जब पहली बार दिखा था शनि का ये अनोखा चंद्रमा, 12 साल बाद खोजने वाले को मिला श्रेय

शनि के खूबसूरत छल्लों के बीच एक अद्भूत चंद्रमा है - एपिमेथियस. यह एक ऐसा चंद्रमा है जो न केवल आकार और संरचना के मामले में अनोखा है, बल्कि इसकी कक्षा भी विज्ञान जगत को आश्चर्यचकित करती है. आज के दिन ही शनि के इस चंद्रमा की खोज हुई थी.

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शनि ग्रह के चंद्रमा की खोज (Getty) शनि ग्रह के चंद्रमा की खोज (Getty)

सिद्धार्थ भदौरिया

  • नई दिल्ली,
  • 18 दिसंबर 2024,
  • अपडेटेड 6:52 AM IST

18 दिसंबर 1966 को एस्ट्रोनॉमर रिचर्ड वॉकर ने शनि के वलयों के बीच एक चंद्रमा को देखा. हालांकि, इससे तीन दिन पहले यानी 15 दिसंबर को ओडुइन डॉल्फस नाम के एक वैज्ञानिक  भी शनि के पास एक चंद्रमा देख चुके थे और इसे 'जानस' नाम दिया था. इसके तीन दिन बाद वॉकर ने जो चंद्रमा देखा, उसे जानस से अलग बताया. 

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उस वक्त के वैज्ञानिकों ने दोनों को एक माना, क्योंकि दोनों एक ही ऑरबिट में थे. उस समय वैज्ञानिकों को यह विश्वास था कि यह केवल एक ही चंद्रमा है, जिसे 'जानस' कहा गया बाद में वॉकर की खोज अलग पाई गई. यानी वो 'जानस' नहीं बल्कि शनि का दूसरा उपग्रह 'एपिमेथियस' था. 

12 साल बाद में वॉकर को मिला एपिमेथियस की खोज का श्रेय
बारह साल बाद, 1978 में स्टीफन एम. लार्सन और जॉन डब्ल्यू. फाउंटेन ने पाया कि 1966 की ये अलग-अलग रिपोर्ट्स वास्तव में दो अलग चंद्रमाओं, जानस और एपिमेथियस की मौजूदगी को दर्शाती थीं. 1980 में वॉयेजर-1 अंतरिक्ष यान ने इस बात की पुष्टि की और यह तय हुआ कि दोनों चंद्रमा एक खास कक्षीय समन्वय में एक-दूसरे के करीब रहते हैं.बाद में  रिचर्ड वॉकर, लार्स और फाउंटेन को एपिमेथियस की खोज का श्रेय दिया गया. 

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एपिमेथियस की कक्षा और सह-ऑर्बिटल स्थिति
एपिमेथियस और जानस दोनों चंद्रमा शनि से लगभग 94,000 मील (151,000 किलोमीटर) की दूरी पर कक्षा में चक्कर लगाते हैं. इनका कक्षीय समय 17 घंटे है। दिलचस्प बात यह है कि ये दोनों चंद्रमा एक-दूसरे के बहुत करीब होते हुए भी "को-ऑर्बिटल" या 1:1 रेजोनेंस में हैं, इनकी कक्षाओं में लगभग 50 किलोमीटर का अंतर होता है, जिसके कारण हर 4 साल में तेज़ी से घूमने वाला चंद्रमा धीमे चलने वाले चंद्रमा के करीब पहुंचता है. इस दौरान गुरुत्वाकर्षण बल के कारण दोनों अपनी-अपनी कक्षाएं बदल लेते हैं. ये आपसी दूरी में 15,000 किलोमीटर (लगभग 6,200 मील) तक नज़दीक आ जाते हैं. यह अद्भुत घटना सौरमंडल में अन्य कहीं नहीं देखी गई.

संरचना और विशेषताएं
एपिमेथियस का आकार "आलू" जैसा है, जिसका औसत व्यास 58 किलोमीटर है. इस चंद्रमा की सतह पर कई बड़े-बड़े गड्ढे हैं, जैसे कि "हिलैइरा" और "पोलक्स," जिनका व्यास 30 किलोमीटर से अधिक है. एपिमेथियस के दक्षिणी ध्रुव पर एक बड़े गड्ढे के कारण सतह पर स्पष्ट चपटापन देखा जाता है.

