दाऊद का वो दुश्मन जिसे 'डैडी' कहकर बुलाते थे गुर्गे, अब मांग रहा जेल से रिहाई

मुंबई में एक दौर ऐसा था, जब दाऊद इब्राहिम और अरुण गवली के गैंग एक दूसरे के खून के प्यासे थे. इनकी गैंगवार से पुलिस का काम आसान तो हो गया था. लेकिन आम जनता को इनकी कारस्तानियों से महफूज रखना पुलिस के लिए चुनौती थी.

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दाऊद और अरुण के बीच होने वाली गैंगवार में करीब 24 लोग मारे जा चुके थे दाऊद और अरुण के बीच होने वाली गैंगवार में करीब 24 लोग मारे जा चुके थे

परवेज़ सागर

  • नई दिल्ली,
  • 10 मार्च 2023,
  • अपडेटेड 8:21 PM IST

जुर्म की दुनिया में सुपारी किंग के नाम से मशहूर रहे अरुण गवली ने अदालत से उसे रिहा करने की मांग की है. इसके पीछे उसने उम्र और खराब तबीयत का हवाला दिया है. अरुण गवली की अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के साथ पुरानी अदावत थी. इन दोनों की दुश्मनी का खामियाजा कई लोगों ने अपनी जान देकर भुगता है. दरअसल, मायानगरी मुंबई में एक दौर ऐसा भी था, जब दाऊद और गवली के गैंग एक दूसरे के खून के प्यासे थे. इनकी गैंगवार से पुलिस का काम आसान तो हो गया था. लेकिन आम जनता को इनकी कारस्तानियों से महफूज रखना पुलिस के लिए चुनौती थी. इसी दौरान एक ऐसी वारदात को अंजाम दिया गया था, जिसने दाऊद और गवली के बीच दुश्मनी की खाई को और गहरा कर दिया था.

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70 के दशक से शुरू होती है कहानी
अरुण गवली और दाऊद इब्राहिम की दुश्मनी को समझने के लिए हमें फ्लैशबैक यानी 70 के दशक में जाना होगा. उन दिनों वरदराजन मणिस्वामी मुदलियार मुंबई अंडरवर्ल्ड का एक बड़ा नाम था. कांट्रेक्ट किलिंग, तस्करी और डाकयार्ड से माल साफ करना वरदराजन का मुख्य धंधा था. मटके के धंधे में भी उसने बड़ा कारोबार खड़ा कर लिया था. लेकिन 1980 में वरदराजन ने जुर्म की दुनिया को अलविदा कह दिया. इससे पहले 1977 में जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से प्रभावित होकर हाजी मस्तान ने अपराध की दुनिया छोड़ कर सियासी दुनिया में कदम रख दिया था.

मुंबई का बेताज बादशाह था दाऊद
इन सभी के चले जाने का सबसे ज्यादा फायदा मुंबई पुलिस के कांस्टेबल इकबाल कास्कर के बेटे दाऊद इब्राहिम को मिला. यही वो दौर था, जब दाऊद मुंबई का बेताज बादशाह बन गया था. लेकिन उसी दौरान मुंबई की गलियों का एक टपोरी गुंडा तेजी से जुर्म की दुनिया में आगे बढ़ रहा था. किसी ने सोचा भी नहीं था कि एक दिन वो दाऊद जैसे बड़े माफिया डॉन के सामने एक चुनौती बन जाएगा.

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दाऊद और गवली के बीच गैंगवार
वो 90 के दशक की शुरुआत थी. पूरे मुंबई में दाऊद इब्राहिम के नाम का सिक्का चल रहा था. तभी कुछ जगहों पर एक नए गैंग ने रंगदारी और वसूली का काम चालू कर दिया. जब दाऊद गैंग के लोगों ने उसे रोकने की कोशिश की, तो वो डी गैंग से भिड़ गए. यहीं से मुंबई का एक टपोरी अचानक सुर्खियों में आया. जिसका नाम था अरुण गवली. उनके बीच गैंगवार होने लगी. गुंडे मवाली एक दूसरे की जान के दुश्मन बन चुके थे. वो लोग दुश्मन गैंग के गुर्गों को हर वक्त तलाशते रहते थे, ताकि उनका खात्मा किया जा सके. उनका एक ही मकसद था मुंबई पर राज करना.

मौत का खूनी खेल
डी गैंग के तस्करी, रंगदारी और वसूली के मामलों में गवली का गैंग दखल देने लगा था. ये बात दाऊद को नागवार गुजर रही थी. उसने अपने गुर्गों को अलर्ट कर दिया और गवली गैंग के खात्मे का फरमान भी सुनाया. नतीजा ये हुआ कि उस दौर में दाऊद इब्राहिम और अरुण गवली के गैंग हर वक्त मौत का खेल खेलने के लिए तैयार रहने लगे. वो एक दूसरे के खून के प्यासे हो चुके थे. ये बात पुलिस भी जान चुकी थी. इस लिए मुंबई पुलिस के अफसर भी बेफिक्र हो चुके थे. क्योंकि पुलिस का लगता था कि ये गैंग आपस में लड़-मरकर खत्म हो जाएंगे.

