International Girl Child Day 2022: बेटी को बेटे की तरह नहीं, सिर्फ संतान समझकर पालें

आपने बहुत से लोगों को कहते सुना होगा कि मैंने अपनी बेटी को बेटे की तरह पाला. जब कोई अभ‍िभावक यह कह रहा होता है, तो उसकी मानसिकता ये बताती है, उनके दिमाग में बेटे की पर‍वरिश का मानक श्रेष्ठ है. पेरेंटिंग एक्सपर्ट मनोवैज्ञानिक डॉ विधि पिलनिया बता रही हैं कि बेटी की परवरिश में पेरेंट्स का क्या रोल होना चाहिए.

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प्रतीकात्मक फोटो प्रतीकात्मक फोटो

मानसी मिश्रा

  • नई दिल्ली ,
  • 10 अक्टूबर 2022,
  • अपडेटेड 7:06 PM IST

International Girl Child Day 2022: आज विश्व बालिका दिवस है. एक ऐसा खास दिन जब गर्ल चाइल्ड यानी बेटी के अध‍िकारों की बात वैश्व‍िक स्तर पर उठाई गई. आज के दिन हम बात कर रहे हैं अभ‍िभावक के तौर पर अपनी भूमिका के बारे में. कैसे बेटे और बेटी के जन्म से लेकर उसकी युवावस्था तक हम उसे परवरिश के दौरान अलग ट्रीटमेंट देते हैं. कई बार समाज के ताने बाने में उलझकर जान-बूझकर तो कभी अनजाने में हम उन्हें लैंगिक असमानता का अहसास करा देते हैं. यही परवरिश बेट‍ियों के व्यक्त‍ित्व से झलकती है. 

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पेरेंट‍िंग मामलों की विशेषज्ञ डॉ विध‍ि पिलनिया कहती हैं कि हम जेंडर इक्वालिटी पर हमेशा बात करते हैं लेकिन पर‍वरिश के दौरान अक्सर माता-पिता इसमें चूक जाते हैं. जब कोई कहता है कि हमने बेटी को बेटे की तरह पाला, वही व्यक्त‍ि कभी उसी गंभीर भाव से यह नहीं कहेगा कि मैंने बेटे को बेटी की तरह पाला. वजह साफ है, उनके मन में कहीं न कहीं ये भाव है कि बेटी के दायरे अलग हैं और बेटे को अलग. हम अगर बेटी को रोकटोक कम कर रहे हैं तो उसे बेटे की तरह पाल रहे हैं. आप खुद सोचिए कि किसी एक जेंडर को दूसरे जेंडर की तरह क्यों पाला जाए, जब आपके पास अपने बच्चे को अपनी संतान की तरह पालने का विकल्प मौजूद है. 

ये 10 खास बातें जो बेटी की परवर‍िश में ध्यान रखनी चाहिए 

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1. डॉ विधि कहती हैं कि पेरेंट‍िंग हमेशा जेंडर न्यूट्रल यानी लैंगिंक पहचान से अलग होनी चाहिए. अपने बच्चों की नर्चरिंग और केयरिंग एक संतान के तौर पर करनी चाहिए. 

2.  बेटियों को गुड़‍िया, चूल्हा चौके या जेंडर आधारित खि‍लौनों की बजाय दोनों बच्चों को एक जैसे ख‍िलौने से खेलने दें, बच्चों की शारीरिक बनावट के आधार पर उनकी तुलना करने से बचें, ये भी भेदभाव की श्रेणी में आता है. 

3. बेटी की परवरिश के दौरान हम उन्हें चुप रहना न सिखाएं, बल्क‍ि उन्हें ये सिखाएं कि कोई फिजिकल एसॉल्ट हो तो वो स्टीरियोटाइप से बाहर आएं और अपनी समस्या जरूर कहें. 

4. अक्सर पेरेंट्स बेट‍ियों के मामले में उन्हें जज करने की गलती करते हैं. अगर कोई टीनेज लड़की बताए कि उसे फला ने प्रपोज किया या टीचर, साथी स्टूडेंट या किसी रिश्तेदार से परेशानी है तो उन्हें बिना जज किए सुनें. 

5. बेट‍ियों की मां को बच्च‍ियों को मेंशुअल हाइजीन, ब्रेस्ट कैंसर अवेयरनेस, हेल्दी लाइफस्टाइल के बारे में बच्चों से संवेदशीलता से बात करनी चाहिए. उन्हें इस बारे में जागरूक करना चाहिए वरना बच्चों को आगे चलकर परेशानी हो सकती है. 

6. अगर कोई करीबी रिश्तेदार भी कुछ गलत व्यवहार कर दे तो मां ये कभी न बोले कि शांत रहो. इसके लिए मां के तौर पर आपको भी आत्मविश्वास लाना होगा, बेटी के साथ हरहाल में अनकंडीशनल तौर पर खड़ी हों. 

7. बेट‍ियां फाइनेंश‍ियली स्ट्रांग बनकर ही स्ट्रांग नहीं बनतीं. कई बार अच्छी पोस्ट पर काम कर रही महिलाएं भी डोमेस्ट‍िक वायलेंस का श‍िकार बनती हैं, वर्क प्लेस में एसाल्ट बर्दाश्त करती हैं, उनकी परवरिश यहां भी रोल निभाती है. 

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8. लड़की को बॉडी शेमिंग न सिखाएं, उसे ये कभी न बताएं कि लड़की हो इसलिए शेप में आना जरूरी है, रंग साफ होना जरूरी है, उनकी बॉडी कैसी है से ज्यादा जरूरी है कि वो फील कैसा करती हैं. 

9. बचपन से ही परव‍रिश के दौरान लड़कियों की पर्सनैलिटी बनती है. किसी भी तरह बेटी को हीन भावना का श‍िकार न होने दें, इससे उनकी पर्सनैलिटी में कई तरह के डिसऑर्डर आ जाते हैं जो आगे चलकर मानसिक समस्याओं को जन्म देते हैं. 

10. सामाजिक समस्याओं के तौर पर अगर देखा जाए तो महिला क्राइम ज्यादा है, इसलिए बेटे और बेट‍ियों दोनों को इस बारे में संवेदनशील बनाएं कि वो अपनी बात कहना सीखें. 

 

 

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