एक की उपग्रह के टूटने से बने हैं शनि के दोनों चंद्रमा
वैज्ञानिक मानते हैं कि एपिमेथियस और जानस शायद एक ही चंद्रमा के टूटने से बने होंगे. यह घटना शनि प्रणाली के शुरुआती दिनों में हुई होगी. इन दोनों की सतह प्राचीन और धूल-भरी है. एपिमेथियस की सतह पर मौजूद दरारों और खांचों से ऐसा लगता है कि इस पर बाहरी पिंडों की हल्की टक्कर हुई होगी.

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यह चंद्रमा मुख्य रूप से पानी की बर्फ से बना माना जाता है. इसका घनत्व 0.7 से भी कम है, जो दर्शाता है कि यह "रबल पाइल" या ढीले-ढाले टुकड़ों का समूह है, जिन्हें गुरुत्वाकर्षण ने साथ बांध रखा है. इसकी सतह पर अंधेरे और चमकीले क्षेत्र भी देखे गए हैं. चमकीले क्षेत्र संभवतः पानी की बर्फ वाले हैं, जबकि अंधेरे भाग ढलानों से नीचे गिरती धूल के कारण बने हैं.

एपिमेथियस की कक्षा में धूल का छल्ला
जानस और एपिमेथियस के बीच के क्षेत्र में एक हल्का धूल भरा छल्ला भी पाया गया है, जिसे "जानस/एपिमेथियस रिंग" कहा जाता है. माना जाता है कि यह छल्ला उल्कापिंडों की टक्कर से इन चंद्रमाओं की सतह से निकले कणों से बना है.

नामकरण से जुड़ी पौराणिक गाथा
शनि के चंद्रमाओं के नाम ग्रीक पौराणिक कथाओं के पात्रों के आधार पर रखे गए हैं. एपिमेथियस का नाम ग्रीक देवता "एपिमेथियस" के नाम पर रखा गया है, जो "हिंडसाइट" या पीछे देखने का प्रतीक हैं. वे प्रोमेथियस (फोरसाइट या दूरदर्शिता) के भाई थे. एपिमेथियस पर मौजूद गड्ढों को भी ग्रीक पौराणिक कथाओं के पात्रों, जैसे "हिलैइरा" और "पोलक्स," के नाम दिए गए हैं.

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सौर मंडल का महत्वपूर्ण हिस्सा है शनि का ये चंद्रमा
एपिमेथियस, शनि के अन्य चंद्रमाओं की तरह, एक अद्वितीय और आकर्षक खगोलीय पिंड है. इसकी को-ऑर्बिटल स्थिति, अनोखी संरचना और प्राचीन सतह इसे वैज्ञानिक शोध और अंतरिक्ष मिशनों के लिए विशेष बनाती है. कैसिनी जैसे अंतरिक्ष यानों ने इसकी नज़दीकी तस्वीरें लेकर हमें इस छोटे लेकिन रोमांचक चंद्रमा की नई जानकारियां दी हैं. यह चंद्रमा हमें सौरमंडल के अतीत और शनि प्रणाली के रहस्यों को समझने में मदद करता है.

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प्रमुख घटनाएं 

18 दिसंबर 1271 में मंगोल शासक कुबलई खान ने अपने साम्राज्य का नाम युआन रखा था. इसी के साथ मंगोलिया और चीन में युआन वंश की शुरुआत हुई. 

18 दिसंबर 1642 में समुद्री खोजी नाविक तस्मान न्यूज़ीलैंड की धरती पर उतरे थे. न्यूज़ीलैंड के आस-पास के समुद्र को तस्मानिया समुद्र के नाम से जाना जाता है. 

18 दिसंबर  1956 में जापान ने संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता ग्रहण की थी.

18 दिसंबर  1787 - अमेरिकी संविधान को स्वीकार करने वाला न्यू जर्सी तीसरा राज्य बना.
 

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