सोशल मीडिया पर इन दिनों एक चीज की काफी चर्चा हो रही है और वो है आप मिडिल क्लास हैं या अपर मिडिल क्लास या फिर लॉअर मिडिल क्लास. शायद आप भी खुद को इन तीन क्लास में रखते होंगे, लेकिन कभी आपने सोचा है कि आखिर ये कैसे डिसाइड होता है कि कोई मिडिल क्लास है या नहीं. कहा जा रहा है कि बढ़ती महंगाई की वजह से लॉअर मिडिल और अपर मिडिल क्लास के पैरामीटर बदल चुके हैं और अब ज्यादा कमाई के बाद भी लोग लॉअर मिडिल क्लास ही हैं.
ऐसे में आज हम आपको बताते हैं कि आखिर सोशल मीडिया पर इस बात की चर्चा किस वजह से शुरू हो गई है और साथ ही आपको बताते हैं कि आप कैसे ये पता कर सकते हैं कि आप मिडिल क्लास, अपर मिडिल क्लास या किसी और कैटेगरी में आते हैं...
क्यों चर्चा में मिडिल क्लास?
दरअसल, सोशल मीडिया पर यूरोप में रह रहे भारतीय निवेशक और ट्रेडर सौरव दत्ता का एक पोस्ट वायरल हो रहा है, जिसमें उन्होंने गरीब, लॉअर मिडिल क्लास और मिडिल क्लास का इनकम क्राइटेरिया बताया है. इसे लेकर अब लोग अपनी राय दे रहे हैं और कुछ लोग इसे सही मान रहे हैं तो कई लोग इसका विरोध भी कर रहे हैं. जिसके बाद से लोग जानना चाहते हैं कि आखिर कौन मिडिल क्लास की कैटेगरी में आता है?
क्या है मिडिल क्लास का क्राइटेरिया?
सौरव दत्ता के एनालिसिस के हिसाब से आज के दौर में अगर किसी व्यक्ति के पास 10 लाख रुपये लिक्विड नेट वर्थ है तो गरीब कैटेगरी में आता है. वहीं, जिस व्यक्ति के पास 50 लाख लिक्विड नेटवर्थ है तो वो लॉअर मिडिल, 1 करोड़ की वर्थ है तो मिडिल क्लास, 2 करोड़ है तो अपर मिडिल क्लास, 5 करोड़ है तो अमीर और 10 करोड़ है तो एचएनआई यानी हाई नेट वर्थ इंडिविजुअल कैटेगरी में आता है.
अब आपको बताते हैं लिक्विड नेट वर्थ क्या होती है. दरअसल, लिक्विड नेट वर्थ उस प्रॉपर्टी को बोलते हैं, जिसे आप 2 दिनों में कैश में तब्दील कर सके. जैसे अगर आपके पास सोना है तो आप इसे लिक्विड नेटवर्थ कह सकते हैं. लेकिन, अगर आपका जो प्राइमेरी घर है, वो लिक्विट नेट वर्थ में नहीं आएगा. अगर आपके पास कोई एक्स्ट्रा प्लॉट है तो उसे इसमें गिना जाएगा. इसमें शेयर्स आदि को भी इसी संपत्ति में गिना जाएगा.
कुछ और रिपोर्ट्स में है अलग परिभाषा
- वहीं, कुछ साल पहले ही इंडियन थिंक टैंक के एक सर्वे में बताया गया था कि जिन लोगों की इनकम 5-30 लाख रुपये सलाना होती है, उन्हें मिडिल क्लास की कैटेगरी में माना जाता है. साथ ही रिपोर्ट में कहा गया था कि इस हिसाब से भारत में मिडिल क्लास की संख्या 2020-21 में करीब 31 फीसदी हो गई जबकि 2004-05 में यह हिस्सा सिर्फ 14 फीसदी था.
- एक रिपोर्ट में वर्ल्ड बैंक के हवाले से कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति हर साल 1,036 डॉलर और 12,615 डॉलर के बीच कमाई करता है तो उसे मिडिल क्लास माना जाएगा. भारत के हिसाब से जो गणित लगाया गया था, उसके हिसाब से 6 लाख से 18 लाख रुपये कमाने वाले लोग मिडिल क्लास की कैटेगरी में आते हैं, जिसमें लॉअर और अपर मिडिल क्लास बांट सकते हैं.
- मास्टरकार्ड की रिपोर्ट के हिसाब से जो 151651 रुपये हर साल कमाते हैं, वो मिडिल क्लास में आते हैं.
- नेशनल काउंसिल फॉर अप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च के अनुसार, जो व्यक्ति 2 से 10 लाख रुपये कमा रहा है, वो मिडिल क्लास की कैटेगरी में आता है.
- PEW रिसर्च के हिसाब एक मिडिल क्लास व्यक्ति हर रोज 10 से 20 डॉलर रोज कमाता है यानी करीब 800 से 1700 रुपये.
क्या है सही तरीका?
हालांकि, कई रिपोर्ट और एक्सपर्ट का मानना है कि मिडिल क्लास, अपर मिडिल मापने का कोई पैमाना नहीं है. इसे इनकम के हिसाब से इसलिए नहीं मापा जा सकता है, क्योंकि कई सीनियर सिटीजन लोग ऐसे हैं, जो पैसे कमाते नहीं हैं, लेकिन वो अच्छा जीवन यापन कर रहे हैं तो इनकम से इसका पता नहीं किया जा सकता.
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