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दाऊद पर हमले की सूचना
इसी दौरान अरुण गवली ने एक ऐसी चाल चली कि दाऊद ने कभी सोचा भी नहीं था. गवली ने दाऊद के एक गुर्गे को इस्तेमाल किया और उसे एक खबर पहुंचाई. दाऊद के गुर्गे ने उसे जाकर इत्तिला दी कि अरुण गवली उस पर हमला करने की तैयारी कर रहा है. ये बात सुनकर डी गैंग ने अपना पूरा ध्यान दाऊद इब्राहिम की सुरक्षा पर लगा दिया. अब डी गैंग अलर्ट पर था. 

26 जुलाई 1992
ये दिन दाऊद की जिंदगी में एक बड़ी खबर लेकर आने वाला था. उस दिन दाऊद की बहन हसीना पार्कर के पति इस्माइल पार्कर रोज की तरह अपने होटल पर मौजूद थे. इसी दौरान अरुण गवली गैंग के लोग वहां पहुंचे और किसी बहाने से इस्माइल को होटव के बाहर बुलाकर गोलियों से भून डाला. इस हमले में इस्माइल की मौके पर ही मौत हो गई थी. 

मारे गए दोनों गैंग के कई गुर्गे
नतीजा ये हुआ कि बहनोई की मौत से दाऊद तिलमिला उठा. इसके बाद उसके गैंग ने गवली गैंग के गुर्गों पर धावा बोल दिया. दोनों के बीच गैंगवार चरम पर थी. इस दौरान दोनों तरफ से करीब 24 लोग मारे जा चुके थे. खूनी खेल थमने का नाम नहीं ले रहा था. इसी दौरान एक नया गैंग भी वजूद में आ रहा था, जिसका सरगना था अमर नाइक.

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मुंबई धमाकों के बाद दुबई चला गया था दाऊद
इसी दौरान 1993 में मुंबई में सीरियल ब्लास्ट हुए. जिसका इल्जाम डी गैंग पर था. यही वजह थी कि इन धमाकों के बाद दाऊद इब्राहिम दुबई चला गया. धमाकों की वजह से ही दाऊद और छोटा राजन अलग हो गए थे. छोटा राजन भी मुंबई से मलेशिया चला गया. और उसने वहां अपना कारोबार शुरू कर दिया था. इस तरह से अरुण गवली के लिए मुंबई का रास्ता खुल चुका था.

अमर की मौत के बाद अरुण का आया राज
मुंबई धमाकों के बाद सभी बड़े अंडरवर्ल्ड डॉन मुंबई छोड़ चुके थे. पूरा मैदान खाली था. अब जुर्म के दो खिलाड़ी ही मैदान में थे. वो खिलाड़ी थे अरुण गवली और अमर नाइक. दोनों के बीच मुंबई के तख्त को लेकर गैंगवार शुरू हो चुकी थी. अरुण गवली के शार्पशूटर रवींद्र सावंत ने 18 अप्रैल 1994 को अमर नाइक के भाई अश्विन नाइक पर जानलेवा हमला किया लेकिन वह बच गया. इसके बाद मुंबई पुलिस ने 10 अगस्त 1996 को अरूण के दुश्मन अमर नाइक को एक मुठभेड़ में ढ़ेर कर दिया. और उसके बाद अश्विन नाइक को भी गिरफ्तार कर लिया गया. बस तभी से मुंबई पर अरुण का राज चलने लगा.

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दगड़ी चाल बन गई थी किला
हमेशा सफेद टोपी और कुर्ता पहनने वाला अरुण गवली सेंट्रल मुम्बई की दगड़ी चाल में रहा करता था. वहां उसकी सुरक्षा के कड़े इंतजाम थे. हालात ये थे कि पुलिस भी वहां उसकी इजाजत के बिना नहीं जाती थी. दगड़ी चाल को बिल्कुल एक किले की तरह थी. जिसके दरवाजे भी 15 फीट के थे. वहां गवली के हथियार बंद लोग हमेशा तैनात रहा करते थे.

