखाकर उनको धोखे में रखा जाता है और फिर देह व्यापार में ढकेल दिया जाता है.
रेस्क्यू होने के बाद लड़कियों को झेलनी पड़ती है प्रताड़ना
पल्लबी ने बताया कि रेस्कयू होने के बाद लड़कियों के सामने सबसे बड़ी चुनौती होती है समाज. समाज उन्हें कलंक घोषित कर देता है, लड़कियों को कई प्रतिबंध आदि का सामना करना पड़ता है. लड़कियों को न्याय मिलने में भी देरी होती है. कई बार तस्करों से परिवार को धमकी भी मिलती है. परिवार उन्हें स्वीकारता नहीं है, उनकी जबरदस्ती किसी के भी साथ शादी कर दी जाती है. यह सब चीजें उन्हें अधिक पीड़ित बनाती हैं. हालांकि डीएफ के जरिये इन लड़कियों को बुनाई, सिलाई, कढ़ाई, कंप्यूटर कौशल, अंग्रेजी आदि की शिक्षा दी जाती है ताकि लड़कियां अपने पैरों पर खड़े हो सकें.
रेस्क्यू के बाद लड़कियों को दी जा रही है कामकाजी शिक्षा
डीएफ के साथ मिलकर कई पार्टनर्स लड़कियों के सुविधाएं उपलब्ध करवाते हैं. लड़कियों के लिए स्टडी टूर, एक्सपोज़र विजिट आयोजित की जाती है. इस दौरान लड़कियों एक दूसरे से कई बातें शेयर करती हैं. इसके साथ ही कानूनी सहायता और स्वयं सहायता समूह बनाए जाते हैं ताकि वे अपना व्यवसाय शुरू कर सकें, जो लड़कियां औपचारिक काम करना चाहती हैं ग्राफिक डिजाइनिंग, डिजिटल मार्केटिंग और कोडिंग कोर्स की पढ़ाई अन्य संगठनों को भेजी जाती हैं.
इसके अलावा, आईडीएफ को उन बच्चों के लिए प्रायोजक मिलते हैं जो नर्सिंग, फैशन डिजाइन आदि में पढ़ाई करना चाहते हैं. आईडीएफ यौनकर्मियों और तस्करी से बचे लोगों के बच्चों के लिए स्कूल के बाद के कार्यक्रम भी चलाता है और उन्हें स्कूलों में नामांकित करता है, ताकि उन्हें समाज में वापस जगह मिले और लोग उन्हें अपना सकें.
कोविड के दौरान बेचे जा रहे थे बच्चों के अंग
पल्लबी ने बताया कि लड़कियों को रेस्क्यू करने में उन्हें लोकल पुलिस की मदद लेनी पड़ती है. ऐसे में कई जगह ऐसी हैं जहां लोग मानते ही नहीं हैं कि उनके क्षेत्र में मानव तस्करी हो रही है, ऐसे में एफआईआर करने में भी दिक्कत होती है और कई बार लड़कियों को रेस्क्यू करने में भी देरी हो जाती है. पल्लबी ने बताया कि 2020 में वे एक अस्पताल में थीं. उन्हें जानकारी मिली कि बच्चे COVID-19 पॉजिटिव हैं और कई की मौत भी हो चुकी है, जिसके बाद उनके अंगों को बेचा जा रहा है. पल्लबी ने इस बारे में पता लगाया तो देखा कि अंग तस्करी रैकेट चल रहा था.
ह्यूमन ट्रैफिकिंग में काम आ रहा सोशल मीडिया
पल्लबी ने कहा कि सभी सोशल मीडिया से जुड़े हुए हैं, ट्रैफिकिंग बढ़ गई है. फेसबुक और इंस्टाग्राम के जरिये निर्दोष लड़कों और लड़कियों को फंसाने का चलन बन गया है. लड़कियों को लालच देकर सोशल मीडिया पर फंसाते हैं. सैटेलाइट नेटवर्क के कारण स्थानों का पता लगाना असंभव हो जाता है. एक कॉल के बाद सिम कार्ड टूट जाते हैं और कोई सबूत नहीं बचता. लड़कियों को फंसाने के बाद लोग प्रोफाइल डिलीट कर देते हैं, जिससे आईपी एड्रेस का पता नहीं चल पाता.
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