कभी सिपाही, कभी कर्नल तो कभी युद्धबंदी, शानदार रहा सेना में किरोड़ी सिंह बैंसला का सफर

कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला ( colonel Kirori singh bainsla ) का गुरुवार को निधन हो गया है. किरोड़ी बैंसला लंबे समय से बीमार चल रहे थे. बैंसला ने जयपुर के एक अस्पताल में अंतिम सांस ली. तबीयत बिगड़ने पर उन्हें मणिपाल अस्पताल ले जाया गया था, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.

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किरोड़ी सिंह बैंसला (फइाल फोटो) किरोड़ी सिंह बैंसला (फइाल फोटो)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 31 मार्च 2022,
  • अपडेटेड 10:23 AM IST
  • कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला (रि.) का निधन
  • गुर्जर आरक्षण को लेकर बुलंद किया था आंदोलन
  • चार दिन पहले सांस में समस्या को लेकर हुए थे भर्ती

राजस्थान में गुर्जर आरक्षण आंदोलन का बड़ा चेहरा रहे कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला (रिटायर्ड) का लंबी बीमारी के बाद गुरुवार को निधन हो गया है. वह ऐसी शख्सियत थे कि उनके एक इशारे पर पूरा राजस्थान थम जाता था. लोग हफ्तों रेलवे ट्रेक पर ही बैठे रहते थे. उन्होंने शिक्षक के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की थी लेकिन पिता में फौज थे इसलिए बाद उनका रुझान फौज की तरफ हो गया और वह भी सेना की राजपूताना राइफल्स में बतौर सिपाही भर्ती हो गए. उन्होंने 1962 के भारत-चीन और 1965 के भारत-पाकिस्तान का युद्ध लड़ा. किरोड़ी सिंह बैंसला पाकिस्तान में युद्धबंदी भी रहे. अपनी जाबांजी के कारण ही वह सिपाही से कर्नल बन गए.

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रॉक ऑफ जिब्राल्टर, इंडियन रैम्बो कहलाए

करौली जिले के मुंडिया गांव में एक गुर्जर परिवार में बैंसला का जन्म हुआ था. सेना में उनके साथी उन्हें रॉक ऑफ जिब्राल्टर और इंडियन रैम्बो कहते थे. उनकी एक बेटी अखिल भारतीय सेवा में अधिकारी है, वहीं दो बेटे सेना में हैं, एक बेटा निजी कंपनी में कार्यरत है. 

गुर्जर के आरक्षण के लिए लड़ते रहे

किरोड़ी सिंह बैंसला ने रिटाटर होने के बाद राजस्थान में गुर्जर समाज के अधिकारों के लिए काम करना शुरू किया. किरोड़ी सिंह ने गुर्जरों के आरक्षण को लेकर लगातार आंदोलन किए. वह कहते थे कि राजस्थान के ही मीणा समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया, इससे उन्हें सरकारी नौकरी में खासा प्रतिनिधित्व मिला. लेकिन गुर्जरों के साथ ऐसा नहीं हुआ. गुर्जरों को उनका हक मिलना चाहिए. बैंसला राजस्थान के गुर्जरों के लिए अलग से अन्य पिछड़ा वर्ग  के तहत गुर्जरों को सरकारी नौकरियों में 5 फीसदी आरक्षण दिलाने में कामयाब रहे. पहले राजस्थान के गुर्जर ओबीसी में थे, लेकिन बैंसला के दबाव में सरकार को एमबीसी में गुर्जरों को शामिल करना पड़ा. 

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27 मार्च को सांस लेने में हुई थी दिक्कत

कर्नल (रिटायर्ड) किरोड़ी सिंह बैंसला 27 मार्च को जयपुर के एक निजी अस्पताल में सांस लेने की दिक्कत के चलते भर्ती किया गया था. 81 साल से ज्यादा उम्र वाले कर्नल बैंसला पहले दो बार कोविड-19 पॉजिटिव हो चुके हैं. पिछले साल नवंबर में बैसला फेफड़ों में संक्रमण के चलते जयपुर के सवाई मान सिंह अस्पताल में भर्ती हुए थे. यह उनकी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ उनके सरकारी आवास पर मीटिंग के बाद हुआ था. 

पहला चुनाव 317 वोट से हार गए थे

सेवानिवृत्त होने के बाद बैंसला ने राजनीति में प्रवेश किया. बीजेपी ने टोंक- सवाईमाधोपुर लोकसभा सीट से किरोड़ी सिंह बैंसला को टिकट दिया, लेकिन कांग्रेस के प्रत्याशी नमोनारायण मीणा से 317 वोटों से चुनाव हार गए थे. इसके बाद कर्नल बैंसला ने कुछ दिनों बाद ही भाजपा छोड़ दी थी, लेकिन लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान किरोड़ी सिंह बैंसला बीजेपी में फिर शामिल हो हुए. तब बैंसला ने कहा था कि बीजेपी में शामिल होने से पहले उनका स्थानीय स्तर के किसी नेता या फिर पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से कोई बातचीत नहीं हुई थी, सीधे केंद्रीय नेताओं से बातचीत कर पार्टी में शामिल हुआ हूं.

वसुंधरा राजे को गंवानी पड़ी थी सरकार

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2008 में गुर्जर आरक्षण के कारण तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को काफी चुनौतियां झेलनी पड़ी थीं. आंदोलन इतना प्रभावी हो गया था कि बीजेपी को  विधानसभा चुनाव में हार का सामन करना पड़ा था. इसके बाद गहलोत सरकार आई. उसने गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति की मांगों का स्वीकर कर लिया.

 

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