नहीं रुकेगा DMK का NEET विरोधी अभियान, SC ने याचिका खारिज करते हुए कहा- इतने मासूम नहीं छात्र!

तमिलनाडु की सत्तारूढ़ पार्टी DMK मेडिकल कॉलेज में दाखिले को लेकर नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (NEET) परीक्षा का विरोध कर रही है और इसके आयोजन के खिलाफ हस्ताक्षर अभियान चला रही है. पार्टी ने 50 दिनों में 50 लाख हस्ताक्षर का लक्ष्य रखा है.

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सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु में DMK के NEET विरोधी अभियान के खिलाफ याचिका खारिज की (फाइल फोटो) सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु में DMK के NEET विरोधी अभियान के खिलाफ याचिका खारिज की (फाइल फोटो)

अनीषा माथुर

  • चेन्नई,
  • 03 जनवरी 2024,
  • अपडेटेड 2:37 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु में सत्तारूढ़ पार्टी पार्टी देसिया मक्कल शक्ति काची (DMK) द्वारा चलाए जा रहे "NEET परीक्षा के विरोध और आयोजन के खिलाफ हस्ताक्षर अभियान" के खिलाफ याचिका खारिज कर दी है. SC का कहना है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष जो चाहे कह रहे हैं. यह अदालत के लिए हस्तक्षेप करने का उचित मुद्दा नहीं है. आजकल छात्र समझदार और जागरूक हैं. केंद्रीय योजना वाली राष्ट्रीय स्तर की परीक्षा के खिलाफ ऐसे अभियानों का उन पर कोई असर नहीं पड़ेगा. जिन्हें प्रचार करना है उन्हें प्रचार करने दीजिए.

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दरअसल, तमिलनाडु की सत्तारूढ़ पार्टी DMK मेडिकल कॉलेज में दाखिले को लेकर नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (NEET) परीक्षा का विरोध कर रही है और इसके आयोजन के खिलाफ हस्ताक्षर अभियान चला रही है. पार्टी ने 50 दिनों में 50 लाख हस्ताक्षर का लक्ष्य रखा है. डीएमके ने 2021 के विधानसभा चुनावों के दौरान तमिलनाडु के लोगों से वादा किया था कि वे नीट को राज्य से खत्म कर देंगे.

चेन्नई के वकील एमएल रवि ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. याचिका में कहा गया था कि सत्ता में होने का फायदा उठाते हुए स्कूल कैंपस के अंदर राजनीतिक गतिविधि की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए और वो भी नीट के विरोध इस तरह हस्ताक्षर अभियान पर रोक लगनी चाहिए.

जनहित याचिका में आरोप लगाया गया कि अभियान के दौरान स्कूली छात्रों को नीट परीक्षा के खिलाफ भड़काया जा रहा है, उनसे हस्ताक्षर लिए जा रहे हैं और ये सब छात्रों के अभिभावकों की अनुमति के बिना हो रहा है. साथ ही दावा किया गया कि संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत कोई भी नागरिक या राजनीतिक दल विरोध कर सकता है और उसे अभिव्यक्ति की आजादी है लेकिन ऐसा अधिकार स्कूलों में और उन छात्रों के साथ नहीं दिया जा सकता है, जिनके पास मतदान का भी अधिकार नहीं है.याचिका में दावा किया गया कि इस अभियान की वजह से स्कूल कैंपस में उन छात्रों को परेशानी हो सकती है, जो नीट एग्जाम देना चाहते हैं.

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इस मामले की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट के जज सूर्यकांत और जज केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने कहा कि हमने याचिकाकर्ता को काफी देर तक सुना है. महारी सुविचारित राय यही है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत क्षेत्राधिकार लागू करने के लिए उपयुक्त मामला नहीं है. इसलिए हम इस याचिका पर विचार करने से इनकार करते हैं. बेंच ने साथ ही कहा कि ये सौभाग्य कि बात है कि हमारे पास एक बहुत ही जागरूक और समझदार पीढ़ी है, हमारे बच्चे इतने मासूम नहीं हैं, वे हमारी पीढ़ी से बहुत आगे हैं, वे इस अभियान का मकसद या एजेंडा अच्छे से समझते हैं.

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