मजबूत हो रहा था गवली का गैंग
माफिया अरुण गवली के गिरोह में सैंकड़ो लोग काम करते थे. जानकार उसके गैंग में काम करने वालों की संख्या 800 के लगभग बताते थे. उसके सभी लोगों को हथियार चलाने में महारत हासिल थी. जिसके लिए बाकायदा उन्हें ट्रेनिंग दी जाती थी. उन सभी हर महीने वेतन भी दिया जाता था. मुंबई के कई बिल्डर और व्यापारी अपने कारोबार को बढ़ाने और दुश्मनों को खत्म करने के लिए गवली की मदद लेते थे. गवली को इस काम से पैसा मिलता था. इसके साथ ही वो हफ्ता वसूली और रंगदारी भी करने लगा था. मुंबई में उसने मजबूती से पैर जमा लिए थे.

सुपारी किंग बन गया था गवली
मुंबई में खुला मैदान मिल जाने से गवली को कोई खासी दिक्कत नहीं हुई. वो खुलकर काम करने लगा था. उसने सुपारी लेना शुरू कर दिया था. पुलिस की माने तो ऐसे कई मामले थे जिनमें गवली ने सुपारी लेकर हत्या और मारपीट की घटनाओं को अंजाम दिया था. लेकिन सबूत और गवाहों की कमी के चलते वो हर बार बच जाता था. उसका प्रभाव इतना बढ़ गया था कि लोग उसे सुपारी किंग ही कहने लगे थे.

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पुलिस अफसरों से थी दोस्ती
अरुण गवली भले ही अंडरवर्ल्ड माफिया था. लेकिन इस काम को करने के बावजूद वह कई पुलिस वालों के संपर्क में आ गया था. माना जाता है कि कई पुलिस वाले उसके लिए खबरी का काम करते थे. कई पुलिस वालों को वो पैसा दिया करता था. धमकी, वसूली, रंगदारी और हत्या जैसे मामलों में उसके बच निकलने के पीछे पुलिसवालों की भूमिका भी रहती थी. यही वजह है कि उसके पकड़े जाने के बाद कई पुलिस वाले भी जांच के दायरे में थे.

डैडी के नाम से बुलाते थे लोग
एक मामले में अरुण गवली को 1990 में टाडा कोर्ट ने सजा सुनाई थी. तब उसे पुणे की यरवदा जेल में रखा गया था. जहां बंद कैदी उसे डॉन कहकर बुलाते थे. जब वो जमानत पर जेल से बाहर आया तो लोग उसे 'डैडी' कहने लगे और वो इसी नाम से मशहूर हो गया था. 

राजनीति में पहला कदम
अंडरवर्ल्ड में धाक जमाने वाला अरुण गवली हमेशा कानून और पुलिस से डरता था. एक तरफ उसके दुश्मनों की लिस्ट लंबी होती जा रही थी और दूसरी तरफ पुलिस भी उस पर शिकंजा कसना चाहती थी. ये बात अरुण अच्छे से जानता था. उसने इस डर से बचने का तरीका ढ़ूंढ निकाला. और राजनीति में जाने का फैसला किया. इसी मकसद को पूरा करने के लिए उसने साल 2004 में अखिल भारतीय सेना के नाम से एक पार्टी बनाई. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में उसने अपने कई उम्मीदवार उतारे. और खुद भी उसने चिंचपोकली सीट से चुनाव लड़ा और जीत गया.

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हत्या के मामले में पहली बार हुई थी सजा
विधायक बन जाने के बाद अरुण ने कहा था कि अब वो विधायक बन गया है पुलिस उसे नहीं मार सकती. इस बात से जाहिर हो गया था कि अरुण को अपने एनकांउटर का डर सता रहा था. लेकिन अब उसके हौंसले बुलंद थे. 2008 में गवली ने शिवसेना के एक नेता की हत्या की सुपारी ले ली. और शिवसेना कॉरपोरेटर कमलाकर जामसांडेकर की हत्या करवा दी. बताया जाता है कि इस काम के लिए गवली ने 30 लाख रुपये की सुपारी ली थी. इस मामले में अदालत ने आरोपी बनाए गए अरुण गवली को दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई. जिसे हाई कोर्ट ने भी बरकरार रखा. यह पहली मौका था जब गवली को किसी अदालत ने दोषी मानकर सजा सुनाई थी.

गवली गैंग का खात्मा
शिवसेना नेता की हत्या के मामले में गलवी जेल जा चुका था. उसी दौर में मुंबई पुलिस ने अंडरवर्ल्ड माफियाओं के खिलाफ अभियान चलाकर कई एनकांउटर किए. कई गैंगस्टर मारे गए. जिसमें गवली का गैंग भी पूरी तरह से खत्म हो गया. पुलिस की सख्त कार्रवाई के चलते कई माफिया मुंबई छोड़कर भाग गए तो कई पुलिस की गिरफ्त में आ गए थे. अब उम्रकैद की सजा काट रहे गवली ने अदालत से रहम की भीख मांगी है. 

 

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