मम्मी, मैं लड़की के शरीर में हूं लेकिन खुद को लड़का मानता हूं... या पापा, मैं लड़के के शरीर में हूं लेकिन लड़की जैसा फील करती हूं... ऐसी बात सुनकर मम्मी-पापा का दिल एक पल को थम सा जाता है. मन में सवाल उठते हैं, समाज क्या कहेगा? रिश्तेदार क्या सोचेंगे? स्कूल, भविष्य, सब कुछ सामने घूमने लगता है. लेकिन रुकिए और सोचिए कि आपके बच्चे ने कितनी हिम्मत जुटाई होगी ये सच बताने के लिए? वो कितने डर और उलझनों से गुजरा होगा?
LGBTQ+ बच्चों के लिए स्कूल में दोस्तों के ताने, परिवार की बातें, या समाज की नजरें आसान नहीं होतीं. फिर भी अगर आपका बच्चा अपनी सच्चाई आपके साथ शेयर करता है तो ये उसका आप पर भरोसा है. अब आपकी बारी है उसे गले लगाने की. आइए, एक्सपर्ट्स से जानें कि मम्मी-पापा को क्या करना चाहिए और क्या नहीं.
क्या है जेंडर डिस्फोरिया?
मनोवैज्ञानिक डॉ. विधि एम पिलनिया बताती हैं कि जब बच्चे की लिंग पहचान (जो वो मन से फील करता है) और उसका शरीर मेल नहीं खाते, तो इसे जेंडर डिस्फोरिया कहते हैं. जैसे, कोई बच्चा शरीर से लड़का हो, लेकिन मन से लड़की फील करता हो तो इससे बच्चे को तनाव, चिंता, या उदासी हो सकती है. डॉ. पिलनिया कहती हैं कि LGBTQ+ होना कोई ट्रेंड नहीं, ये बच्चे की सच्ची पहचान है. उसे आपकी समझ और प्यार की जरूरत है.
मम्मी-पापा, ये गलतियां न करें
डांटना या मजाक उड़ाना: 'ये सब टीवी-रील्स से सीखा है!' जैसे ताने बच्चे को तोड़ सकते हैं. वो चुप हो जाएगा, लेकिन अंदर से अकेला और डरा हुआ फील करेगा.
'इलाज' की कोशिश: LGBTQ+ कोई बीमारी नहीं है. इसे 'ठीक' करने की कोशिश, जैसे कन्वर्जन थेरेपी, गलत और हानिकारक है. भारत में ये अवैध भी है.
समाज का डर: रिश्तेदारों या मोहल्ले की चिंता छोड़ दें. आपका बच्चा आपकी जिम्मेदारी है, न कि समाज का मुद्दा.
तो क्या करें?
गले लगाएं और प्यार दिखाएं: बच्चे की बात सुनते ही उसे गले लगाएं और कहें कि मैं तुम्हारे साथ हूं, तुम कुछ भी शेयर कर सकते हो. ये छोटा-सा कदम बच्चे का डर आधा कर देगा.
ध्यान से सुनें: बच्चे को बिना टोके अपनी बात कहने दें. उसकी भावनाओं को समझें. उससे सवाल पूछें, लेकिन प्यार से.
एक्सपर्ट की मदद लें: मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि जेंडर डिस्फोरिया में प्यार और प्रोफेशनल काउंसलिंग बच्चे को खुशहाल बना सकती है. अगर बच्चा स्कूल में बुलिंग झेल रहा है, तो स्कूल से बात करें.
नाम-सर्वनाम का सम्मान: अगर बच्चा नया नाम या सर्वनाम (जैसे लड़का) चुनता है तो उसे अपनाएं, ये उसे कॉन्फिडेंस देगा.
सपोर्ट ग्रुप्स से जुड़ें: नाज फाउंडेशन या हमसफर ट्रस्ट जैसे संगठन मम्मी-पापा और बच्चों को गाइड करते हैं, इनसे मदद ले सकते हैं.
एक्सपर्ट का संदेश
जयपुर के मनोचिकित्सक डॉ. अनिल शेखावत कहते हैं कि LGBTQ+ बच्चे को सबसे बड़ा सहारा मम्मी-पापा का प्यार है. उसे वैसे ही अपनाएं जैसे वो है. घर में प्यार मिलेगा, तो वो दुनिया का सामना डटकर करेगा. डॉ. विधि एम पिलनिया आगे जोड़ती हैं कि आपका बच्चा आपका है. उसकी सच्चाई सुनकर उसे गले लगाएं. आपका प्यार उसे आत्मविश्वास भरा इंसान बनाएगा.
भारत में क्या है कानून
ट्रांसजेंडर पर्सन्स एक्ट 2019 जैसे कानून दिखाते हैं कि भारत धीरे-धीरे विविधता को गले लगा रहा है. मम्मी-पापा, अपने बच्चे की खुशी को सबसे ऊपर रखें. उसका साथ दें, वो दुनिया में आत्मविश्वास से चमकेगा.
यहां से मिल सकती है हेल्प
नाज फाउंडेशन: LGBTQ+ समुदाय के लिए काउंसलिंग और सपोर्ट.
हमसफर ट्रस्ट: माता-पिता और बच्चों के लिए गाइडेंस.
प्रशिक्षित काउंसलर: जेंडर-अफर्मिंग देखभाल में विशेषज्ञ से संपर्क करें.
मानसी मिश्रा