बिहार: यहां बस 'ख्वाब' है बेस्ट स्कूल! सोचिए- इस झोपड़ी में कैसे पढ़ते होंगे 360 बच्चे?

बिहार के मुजफ्फरपुर के इस भवनहीन विद्यालय का ये हाल है कि यहां बच्चों के बैठने तक की सुविधा नहीं है. यही नहीं, फूस से बने इन दो कमरों में चल रहे इस स्कूल में सभी बच्चे एक साथ खड़े भी नहीं हो सकते हैं. बिहार के इस बदहाल स्कूल के बारे में जानिए.

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ये है वो भवन हीन स्कूल ये है वो भवन हीन स्कूल

मणि भूषण शर्मा

  • मुुजफ्फरपुर ,
  • 26 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 11:54 AM IST

बिहार में शिक्षा व्यवस्था में सुधार की पोल खोलती यह तस्वीर  कलम के जादूगर रामवृक्ष बेनीपुरी के एतिहासिक गांव बेनीपुर के स्कूल की है. इस स्कूल में  360 बच्चे नामांकित है लेकिन वर्षों से न भवन है और न शौचालय. यहां पढ़ने वाले बच्चों के लिए बेस्ट स्कूल जैसा शब्द तक ख्वाब बन चुका है. घास फूस, बांस और टीनशेड के इस स्कूल की बदहाली आख‍िर क्यों नहीं दूर हो रही, आइए जानते हैं. 
इस स्कूल में पढ़ने वाले छात्र और छात्राओं के साथ साथ यहां पढ़ाने वाले श‍िक्षक-श‍िक्ष‍िकाएं भी समस्या से जूझ रहे हैं. महिला शिक्षकों की परेशानी का ठिकाना ही नहीं है. 

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स्टील के शेड और फूस वाले स्कूल में करीब 400 बच्चों का पठन-पाठन होता है जिसमें 6 शिक्षक और शिक्षिकाएं हैं. बारिश के दिनों में स्कूल के छात्र-छात्राओं के साथ शिक्षक-शिक्षिकाओं को भी काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. अधिक नामांकित बच्चे होने की वजह से आधे से अधिक बच्चों का पठन-पाठन पेड़ के नीचे होता है. 

यहां भवनहीन विद्यालय होने की वजह से बैठने तक की सुविधा नहीं है. फूस से बने दो कमरे के अंदर एक साथ सभी बच्चे खड़े भी नहीं हो सकते हैं. डेस्क और बेंच ना होने की वजह से 1 से 8 तक के स्कूली छात्र और छात्राएं बैठने के लिए अपने साथ घर से खाली बोरा लेकर आते हैं. वो उसे बिछाकर ही पढ़ते हैं. 

टीचर्स भी हैं परेशान
स्कूल की बिल्ड‍िंंगके नाम पर  झोपड़ीनुमा कमरे में 314 बच्चों की पढ़ाने का दावा किया जाता है जिसमें 6 शिक्षक शिक्षिकाएं भी हैं नियुक्त हैं. लेकिन तस्वीर बयां करती है कि बच्चे केवल इसलिए आते हैं उनका नामांकन पंजी से नाम न कट जाए. कई बार अधिकारियों ने फरमान जारी कर विद्यालय को निकट के गांव में मर्ज करने का आदेश दिया लेकिन ग्रामीणों के विरोध और आग्रह के बाद विद्यालय को मर्ज नहीं किया गया है. 

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स्कूल की महिला शिक्षिका शिल्पी कुमारी का कहना है कि हमें यहां काफी परेशानी होती है. यहां पर स्कूली छात्राएं हैं और तीन महिला शिक्षिका भी है. कुल 314 बच्चे नामांकित है शौचालय न होने की वजह से हम लोगों के साथ-साथ स्कूली छात्राओं को भी परेशानी होती है. बारिश के दिनों में स्कूली बच्चों के ऊपर बारिश की बूंदे पड़ती रहती हैं. यहां का स्कूल स्थानीय ग्रामीणों के सहयोग से बना है, इसकी मरम्मत भी वही देखते हैं. सरकारी निर्देश के बाद स्कूल में बच्चों के आने की संख्या बढ़ गई है. 

स्कूल में बच्चियां नहीं आना चाहती है...
स्कूल के प्रधानाध्यापक सुनील कुमार का कहना है कि यह ऐतिहासिक गांव है. यह कलम के जादूगर रामवृक्ष बेनीपुरी का गांव है. यहां एक नहीं कई भवनहीन विद्यालय हैं, जहां बच्चों के पठन-पाठन में काफी परेशानी होती है. जितने बच्चे स्कूल में नामांकित है एक साथ स्कूल के अंदर खड़े भी नहीं हो सकते हैं. यहां पर शौचालय की व्यवस्था नहीं है, जिसकी वजह से स्कूल में बच्चियां नहीं आना चाहती है. वहीं स्कूल की महिला शिक्षकों को भी काफी परेशानी होती है. हम लोगों ने कई बार विभाग को इस मामले की जानकारी दी लेकिन विभाग के द्वारा आज तक ऐतिहासिक गांव के स्कूल पर ध्यान नहीं दिया गया.

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