Medical colleges MBBS Admission: देश भर के कम से कम नौ डीम्ड विश्वविद्यालयों, तमिलनाडु और पुडुचेरी में आठ और झारखंड में एक कॉलेज ने एनआरआई कोटा में आने वाली अपनी एमबीबीएस सीटों को सामान्य श्रेणी की सीटों में बदल दिया है. वहीं कुछ अन्य ने कुल सीटों की संख्या 15% से घटाकर 6% कर दी है. इसका मतलब है कि पूरे भारत के छात्र लगभग आधी कीमत पर इन सीटों का विकल्प चुन सकते हैं.
बता दें कि देश भर के डीम्ड विश्वविद्यालयों में एमबीबीएस पाठ्यक्रमों में प्रवेश केंद्र सरकार के संस्थानों और राज्य मेडिकल कॉलेजों की अखिल भारतीय कोटा सीटों के साथ-साथ नई दिल्ली में स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय से जुड़ी चिकित्सा परामर्श समिति द्वारा किया जाता है. वहीं डीम्ड विश्वविद्यालयों में सामान्य श्रेणी में एमबीबीएस सीटों की लागत 18 लाख से 26 लाख प्रति वर्ष के बीच है, जबकि एनआरआई सीटों में लगभग 50,000 अमेरिकी डॉलर (41 लाख) प्रति वर्ष खर्च है.
साल 2023 में डीम्ड विश्वविद्यालयों में कुल एमबीबीएस सीटें 526 से बढ़कर 9,887 हो गई हैं, फिर भी इस साल सीट मैट्रिक्स में एनआरआई सीटों की संख्या में कमी आई है. कई कॉलेजों ने एनआरआई कोटा या तो छोड़ दिया है या कम कर दिया है.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स
विशेषज्ञों का कहना है कि अधिक विश्वविद्यालय काउंसलिंग के पहले या दूसरे दौर में एनआरआई सीटों को परिवर्तित कर सकते हैं क्योंकि उनके खाली रहने की संभावना है. इस साल, केंद्र ने घोषणा की कि इन संस्थानों में 100% सीटों के लिए काउंसलिंग एमसीसी द्वारा की जाएगी और ओपन दौर के दौरान मौके पर प्रवेश के लिए कॉलेजों को कोई सीट वापस नहीं की जाएगी.
छात्रों की काउंसिलिंग करने वाले मनिकावेल अरुमुगम ने ToI से कहा कि कुछ कॉलेजों ने पिछले साल यह प्रथा शुरू की थी. इस साल नियमों में बदलाव ने कई और लोगों को मजबूर किया. अब कॉलेजों को इन सीटों को मैनेजमेंट कोटा में बदलना पड़ सकता है, साथ ही उन्हें फीस भी कम करनी पड़ सकती है या उनके पास कोई लेने वाला नहीं होगा.
इन कॉलेजों में हुआ कोटा सीटों में बदलाव
चेन्नई स्थित डीम्ड विश्वविद्यालय जैसे सविथा मेडिकल कॉलेज और अस्पताल, एसआरएम मेडिकल कॉलेज और अस्पताल और चेट्टीनाड मेडिकल कॉलेज और अनुसंधान संस्थान; पुडुचेरी में श्री लक्ष्मी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज और झारखंड में मणिपाल टाटा मेडिकल कॉलेज ने घोषणा की है कि वे स्नातक चिकित्सा पाठ्यक्रम के लिए एनआरआई सीटों की पेशकश नहीं करेंगे. वहीं वेल्स मेडिकल कॉलेज जैसे कुछ अन्य कॉलेजों ने एनआरआई सीटों की संख्या घटाकर सिर्फ 10 कर दी है.
अभिभावकों का तर्क
कॉलेजों को NRI श्रेणी के तहत छात्रों के लिए अपनी 15% तक सीटें आरक्षित करने की अनुमति है. आईटी प्रोफेशनल समीनाथन आर का भतीजा इस साल मेडिकल कॉलेज में प्रवेश का इंतजार कर रहा है. ToI को दिए बयान में उन्होंने कहा कि पिछले कुछ बरसों में हमने देखा है कि कई कॉलेजों में लगभग सभी सीटें कम से कम दो राउंड की काउंसलिंग और मॉप-अप राउंड के लिए खाली रहती हैं. बाद में यही सीटें सामान्य श्रेणी की सीटों में तब्दील हो जाती हैं.
उन्होंने कहा कि फिर भी मॉप-अप राउंड के बाद कई सीटें नहीं भरी हैं. फिर इन सीटों को प्रवेश की समय सीमा से कुछ घंटे पहले एक ओपन राउंड के लिए कॉलेजों को वापस कर दिया जाता है. कॉलेज उन्हें कुछ ही घंटों में भरने का मैनेजमेंट करते हैं. उन्होंने कहा कि यह अनुचित है क्योंकि जब कॉलेजों द्वारा प्रवेश दिया जाता है तो सीटें सबसे अधिक बोली लगाने वाले को दे दी जाती हैं. एक तरह से यह NEET के उद्देश्य को विफल कर देता है. अभिभावकों का कहना है कि वे अधिकांश निजी और डीम्ड विश्वविद्यालयों में वार्षिक शुल्क में कटौती की भी उम्मीद कर रहे हैं.
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