लाला लाजपत राय: 'मुझे पड़ी लाठियां ब्रिटिश राज के ताबूत की आखिरी कील होंगी'

Lala Lajpat Rai Birth Anniversary भारत के महान क्रांतिकारियों में से एक लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी 1865 को पंजाब के मोगा जिले में हुआ था.

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लाला लाजपत राय लाला लाजपत राय

मोहित पारीक

  • नई दिल्ली,
  • 28 जनवरी 2019,
  • अपडेटेड 6:34 PM IST

आजादी मिलने से करीब 20 साल पहले पूरा भारत अंग्रेजों की गुलामी से आजाद होने की लड़ाई लड़ रहा था. हर क्रांतिकारी अलग अलग तरीके से अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करता जा रहा था. उसी वक्त लाला लाजपत राय भी साइमन कमीशन के खिलाफ विरोधी सुर तेज कर रहे थे, लेकिन एक विरोध प्रदर्शन के दौरान उनके सिर पर लाठी पड़ी और बाद में 17 नवंबर 1928 को लाला लाजपत राय ने दम तोड़ दिया था.

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उसके बाद आजादी की लड़ाई के प्रहरी भगत सिंह और राजगुरु ने लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की हत्या की थी. लाला लाजपत राय को पंजाब केसरी के नाम से भी जाना जाता था और उन्होंने पंजाब नेशनल बैंक और लक्ष्मी बीमा कंपनी की स्थापना की थी. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में गरम दल के तीन प्रमुख नेताओं लाल-बाल-पाल में से एक थे.

लाजपत राय की शुरुआती पढ़ाई हरियाणा के रेवाड़ी से हुई और बाद लाहौर के राजकीय कॉलेज से विधि की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने लाहौर और हिसार में वकालत की. आजादी की लड़ाई में अपनी जान देने वाले लाजपत राय ने देश में व्याप्त छूआछूत के खिलाफ लंबी जंग लड़ी थी और उन्होंने हिंदू अनाथ राहत आंदोलन की नींव रखी, ताकि ब्रिटिश मिशन अनाथ बच्चों को अपने साथ न ले जा सकें.

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साइमन कमीशन के विरोध के वक्त शरीर पर चोट लगने के बाद उन्होंने कहा था कि उनके शरीर पर मारी गई लाठियां हिन्दुस्तान में ब्रिटिश राज के लिए ताबूत की आखिरी कील साबित होंगी. उनकी मौत के एक महीने बाद 17 दिसंबर 1928 को उनकी मौत का बदला लेते हुए ब्रिटिश पुलिस के अफसर सांडर्स को गोली से उड़ा दिया. जिसके बाद भारत में अंग्रेजों के खिलाफ उठी आवाज को और दम मिला.

 

 

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