इस्लाम में ब्याज हराम है... फिर क्या पाकिस्तान में बिना ब्याज लोन मिलता है?

क्या पाकिस्तान के बैंकों में बिना इंटरेस्ट लोन दिया जाता है? इस सवाल की सच्चाई थोड़ी जटिल है. इसका जवाब हां भी है और नहीं भी. दरअसल, पूरा सच समझने के लिए वहां के बैंकिंग सिस्टम को समझना जरूरी है.

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पाकिस्तान में बिना ब्याज (शरिया-अनुपालन) फाइनेंस की व्यवस्था मौजूद है (सांकेतिक तस्वीर-Pexel) पाकिस्तान में बिना ब्याज (शरिया-अनुपालन) फाइनेंस की व्यवस्था मौजूद है (सांकेतिक तस्वीर-Pexel)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 29 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 3:52 PM IST

इस्लाम में ब्याज को सख्ती से हराम माना गया है. यही वजह है कि अक्सर यह सवाल उठता है कि खुद को इस्लामिक रिपब्लिक कहने वाला पाकिस्तान क्या वाकई अपने नागरिकों को बिना ब्याज के लोन देता है. इस सवाल का जवाब के लिए इसकी पूरी तस्वीर समझना जरूरी है.

क्या पाकिस्तान में सच में बिना ब्याज लोन मिलते हैं?

पाकिस्तान में बिना ब्याज यानी शरिया-अनुपालन फाइनेंस की व्यवस्था मौजूद है, लेकिन यह हर बैंक और हर ग्राहक के लिए एक-सी नहीं है. फिलहाल देश में दो सिस्टम साथ-साथ चल रहे हैं. पहला, पारंपरिक ब्याज-आधारित बैंकिंग और दूसरा, इस्लामिक बैंकिंग, जिसमें ब्याज की जगह शरिया के सिद्धांतों पर आधारित वित्तीय मॉडल अपनाए जाते हैं.

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इस्लामिक बैंकिंग कितनी बड़ी हो चुकी है?

स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान के आंकड़ों के मुताबिक, सितंबर 2025 तक पाकिस्तान में इस्लामिक बैंकिंग के कुल एसेट्स 12.7 ट्रिलियन पाकिस्तानी रुपये तक पहुंच चुके हैं, जो पूरे बैंकिंग सेक्टर का 21.6 प्रतिशत है. डिपॉजिट्स का हिस्सा 26.5 प्रतिशत हो गया है. सालाना आधार पर इस्लामिक बैंकिंग के एसेट्स में 28.3 प्रतिशत और डिपॉजिट्स में 29.7 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. 

यह भी पढ़ें: कर्ज का ऐसा जाल…1.7 करोड़ लिए, अब 146 करोड़ चुकाने की नौबत, शख्स का घर तक बिक गया

बिना ब्याज फाइनेंस आखिर काम कैसे करता है?

इस्लामिक बैंकिंग में फिक्स्ड ब्याज लेने की परंपरा नहीं होती. यानी बैंक पहले से यह तय नहीं करता कि ग्राहक को हर हाल में तय प्रतिशत पैसा लौटाना ही होगा. इसकी जगह ऐसे मॉडल अपनाए जाते हैं, जिनका आधार साझेदारी और वास्तविक लेन-देन होता है. पाकिस्तान के मीजान बैंक के मुताबिक, ये तीन मॉडल काम करते हैं.

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मुशारका: आसान शब्दों में साझेदारी मॉडल कहा जा सकता है. इसमें बैंक और ग्राहक दोनों मिलकर किसी कारोबार या प्रोजेक्ट में पैसा लगाते हैं. अगर मुनाफा होता है, तो उसे पहले से तय हिस्से के अनुसार बांट लिया जाता है. अगर नुकसान होता है, तो दोनों अपनी हिस्सेदारी के हिसाब से उसे झेलते हैं. यानी बैंक सिर्फ मुनाफा लेने वाला नहीं होता, बल्कि जोखिम भी ग्राहक के साथ साझा करता है.

मुदारबा : एक पक्ष पैसा लगाता है और दूसरा पक्ष मेहनत और प्रबंधन करता है. आमतौर पर बैंक पूंजी देता है और ग्राहक उस पैसे से काम करता है. अगर मुनाफा होता है, तो बैंक और ग्राहक के बीच तय अनुपात में उसे बांटा जाता है. अगर नुकसान हो जाता है, तो पैसे का नुकसान बैंक उठाता है, जबकि ग्राहक की मेहनत बेकार चली जाती है. इसमें भी कोई तय ब्याज नहीं होता, बल्कि कमाई के आधार पर हिस्सा तय होता है.

इजारा : किराये जैसा मॉडल समझा जा सकता है. इसमें बैंक पहले घर या गाड़ी जैसी संपत्ति खुद खरीदता है. इसके बाद ग्राहक उस संपत्ति को किराये पर इस्तेमाल करता है और हर महीने तय किराया देता है. तय अवधि पूरी होने पर वही घर या गाड़ी ग्राहक की हो जाती है. यह तरीका खासतौर पर होम फाइनेंस और कार फाइनेंस में इस्तेमाल होता है, जहां भुगतान ब्याज के रूप में नहीं, बल्कि किराये के रूप में किया जाता है.

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कौन-कौन से बैंक यह सुविधा दे रहे हैं?

पाकिस्तान में मीजान बैंक, बैंक इस्लामी और कई बड़े पारंपरिक बैंकों की इस्लामिक विंडो के जरिए घर खरीदने के लिए होम फाइनेंस, गाड़ी के लिए कार फाइनेंस और कारोबार के लिए बिजनेस फाइनेंस सब कुछ बिना ब्याज के इस मॉडल पर उपलब्ध कराया जा रहा है. हाल ही में मोबिलिंक माइक्रोफाइनेंस बैंक ने भी इस्लामिक ऑपरेशंस शुरू किए हैं, जिससे छोटे कारोबारियों और कमजोर वर्गों तक यह सुविधा पहुंची है.

गरीबों के लिए पूरी तरह बिना ब्याज कर्ज

जो लोग बैंकिंग सिस्टम तक नहीं पहुंच पाते, उनके लिए कर्ज-ए-हसना, यानी पूरी तरह बिना ब्याज लोन की व्यवस्था भी है. अखुवत फाउंडेशन, पाकिस्तान पॉवर्टी एलिविएशन फंड और अलखिदमत फाउंडेशन जैसी संस्थाएं यह सुविधा देती हैं. इन संस्थाओं से मिलने वाले लोन में सिर्फ मूलधन लौटाना होता है, कोई ब्याज नहीं. खासतौर पर पाकिस्तान पॉवर्टी एलिविएशन फंड की योजना सरकारी फंड से चलती है और लाखों गरीब परिवारों को इसका लाभ मिल चुका है.

पाकिस्तान की डॉन न्यूज के रिपोर्ट के मुताबिक  साल 2022 में फेडरल शरीयत कोर्ट ने ब्याज को हराम घोषित करते हुए पाकिस्तान के बैंकिंग सिस्टम को बदलने का आदेश दिया था. बाद में इसकी समयसीमा बढ़ाकर 1 जनवरी 2028 कर दी गई. स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान के मुताबिक, देशभर में इस्लामिक बैंकिंग की 6,395 शाखाएं काम कर रही हैं और डिजिटल इस्लामिक बैंकिंग को भी मंजूरी मिल चुकी है.

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