BHU नर्सिंग के छात्र परीक्षा कराने की मांग को लेकर धरने पर बैठे, पढ़ाई-ड्यूटी दोनों ठप

छात्र-छात्राओं ने हॉस्टल की मांग, पढ़ाई के बाद BHU अस्पताल में नौकरी के लिए वरीयता और नर्सिंग कॉलेज में फैली दुर्व्यवस्था को खत्म करने जैसी मांगें पेश की हैं.

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धरने पर बैठे बीएचयू के छात्र (aajtak.in) धरने पर बैठे बीएचयू के छात्र (aajtak.in)

रोशन जायसवाल

  • वाराणसी ,
  • 27 सितंबर 2021,
  • अपडेटेड 3:16 PM IST

एक तरफ सरकार कोरोना की तीसरी लहर से लड़ने के लिए स्वास्थ्य सेवा देने वाले नर्सिंग के लोगों को तैयार करने का दावा कर रही है. वहीं लेट हुई परीक्षाओं और अन्य शैक्षणिक मांग को लेकर आज सैकड़ों की संख्या में बनारस हिंदू विवि के नर्सिंग के छात्र-छात्राएं ड्यूटी और क्लास का बहिष्कार करके धरने पर बैठ गए. 

वाराणसी के काशी हिंदू विवि के नर्सिंग कॉलेज के बाहर सैकड़ों की संख्या में नर्सिंग के छात्र-छात्राओं ने धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया. इस दौरान नर्सिंग छात्रों ने जमकर नारेबाजी की. छात्र अपने हाथों में बैनर-पोस्टर और तख्ती लेकर प्रदर्शन कर रहे थे. छात्र इस बात से नाराज थे कि उनकी नर्सिंग की परीक्षा अब सीधे दिसंबर में कराए जाने का निर्णय लिया जा रहा है जिससे चार साल की पढाई पूरी करने में पांच साल का वक्त लग जाएगा. इसके अलावा छात्र-छात्राओं ने हॉस्टल की मांग, पढ़ाई के बाद BHU अस्पताल में नौकरी के लिए वरीयता और नर्सिंग कॉलेज में फैली दुर्व्यवस्था को खत्म करने की भी मांग की. 

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धरने पर ड्यूटी और पढ़ाई छोड़कर बैठे नर्सिंग छात्र संतोष ने बताया कि परीक्षा को टालकर चार साल का कोर्स पांच साल का किया जा रहा है. इसके अलावा हमारी MSC फैकल्टी की भी मांग है और जबतक यह मांग पूरी नहीं होती और हमें लिखित में ये नहीं मिलता तब तक वे धरने पर बने रहेंगे. बता दें कि 2017 में हॉस्टल बंद कर देने से भी काफी दिक्कत आ रही है जो नियम विरुद्ध है.

वहीं चौथे वर्ष की नर्सिंग छात्रा अविष्का ने बताया कि उनकी परीक्षा देर में दिसंबर में कराई जा रही है जिसका रिजल्ट मार्च में आएगा. इससे हमलोग एक साल लेट हो जाएंगे. इसके अलावा जूनियर छात्रों को 2017 के बाद से हॉस्टल भी नहीं दिया जा रहा है. ऐसे में BHU अस्पताल में सुबह 7 से दोपहर 1 बजे तक ड्यूटी करना मुश्किल हो जाता है. इसके अलावा पढाई के बाद उनको 6 माह का अनिवार्य अनुभव लेने के लिए धक्के खाने पड़ते हैं जो BHU अस्पताल नहीं देता है. वहीं AIIMS जैसे संस्थान ये अनुभव देते हैं, इसलिए उन्हें मजबूरी में प्राइवेट अस्पताल का सहारा लेना पड़ता है.

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